भारतीय वेब-सीरिज : संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ

 भारतीय मनोरंजन की दुनिया में वेब-सीरिज भले ही नई विधा हो परन्तु जिस तेजी से यह विधा लोगों के मध्य लोकप्रिय हो रही है, आने वाले दिनों में बड़े पर्दे का सिनेमा हो या फिर टेलीविजन की दुनिया में वर्षों से राज करने वाले सोप ओपेरा, मनोरंजन परिदृश्य में बदलाव सुनिश्चित है | पिछले कुछ समय में ‘ओवर द टॉप’ प्लेटफार्म की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है, विशेष रूप से युवाओं ने मनोरंजन के इस पिटारे को खूब पसन्द किया है | नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, जी-५, जियो सिनेमा, ऑल्ट बालाजी, वूट, सोनी लिब, एवं डिज्नी हॉटस्टार जैसे प्लेटफार्म कहीं भी, कभी भी वेबसीरिज को देखने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं जो वर्तमान पीढ़ी के युवाओं के लिए सबसे मुफीद जान पड़ता है | वर्तमान युग इन्टरनेट का युग है, जहाँ विश्व के किसी कोने में निर्मित किसी भी प्रकार की अन्तर्वस्तु से आसानी से जुड़ा जा सकता है | वेब-सीरिज को बाजार प्रदान करने में इन्टरनेट जैसी तकनीकी का विशेष योगदान नजर आता है | स्मार्टफोन की उपलब्धता एवं सस्ते इन्टरनेट दर ने इस नये माध्यम को न सिर्फ महानगरों के उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का कार्य किया है अपितु छोटे शहरों में भी इसका उपभोक्ता वर्ग बढ़ रहा है | मनोरंजन के इस माध्यम ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में वर्षों से कब्ज़ा जमाये घरानों को न सिर्फ  इसे अंगीकार करने को विवश किया है अपितु नये निर्माताओं के लिए भी अवसर प्रदान करने का कार्य किया है |

भारत में निर्मित वेब-सीरिज को विदेशों में भी बाजार मिल रहा है साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा एवं पुरस्कार भी प्राप्त हो रहा है | हाल ही में प्रदर्शित ‘दिल्ली क्राइम’ को प्रतिष्ठित इंटरनेशनल एमी अवार्ड का मिलना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि मनोरंजन के इस नये माध्यम के प्रतिस्पर्धी दुनिया में भारतीय भी जोरदार दस्तक दे रहे हैं और आने वाले समय में भारतीय वेबसीरिज की लोकप्रियता में बढ़ोत्तरी सुनिश्चित है | किसी भारतीय शो द्वारा पहली बार प्राप्त किया गया यह पुरस्कार निश्चित तौर पर एक नई पटकथा लिखने को आतुर है | मनोज वाजपेयी की वेबसीरिज ‘द फेमिली मैन’ के पहले सीजन को मिली सफलता इस बात की पुष्टि करती है कि मनोरंजन का माध्यम कोई भी हो, यदि कहानी अच्छी है तो वह दर्शक को आसानी से आकर्षित कर सकती है | ‘एशियन एकेडमी क्रिएटिव अवार्ड्स’ में चार पुरस्कार प्राप्त करने वाली इस वेबसीरिज के पहले सीजन को दर्शकों ने खूब पसन्द किया और अब इसका सीजन-२ भी प्रदर्शन को तैयार है | ओ टी टी प्लेटफार्म ने भारत में भी ‘एक्सपेरिमेंटल सिनेमा’ की अवधारणा को बल दिया है | इससे सबसे ज्यादा फायदा क्षेत्रीय सिनेमा से जुड़े लोगों को हुआ है | रोजगार की दृष्टि से भी इस नये प्लेटफार्म को अत्यधिक उपयोगी कहा जा सकता है | इसने क्षेत्रीय स्तर पर फिल्म निर्माण के क्षेत्र में पदार्पण कर रहे लोगों के लिए नये अवसर पैदा करने का कार्य किया है, साथ ही ऐसी कहानी को सामने लाने का कार्य भी किया है जो बड़े बैनर के लिए अब तक अछूत थीं | इस नई विधा के जरिये क्षेत्रीय सिनेमा एवं क्षेत्रीय कलाकारों के कार्य क्षेत्र को विस्तार मिला है जिससे भविष्य में बाजार विस्तार की कल्पना की जा सकती है |

