मानसिक प्रदूषण फैलाते टीवी डिबेट
विगत कुछ वर्षों से
समाचार चैनलों पर समसामयिक विषय पर ‘बहस’ को अनिवार्य रूप से दिखाया जा रहा है |
भले ही इस चर्चा-परिचर्चा के पीछे चैनल का आर्थिक गणित छुपा हुआ है परन्तु देखा
जाय तो ‘टीवी डिबेट’ ने देश के सामाजिक गणित को सबसे अधिक प्रभावित किया है | किसी
भी लोकतान्त्रिक देश में किसी विषय पर चर्चा करना, स्वस्थ लोकतंत्र को मजबूती
प्रदान करता है परन्तु जिस प्रकार से समाचार चैनलों पर चर्चा होती है, निश्चित रूप
से यह मानसिक प्रदूषण को फ़ैलाने का कार्य करता है | इन चर्चाओं के पीछे न सिर्फ
समाचार चैनल का एक ‘एजेंडा’ छिपा हुआ दिखलाई देता है अपितु कई बार यह चर्चा किसी
प्रमुख मुद्दे से ध्यान भटकाने का कार्य करती है | हास्यास्पद तब होता है जब एक ही
विशेषज्ञ विभिन्न विषय पर चर्चा करता हुआ नजर आता है, ऐसे में विषय की गम्भीरता
प्रभावित होना स्वाभाविक है | कभी-कभी तो न्यूज़ एंकर पक्ष या विपक्ष की तरफ से
बोलता हुआ नजर आता है जिससे समाचार चैनल की वस्तुनिष्ठता प्रभावित होती है | किसी भी विषय पर चर्चा करते समय,
चर्चा को राजनीतिक रंग देना आज सामान्य बात है परन्तु इससे न तो विषय के साथ न्याय
होता है और न ही समाचार चैनल द्वारा प्रसारित कार्यक्रम से जुड़े दर्शक के साथ ही
न्याय होता है | स्वस्थ चर्चा आज बीते दिनों की बात है जिसमें विशेषज्ञ बड़ी ही
शालीनता से अपनी बात रखता था एवं चर्चा के अन्त में विषय से जुड़े निष्कर्ष को रखा
जाता था | आज न तो चर्चा के दौरान शालीनता दिखती है और न ही चर्चा के अन्त में कोई
निष्कर्ष ही निकलता है | टीवी डिबेट के दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर
विशेषज्ञ कुछ भी बोल जाता है एवं अक्सर ही इससे जुड़े ८ युक्तियुक्त निर्बन्धन की
सीमा से बाहर निकलकर बात रखता हुआ दिखलाई देता है जिससे चर्चा का उद्देश्य
प्रभावित होता है |
अत्यन्त कम लागत में
तैयार होने वाले टीवी डिबेट कार्यक्रम, सभी समाचार चैनलों के सांध्यकालीन प्रसारण
का अनिवार्य हिस्सा है | तकनीकी ने विषय विशेषज्ञ को टीवी स्टूडियो में बुलाने की
अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है जिससे विशेषज्ञ अपने घर अथवा कार्यालय से भी
चर्चा में हिस्सा ले सकता है | ऐसे में वक्ता द्वारा अमर्यादित भाषा एवं
अव्यावहारिक आचरण की घटना में बढ़ोत्तरी देखी गयी है जिसे सभ्य समाज में उचित नहीं
कहा जा सकता है | टीवी पर प्रसारित हो रही बहस व्यक्ति की मनोदशा पर नकारात्मक असर
डालती है जो स्वस्थ समाज के लिए ठीक नहीं है | आरोप-प्रत्यारोप के बीच न सिर्फ मूल
विषय से भटकाव दिखता है अपितु इससे महत्व का सन्दर्भ नैपथ्य में चला जाता है |
न्यूज़ एंकर की भाव-भंगिमा हो या फिर उसके प्रस्तुतीकरण का तरीका, दोनों ही सार्थक
बहस की प्रक्रिया में भटकाव उत्पन्न करते हैं | लगभग सभी समाचार चैनलों पर बहस
कार्यक्रम को ऐसा नाम देना जिससे प्रतीत होता है कि वह कार्यक्रम अखाड़े का मैदान
है, सार्थक विमर्श पर प्रश्न खड़े करता है | समाचार चैनलों पर दिखाये जाने वाले
अधिकांश डिबेट, टी वी के लिए बनाई गयी नियामक संस्थाओं के मार्गदर्शन का उलंघन
