तकनीकी युग में शिक्षक की प्रासंगिकता
शिक्षक
किसी भी समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | शिष्य के बौद्धिक विकास
के साथ ही उसके चरित्र निर्माण का अहम् दायित्व भी गुरु नामक संस्था पर निर्भर
करती है | प्राचीन काल से लेकर अबतक शिक्षण व्यवस्था में अनेकानेक परिवर्तन देखने
को मिले हैं, परन्तु बदलते परिवेश में भी गुरु कभी भी अप्रासंगिक नहीं हुआ है | आज
के तकनीकी युग में शिक्षक का कार्य एवं दायित्व दोनों ही प्रभावित हुआ है, परन्तु इससे
शिक्षक की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है | शिक्षण-प्रशिक्षण के बदलते स्वरुप ने
शिक्षक के सामने चुनौती अवश्य प्रस्तुत किया है, परन्तु आदर्श शिक्षक तकनीकी बदलाव
को शिक्षण-पद्धति के साथ जोड़कर निरन्तर क्रियाशील दिखता है | ‘वर्चुअल क्लासरूम’
के इस युग में लोग गुरु जैसी संस्था पर प्रश्न उठा रहे हैं, और आधुनिक शिष्यों के
लिए गुरु जैसी संस्था का महत्त्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है | ‘गुरु’ के स्थान
पर ‘गूगल’ के महत्त्व को बढ़ता देख लोग गुरु जैसी महत्वपूर्ण संस्था की प्रासंगिकता
पर प्रश्न उठा रहे हैं, जो कदापि उचित नहीं है | आज के इस युग में निश्चित तौर पर ‘मेटा’
को महत्त्व दिया जाना चाहिए, परन्तु इससे शिष्य के चरित्र को गढ़ने वाले शिक्षक का
महत्त्व कम नहीं हो जाता है | एक आदर्श समाज की कल्पना तभी की जा सकती है जब भावी पीढ़ी
को विषय के सैद्धांतिक ज्ञान के साथ ही व्यावहारिक पक्ष को समझाया जाये, साथ ही
उन्हें राष्ट्रबोध का बीज अंकुरित किया जाये | बिना मूल्यों का ज्ञान मनुष्य को
मशीन बनाकर उससे कार्य संपादित तो करा लेगा परन्तु वह मनुष्य को एक ऐसी दुनिया का
सृजन करने को प्रेरित करेगा जो भावबोध से मुक्त होगा, निश्चित तौर पर इससे शिक्षा
के उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती |
भारतीय
शिक्षण प्रणाली शिष्य के चरित्र निर्माण के साथ ही उसे आदर्श मनुष्य के रूप में
गढ़ने का प्रयास करती है | डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का मत था कि ‘शिक्षक वह
नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि शिष्य को चुनौतियों के
लिए तैयार करे’ | निश्चित तौर पर शिक्षक ही, शिष्य के मस्तिष्क में राष्ट्रबोध एवं
कर्तव्यबोध का भाव अंकुरित कर सकता है, न कि ‘डाटा’ को सबकुछ मानने वाली तकनीकी | शिक्षा
अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया में मनुष्य जीवन भर कुछ न कुछ सीखता
रहता है | इस पूरी प्रक्रिया में आदर्श मूल्यों की स्थापना होती है | कभी आनुभविक
मूल्य मनुष्य के अन्दर चेतना विकसित करते हैं तो कभी कोई संत रामानंद बनकर किसी
अबोध कबीर के मस्तिष्क में जीवन दर्शन का बीज अंकुरित कर जाता है | गुरुकुल