विगत कुछ समय से ओ टी टी प्लेटफार्म पर प्रदर्शित वेबसीरिज व्यवसाय एवं दर्शकों की पसन्द दोनों ही कसौटी पर खरी उतरी हैं | कोरोनाकाल भी इस प्लेटफार्म को स्थापित करने में सहायक सिद्ध हुआ है | सिनेमाघरों के बन्द होने के कारण अधिक संख्या में दर्शकों ने इस प्लेटफार्म की तरफ कदम बढ़ाया है या यूँ कहें कि फिल्म निर्माण से जुड़े लोगों ने इस दौरान ओ टी टी से जुड़कर दर्शकों तक पहुँचने का कार्य किया है | स्थापित फिल्म निर्माताओं की रुचि बढ़ने के कारण बड़े कलाकारों ने भी इस प्लेटफार्म पर काम करना मुनाफे का सौदा माना है | दर्शक भी अपने पसन्दीदा कलाकारों को इस प्लेटफार्म पर देखकर काफी खुश दिखते हैं | इस प्लेटफार्म की सबसे बड़ी विशेषता है कि दर्शक समय उपलब्धता के अनुसार जुड़कर मनोरंजन प्राप्त कर सकता है | इसके साथ ही वह सिनेमाघर जाने से बच सकता है | स्वतन्त्र सिनेमा की वकालत करने वाला यह प्लेटफार्म भविष्य के मनोरंजन की दुनिया की पटकथा लिख रहा है | इसके साथ ही सिनेमा की दुनिया को ‘पायरेसी’ से मुक्त करने की आधारशिला भी रख रहा है | अपने उपभोक्ताओं तक आसानी से पहुँचने वाले इस माध्यम को कम खर्चीले माध्यम की संज्ञा भी दी जा सकती है |

ओ टी टी प्लेटफार्म पर उपलब्ध वेब-सीरिज के लिए अपार संभावनाएँ हैं तो वहीं कुछ चुनौतियाँ भी मौजूद हैं | एक तरफ बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है तो वहीं कुछ सामाजिक एवं सरकारी संस्थाओं द्वारा रेखांकित चुनौतियाँ भी हैं | युवा पीढ़ी के साथ चलने में लाभ है तो सामाजिक दायरे में रहकर अन्तर्वस्तु प्रस्तुत करने की चुनौती भी | इस प्लेटफार्म पर उपलब्ध अन्तर्वस्तु के प्रति लोगों की भिन्न-भिन्न राय है | कुछ लोगों का मानना है कि यह प्लेटफार्म नग्नता एवं गाली-गलौज को बढ़ावा दे रहा है तो वहीं कुछ लोगों को लगता है कि इससे न सिर्फ क्षेत्रीय कलाकारों को काम मिल रहा है अपितु उन विषयों पर भी वेबसीरिज आ रही हैं जिनके प्रति मुख्य धारा का सिनेमा उदासीन था | कुछ लोगों का तर्क है कि वेब-सीरिज ऐसी अन्तर्वस्तु को परोस रही हैं जो सभ्य समाज के अनुरूप नहीं होती हैं जबकि प्लेटफार्म स्वामित्व से जुड़े लोगों का तर्क है कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं परन्तु विचारों को उसी रूप में प्रस्तुत करने में विश्वास करते हैं जिस रूप में वह समाज का हिस्सा होता है | उनका कहना है कि प्लेटफार्म उपभोक्ता के पास ‘चाइल्ड लॉक’ का विकल्प उपलब्ध है जिससे वह अपने बच्चों को किसी विशेष वेब-सीरिज की अन्तर्वस्तु से दूर रख सकता है |

