बढ़ता प्रदूषण, हाँफती सरकार
विगत कुछ वर्षों से नवम्बर दिल्ली-वासियों के लिए अत्यधिक मुश्किलों भरा महीना साबित हुआ है | एक तरफ वायु प्रदूषण ने दिल्ली के नागरिकों की सांसों में ज़हर घोलकर उन्हें कई प्रकार की बिमारियों का दंश झेलने पर मजबूर किया है तो वहीं यमुना में बढ़ते प्रदूषण ने अधिसंख्य को दूषित जल पीने पर मजबूर किया है | यमुना में तैरते रासायनिक झाग वर्षों से चल रहे ‘यमुना एक्शन प्लान’ की खामियों को उजागर करते हैं वहीं नमामि गंगे योजना के अन्तर्गत यमुना को साफ करने के केंद्र के प्रयासों पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं | राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा अरबों रूपये खर्च करने के बावजूद दिल्ली को गैस चैम्बर के रूप में देखकर सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाई है और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने आपातकालीन बैठक बुलाकर सम्बन्धित अधिकारियों को प्रदूषण की वर्तमान स्थिति पर काबू पाने के लिए यथाशीघ्र उपाय करने का निर्देश दिया है | मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना की सख्त टिप्पणी से राज्य सरकार जागी तो है परन्तु प्रदूषण नियंत्रित करने के सारे उपाय पूर्व में किये गये उपायों की भांति अल्पकालिक राहत देने वाले ही प्रतीत होते हैं | सरकार द्वारा किये जा रहे सभी उपाय अल्पकालिक परिणाम तो दे सकते हैं परन्तु बिना ठोस योजना के प्रदूषण मुक्त राजधानी की कल्पना करना रेत पर महल बनाना प्रतीत होता है |
विश्व के सर्वाधिक
प्रदूषित शहरों में अग्रिम पंक्ति में खड़ी दिल्ली ने, सरकार को भी हाँफने पर मजबूर
कर दिया है | केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आकड़े के अनुसार दिल्ली
में वायु प्रदूषण का स्तर ‘गम्भीर’ श्रेणी तक पहुँच चुका है एवं दिल्ली के २४
स्थानों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स (ए क्यू आई ) ४०० से ऊपर बना हुआ है | अगले कुछ
दिनों तक इसमें सुधार की गुंजाईश कम ही दिखती है जिससे दिल्ली के लोगों में डर बना
हुआ है | पी एम-२.५ एवं पी एम-१० दोनों ही ख़तरनाक स्तर पर हैं जिससे बुजुर्ग,
गर्भवती महिलाओं एवं छोटे बच्चों को ज्यादा परेशानी हो रही है | हवा में घुलते जहरीले कण लोगों में अस्थमा,
बेचैनी, ह्रदय गति रूकना एवं थकान जैसे लक्षण पैदा कर रहे हैं जिससे अस्पतालों में
मरीजों की संख्या बढ़ रही है | ऐसा नहीं है कि दिल्ली में पहली बार प्रदूषण ख़तरनाक
स्तर पर पहुँचा है | पूर्व में भी कई बार ऐसा देखने को मिला है | इस बाबत पहले भी
हाई कोर्ट दिल्ली सरकार एवं सिविक एजेंसियों को फटकार लगा चुकी है | जस्टीस बी डी
अहमद एवं जस्टीस सिद्धार्थ मृदुल की बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए दिल्ली सरकार,
एम सी डी एवं दिल्ली जल बोर्ड से कहा था कि जीवन के लिए पानी सबसे महत्वपूर्ण है
परन्तु यमुना में जिस कदर जहर घुला हुआ है इसे ‘ड्रेन नदी’ कहना उचित होगा | बोर्ड
ने दिल्ली में ड्रेनेज के लिए मास्टर प्लान सम्बन्धित जानकारी देने की बात भी कही
थी परन्तु आज तक किसी ठोस कार्ययोजना पर कार्य नहीं हुआ | एक बार फिर से सर्वोच्च
न्यायालय द्वारा फटकार सरकार को कितना जागरूक कर पायेगा यह तो आने वाला वक्त ही
बतायेगा |