करते हुए दिखाई देते है | दन्तविहीन नियामक संस्थाएं भी मानसिक प्रदूषण फैला रहे इन
समाचार चैनलों को रोकने में असमर्थ दिखती हैं | पिछले एक-दो महीने में हुई बहस का
आकड़ा दर्शाता है कि अधिसंख्य बहस राजनीतिक एवं धार्मिक विषय पर ही केन्द्रित थी |
ज्ञानवापी से जुड़ा मुद्दा हो अथवा नुपुर शर्मा का प्रकरण, टी वी पर आयोजित चर्चाओं
ने दर्शकों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर मानसिक प्रदूषण फ़ैलाने का ही कार्य
किया | इन चर्चाओं में प्रस्तुत अन्तर्वस्तु का एक बड़ा हिस्सा तथ्यात्मक रूप से
त्रुटिपूर्ण एवं व्यक्तिगत विचार था जबकि ऐसे गम्भीर विमर्श तथ्यों पर ही आधारित
होनी चाहिए | कभी-कभी विकास अथवा महंगाई विषय पर आयोजित होने वाली बहस भी राजनीति
प्रायोजित चक्रव्यूह में फँस जाती है, एवं विमर्श का मुख्य मुद्दा दम तोड़ देता है
|
विगत कुछ वर्षों में
समाचार चैनलों पर आयोजित बहस की अन्तर्वस्तु में बहुत ज्यादा गिरावट देखी गयी है |
विषय का चुनाव हो या फिर बहस में शामिल हो रहे अतिथियों की पृष्ठभूमि, दोनों के
चयन में गम्भीरता क्रमशः कम ही दिखती है | कभी-कभी तो एक ही विषय पर लगभग सभी चैनल
बहस कराते दिखाई देते हैं तो कभी-कभी एक ही मुद्दे पर कई दिन लगातार आयोजित की
जाने वाली बहस अत्यन्त गम्भीर मुद्दे को भी अलग दिशा में ले जाकर उसकी सार्थकता को
समाप्त कर देती है | मुद्दे की समझ से दूर रहने वाला आमन्त्रित वक्ता बहस को पूर्वनिर्धारित
दिशा में लेकर चला जाता है और जल्द ही सार्थक चर्चा नेपथ्य में खो जाती है | आमन्त्रित
वक्ता के पास विषय का सूक्ष्म ज्ञान, वक्ता की पृष्ठभूमि, समाचार एंकर की टी आर पी
बढ़ाने की हड़बडाहट, समाचार मालिकों का व्यापारिक एवं राजनैतिक हित, दर्शक को एक ऐसे
चक्रव्यूह में फँसा देता है जहाँ वह असहाय दिखता है | राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर
आयोजित होने की जाने वाली राजनीतिक एवं धार्मिक बहस के अतिरेक ने दर्शकों में
धार्मिक एवं राजनीतिक कट्टरता का बीजारोपण किया है जो भारतीय समाज के लिए सही नहीं
है | एक साथ स्टूडियो में आने वाले एवं चाय नाश्ता करने वाले आमन्त्रित वक्ता जब
बहस में हिस्सा लेते हैं तो प्रायः पूर्वनियोजित एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं, लड़ते
एवं झगड़ते हैं जिससे दर्शक पूर्णतः अनभिज्ञ होता है | वह ‘बुद्धू बक्से’ के सामने
बैठकर बुद्धू बनता रहता है, एवं इन चैनलों पर ‘दंगल’ ‘महाभारत’ ‘कुरुक्षेत्र’ आदि
को देखकर मानसिक प्रदूषण का शिकार होता रहता है | समाचार एंकर का ‘डिबेट’ के दौरान
किसी एक पक्ष के तरफ झुकाव, उसकी भावाभियक्ति एवं उसके द्वारा प्रदर्शित भावभंगिमा
एवं वाणी उत्तेजना, सार्थक चर्चा के उद्देश्य पर पानी फेर देती है | अब प्रश्न यह
उठता है कि सामाजिक सरोकारों की नींव पर खड़ी भारतीय मीडिया द्वारा समाचार चैनलों
के रूप में स्थापित मजबूत स्तम्भ को उसके मूल उद्देश्यों से भटकने से कैसे रोका
जाये ? निश्चित रूप से इस प्रश्न का उत्तर समाचार चैनल से प्रमुखता से जुड़े व्यक्तियों के आत्म-मंथन एवं आत्मवलोकन में ही
मिलता दिखता है |
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