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है | भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की यह स्वतंत्रता जन-माध्यमों के लिए भी उन्हीं युक्तियुक्त निर्बंधनों के साथ उपलब्ध है जिनके साथ यह भारतीय जनमानस के लिए उपलब्ध है | भारतीय जनमाध्यमों के लिए अमेरिका जैसे अलग से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान नहीं है | संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सापेक्ष वर्णित ८ युक्तियुक्त निर्बन्धन न सिर्फ संचार के उन्मुक्त एवं स्वछन्द प्रवाह को रोकते हैं अपितु उसकी परिधि भी तय करने का कार्य करते हैं | संविधान में वर्णित अनुच्छेद के अतिरिक्त, विभिन्न नियामक संस्थाएं भी हैं जो संचार माध्यमों के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करने का कार्य करती हैं जिससे जनमाध्यमों के निरंकुश संचार-प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके | अधिसंख्य नियामक संस्थाएं संचार के स्वतन्त्र प्रवाह को गति प्रदान करती हैं परन्तु जन-माध्यमों द्वारा अभिव्यक्ति की लक्ष्मण रेखा लाँघने का विरोध भी करती हैं | समाचार चैनलों को दिशा-निर्देश प्रदान करने वाली नियामक संस्था ‘राष्ट्रीय प्रसारण संघ’ हो, भारतीय समाचार संगठनों के लिए समय सापेक्ष सुझाव प्रस्तुत करने वाली ‘प्रेस परिषद’ हो या फिल्म निर्देशकों द्वारा प्रस्तुत स्वच्छन्द अंतर्वस्तु को काँट-छाँट कर सभ्य समाज के अनुकूल बनाने वाला सेंसर बोर्ड, सभी संस्थाएं जनमाध्यमों को सामाजिक उत्तरदायित्व का बोध कराती हैं |

पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे अवसर आये हैं जब इन संस्थाओं का कद बाजार के सामने गौण नजर आया है और नियामक संस्थाएं असहाय नजर आई हैं | कभी उचित कानून न होने की स्थिति का लाभ उठाकर, तो कभी बाजार की माँग कहकर, जनमाध्यमों ने न सिर्फ सामाजिक उत्तर दायित्व के सिद्धांत को अनदेखा किया है अपितु अभिव्यक्ति की लक्ष्मण रेखा को भी लाँघने का कार्य किया है | वर्तमान दौर में ‘ओ टी टी’ प्लेटफार्म पर उपलब्ध ‘वेब-सीरिज’ द्वारा नियमित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया जा रहा है जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं स्वच्छन्दता के बीच मौजूद लक्ष्मण रेखा निरन्तर धुंधली हो रही है | हालाँकि वेब-सीरिज निर्माण से जुड़े लोगों का कहना है कि हम वही दिखाने का प्रयास करते हैं जो जनता देखना पसन्द करती है | इसके पीछे उनका तर्क है कि हम प्लेटफार्म के ग्राहक को पहले ही सूचित कर देते हैं कि प्रस्तुत अन्तर्वस्तु किस आयु समूह के लिए है, एवं किस आयु समूह के लिए यह वर्जित है | हालाँकि यह उपाय पर्याप्त साबित नहीं हुए हैं एवं ‘पाताल लोक तथा तांडव’ के निर्माताओं ने इस प्लेटफार्म पर उँगली उठाने का अवसर प्रदान किया है | मिर्जापुर नामक वेबसीरिज में बेवजह ही अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया गया है साथ ही अश्लील एवं हिंसा से भरे दृश्यों को जगह दी गई है | पाताललोक नामक वेबसीरिज पर भी धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लग चुका है | ऐसे में इस प्लेटफार्म के सही उपयोग पर प्रश्नचिन्ह लगना लाजिमी है |