केंद्र एवं राज्य
सरकार में तालमेल का अभाव हर साल सैकड़ों जिन्दगियों पर भारी पड़ता है एवं
आरोप-प्रत्यारोप का दौर तब तक चलता है जबतक कि प्रकृति में अपेक्षित बदलाव न हो
जाये और एक बार फिर सरकार को कुम्भकर्णी नींद में जाने का मौका मिल सके | छठ पूजा
के दौरान सरकार ने यमुना में तैरते झागों पर पानी की बौछार कर यमुना के जल को ठीक
उसी प्रकार स्वच्छ कर दिया जिस प्रकार से उसने हवा में फैले धूल के कणों पर पानी
का बौछार करके हवा को साफ़ कर दिया था | दिल्ली सरकार में पर्यावरण मन्त्री गोपाल
राय का मानना है कि राजधानी में प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण दिवाली के दिन जलाए
गये पटाखे एवं पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से आ रहा धुँआ है | आनन-फानन में
दिल्ली सरकार ने प्रदूषण समाप्त करने के लिए पाँच सूत्रीय योजना को क्रियान्वित
करने की रणनीति बना तो दी है परन्तु ये सभी उपाय वहीं हैं जो सरकार द्वारा पूर्व
में भी किये जा चुके हैं | इस सन्दर्भ में सरकार के उपाय अब तक ‘मर्ज बढ़ता गया,
ज्यों-ज्यों दवा की हमने’ जैसे ही रहे हैं | राज्य सरकार के पास पड़ोस के राज्यों
में पराली जलाने की ढाल मौजूद है जिसका उपयोग अपने बचाव में करती आई है | सरकार ने
पराली से खाद बनाने की तकनीकी के प्रचार-प्रसार पर करोड़ों खर्च किया है | बेहतर
होता कि राज्य सरकार साफ एवं स्वच्छ दिल्ली का सपना साकार करने के लिए एक
दीर्घकालीक योजना बनाती एवं सभी पड़ोसी राज्यों एवं एन जी टी तथा अन्य केन्द्रीय
इकाईयों के साथ मिलकर उसे क्रियान्वित करती |
समस्या के मूल में न
जाकर सिर्फ आपातकालीन उपाय के जरिये न तो वायु प्रदूषण दूर होगा और न ही जहरीले
नाले का रूप ले रही यमुना का ही कायाकल्प हो सकेगा | यदि सरकार वास्तव में प्रदूषण
को लेकर सजग है तो उसे व्यावहारिक स्तर पर दीर्घकालीक योजनाओं को आगे बढ़ाना होगा |
सरकार को समझना होगा कि इस गम्भीर बिमारी का इलाज तात्कालिक उपाय नहीं है अपितु इसे
समाप्त करने के लिए निरन्तर प्रयास करना होगा | जहाँ तक पराली जलाने की बात है तो
किसानों को जागरूक करने के साथ ही उन्हें आसान विकल्प भी उपलब्ध कराना होगा |
यमुना में नालों एवं औद्योगिक इकाईयों के कचरे को जाने से रोकना एवं उनके सोधन का
उपाय सुनिश्चित करना होगा | इसके लिए आवश्यक है कि दिल्ली की आबादी के अनुरूप ‘ट्रीटमेंट
प्लांट’ की संख्या में बढ़ोत्तरी करनी होगी जो कि अभी नाकाफी हैं | डीजल एवं
पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों की संख्या को योजनाबद्ध तरीके से कम करना होगा साथ
ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को सुगम बनाना होगा | इससे पहले कि यह गम्भीर बिमारी
लाइलाज हो जाय, राज्य एवं केंद्र सरकार को साथ मिलकर प्रयास करने होंगे | न्यायालय
एक निगरानी समिति बनाकर अगले पाँच साल तक हर महीने समीक्षा करे न कि दिल्ली को हाँफता
देखकर आनन-फानन में कोई निर्देश दे | सरकार के पास जादू की छड़ी नहीं है परन्तु सरकार
दृढ इच्छाशक्ति के साथ काम करे तो निश्चित रूप से आगामी वर्षों में दिल्ली को ‘गैस
चैम्बर’ बनने से रोका जा सकेगा |
Nice
जवाब देंहटाएंGood writeup, this is the concern for everyone.
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