रामानन्द सागर द्वारा निर्मित प्रसिद्ध धारावाहिक ‘रामायण’ में श्रीराम का किरदार निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल ‘तांडव’ नामक वेबसीरिज के अन्तर्वस्तु से काफी आहत दिखते हैं | उनका कहना है कि आज रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर हो रहे अधर्म के तांडव को रोकने के लिए अति आवश्यक है कि सर्वोच्च गुरु का दर्जा प्राप्त चारों पीठों के शंकराचार्य इकट्ठे होकर आगे आएँ, और सभी हिन्दुओं को एक सूत्र में बाँधकर उन्हें अपनी आस्था, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूक करें | ओ टी टी प्लेटफार्म पर सेंसर बेहद आवश्यक है जिससे सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाले अन्तर्वस्तु को प्रसारित करने से रोका जा सके, साथ ही इस सन्दर्भ में कड़े कानून बनाने की भी आवश्यकता है जिससे सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं को ठेंगा दिखाने वाले निर्माता-निर्देशकों पर नकेल कसा जा सके | भारतीय संस्कृति को दूषित और विकृत करने वाली वेबसीरिज को प्रदर्शित करने से पहले एक निगरानी प्रक्रिया से गुजारने की आवश्यकता है जिससे समय रहते ही अश्लीलता परोसने वाली वेबसीरिज को प्रतिबन्धित किया जा सके | अभिनेता सैफ अली खान अभिनीत ‘तांडव’ के खिलाफ कई सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों ने शिकायत दर्ज कराई है | अमेज़न प्राइम पर प्रदर्शित ‘तांडव’ पर सख्त प्रक्रिया के कारण भले ही फिल्म निर्माता ने माफ़ी माँग ली हो परन्तु भविष्य में अन्य निर्माता ऐसी गलती नहीं करेंगे, की सम्भावना कम ही दिखती है | भारी विरोध के बाद ‘तांडव’ के निर्माता ने भले ही गलत ढंग से प्रस्तुत अन्तर्वस्तु को हटाने की बात कही हो परन्तु यह समस्या का हल नहीं है | ऐसे अन्तर्वस्तु को सरकार द्वारा रोका जाय इससे पहले ही स्व-नियमन की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए |

ऑल्ट बालाजी की वेबसीरिज ‘एक्स एक्स एक्स’ सीजन-२ के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने भले ही निर्माता को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी हो परन्तु कोर्ट वेबसीरिज के  अन्तर्वस्तु से संतुष्ट नहीं दिखा, यही कारण है कि मुख्य न्यायाधीश ने एकता कपूर के खिलाफ दायर याचिका को ख़ारिज करने से साफ मना कर दिया | एकता कपूर ने इस वेबसीरिज में न सिर्फ भारतीय सेना को गलत ढंग से प्रस्तुत किया है अपितु उनपर धार्मिक भावनाएं भड़काने का भी आरोप है | नेटफ्लिक्स की वेबसीरिज ‘बैड बॉय बिलेनियर्स’ पर भी सुप्रीमकोर्ट कोर्ट नाराज दिखा | जिस तरह से वेबसीरिज से जुड़े मामले उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय में पहुँच रहे हैं, मनोरंजन के इस नये माध्यम के लिए सही नहीं है | भले ही अदालत इस सन्दर्भ में अभी तक बहुत सख्त नहीं दिखी है परन्तु ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब अदालत को सरकार को इस सन्दर्भ में कानून बनाने का निर्देश देना पड़े |

चाहे बड़े सितारों से सजी ‘तांडव’ जैसी वेबसीरिज हो या फिर ‘पाताललोक’ जैसी कम बजट में बनी वेबसीरिज, इनके अन्तर्वस्तु का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इनमें न सिर्फ सरकार को कटघरे में लाने की कोशिश की गई है अपितु एक वर्ग विशेष के लोगों में सरकारी तंत्र के खिलाफ आक्रोश बढ़ाने वाले तथ्य भी प्रस्तुत किये गये हैं | पिछले एक वर्ष में अनेक वेबसीरिज प्रदर्शित हुई हैं जिनमें धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली अन्तर्वस्तु का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है | फिल्म निर्माता भले ही ऐसी अन्तर्वस्तु का उपयोग व्यावसायिक हित के लिए करता है परन्तु यह इस विधा के लिए सही नहीं है | धार्मिक उन्माद की चासनी में लिपटी अन्तर्वस्तु, गाली एवं असभ्य भाषा अथवा दृश्य के माध्यम से भले ही निर्माता मुफ्त प्रचार का लक्ष्य हासिल करने लगे हैं, एवं विवाद बढ़ने के साथ ही एक कदम पीछे हट जाते हैं परन्तु यह इस सशक्त माध्यम के शैशवावस्था में ही रोगग्रसित होने के समान है जिससे भविष्य में इस माध्यम के समक्ष संकट खड़ा हो सकता है |     

अभी तक वेबसीरिज सेंसर बोर्ड के दायरे में नहीं आती है, जिससे इस कलात्मक विधा को स्वतन्त्र सिनेमा के माध्यम के रूप में देखा जा रहा है | परन्तु प्रश्न यह है कि कानून के दायरे में न आना फिल्म निर्माताओं को सामाजिक उत्तरदायित्व एवं जवाबदेही से मुक्त करता है ? आज भले ही इस माध्यम का दोहन कर व्यावसायिक लाभ लिया जा सकता है परन्तु फिल्म निर्माताओं की व्यावसायिक भूख इस विधा को खोखला कर सकती है | भले ही भारतीय दर्शक ‘वेबसीरिज’ को पसन्द कर रहा है परन्तु कुछ फिल्म निर्माता जिस प्रकार से सामाजिक एवं धार्मिक भावनाओं के ऊपर अभिव्यक्ति की आजादी को रखने का दु:साहस कर रहे हैं, आने वाले दिनों में सरकार अथवा न्यायालय को आगे आने के लिए मजबूर होना पड़ेगा | अभी से ही यह माँग उठने लगी है कि कम से कम एक ‘एडवाइजरी बॉडी’ का गठन किया जाये जिससे वेबसीरिज की अन्तर्वस्तु पर निगरानी की जा सके | देखा जाय तो यह जरूरी भी है क्योंकि अभिव्यक्ति के निरंकुश प्रवाह से सृजन की कल्पना नहीं की जा सकती है | अभिव्यक्ति की यह स्वतंत्रता स्वछन्दता की तरफ अग्रसर हो, इससे पहले ही इसके दायरे को निर्धारित कर लेना चाहिए | अच्छा यही होगा कि फिल्म निर्माण से जुड़े संगठन इसके दायरे को निर्धारित करें ताकि कला के इस माध्यम पर आन्तरिक अंकुश रखा जा सके | इससे न सिर्फ भविष्य में आने वाले अवरोध से बचा जा सकेगा अपितु अच्छी वेबसीरिज के निर्माण की सम्भावना भी प्रबल होगी |

कोरोनाकाल में मुख्य धारा सिनेमा की अनुपलब्धता से ओ टी टी प्लेटफार्म को निश्चित तौर पर लाभ मिला है जिससे इस प्लेटफार्म पर प्रदर्शित कई वेबसीरिज अच्छा व्यवसाय करने में सफल रही हैं परन्तु जैसे ही स्थिति सामान्य होगी, बड़े पर्दे का सिनेमा भी इस प्लेटफार्म के राह में रोड़ा बनेगा | हालाँकि यह एक दिलचस्प मुकाबला होगा क्योंकि कई बड़े निर्माता-निर्देशक ओ टी टी प्लेटफार्म के जरिये एक नई पारी की शुरुआत कर चुके हैं या फिर इसकी तैयारी कर रहे हैं | कोई भी माध्यम अपने अन्तर्वस्तु के बल पर ही टिके रह सकता है | अन्तर्वस्तु के सनसनीखेज प्रस्तुतीकरण से भले ही त्वरित लाभ मिल जाय परन्तु यह माध्यम के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगा जाता है जिससे कालान्तर में माध्यम की प्रभावशीलता का छरण निश्चित है | अब वेबसीरिज से जुड़े लोगों को सुनिश्चित करना है कि उन्हें इस माध्यम का दोहन करके त्वरित लाभ लेना है या फिर इस विधा को सशक्त माध्यम के रूप में प्रस्तुत करना है | युवा आबादी के साथ स्वागत को उत्सुक बृहद बाजार को अच्छे अन्तर्वस्तु के साथ रिझाना है या फिर सामाजिक मर्यादा को तोड़ने वाली भाषा अथवा दृश्यों से बाजार का मन मोहकर व्यापारिक हित हासिल करना है | एक तरफ व्यवसाय की असीमित संभावनाएँ हैं तो वहीं दूसरी तरफ स्वस्थ अन्तर्वस्तु प्रस्तुत करने की चुनौती भी है | निर्णय इस विधा से जुड़े लोगों को करना है कि उन्हें अच्छे अन्तर्वस्तु के साथ इस विधा को आगे ले जाना है या फिर इसको खोखला करना है |

 

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