परम्परा जैसी प्राचीन शिक्षण व्यवस्था ने एक आदर्श गुरु-शिष्य परम्परा का बीजारोपण
किया | यह परम्परा शिष्य के सर्वांगीण विकास पर केन्द्रित थी जिसमें न सिर्फ शिष्य
को शैक्षणिक ज्ञान प्राप्त होता था अपितु उसे जीवनमार्ग में आने वाली प्रत्येक चुनौतियों
से लड़ने योग्य भी बनाने का प्रयास होता था | मैकाले पद्धति ने शिष्य के शैक्षणिक
विकास पर तो ध्यान दिया परन्तु शिष्य में मानवीय मूल्य एवं संवेदना का बीजारोपण
करने में असफल रही | इस प्रकार से भारतीय गुरु-शिष्य परम्परा में गुरु के कर्तव्यबोध
एवं शिष्य के भावबोध दोनों में ही गिरावट आती रही | शिक्षक ने शिक्षण को अपना
व्यवसाय समझकर शिक्षा देना शुरू कर दिया, तो वहीं शिष्य के लिए वह शिक्षा देने
वाला व्यक्ति मात्र बनकर रह गया | तकनीकी ने शिक्षक एवं शिष्य को मानसिक स्तर पर
तो जोड़ा है परन्तु इसमें शिक्षक का कर्तव्यबोध एवं शिष्य का भावबोध दोनों ही अलग
रूप में नज़र आते हैं | हालाँकि नई शिक्षा निति में तकनीकी के साथ सामंजस्य बनाकर
शिक्षण व्यवस्था को परम्परा एवं तकनीकीयुक्त बनाने का प्रयास किया गया है | इस
व्यवस्था में शिष्य के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केन्द्रित किया गया है क्योंकि
सरकार को यह आभाष है कि हम एक आदर्श समाज की स्थापना तभी कर सकते हैं जब शिक्षा का
उद्देश्य मात्र रोजगार प्राप्त करना न होकर, जीवन को सार्थकता प्रदान करना |
वर्तमान युग तकनीकी का है जिससे जीवन के सभी पहलू प्रभावित हुए हैं, शिक्षा भी उनमें से एक है | निश्चित तौर पर तकनीकी संसाधन ने शैक्षिक पद्धति को बदला है, एवं ज्ञानार्जन की प्रक्रिया बदली है | आज शिक्षक के लिए तकनीकी ज्ञान आवश्यक है, क्योंकि वह तकनीकी के माध्यम से अपने कार्य को आसान बनाने के साथ ही प्रभावी ढंग से अपने ज्ञानपुन्ज को विद्यार्थियों तक पहुंचा सकता है | निश्चित तौर पर आज तकनीकी कौशल के साथ अच्छी अंतर्वस्तु वाला शिक्षक, मात्र अच्छी अंतर्वस्तु वाले शिक्षक से प्रभावी है | समय सापेक्ष हो रहे तकनीकी बदलाव के साथ ही शिक्षक की कार्य-पद्धति भी बदली है | आज शिक्षक से अपेक्षा की जाती है कि वह विद्यार्थी के लिए न सिर्फ हमेशा उपलब्ध रहे अपितु उसके प्रश्न का उत्तर भी दे | निश्चित तौर पर तकनीकी ने यह सम्भव कर दिया है, आज शिक्षक एवं शिष्य दोनों को कक्षा में उपस्थित रहने की बाध्यता नहीं है | घर बैठे दोनों ही अपने कार्य को संपादित कर सकते हैं | ‘गूगल मीट’ ‘एम एस टीम’ एवं ‘ज़ूम’ जैसे ‘वर्चुअल प्लेटफार्म’ ने परम्परागत कक्षाओं का स्वरुप बदला है | कोविड के चुनौतियों के बीच इनका सार्थक उपयोग तकनीकी की महत्ता को स्पष्ट करता है | ‘स्मार्ट क्लासरूम’ की अवधारणा ने भी शिक्षक का कार्य आसान बनाया है, एवं शिक्षक इसका सार्थक प्रयोग कर रहे हैं | दृश्य एवं श्रव्य माध्यमों का उपयोग विषय की ग्राह्यता को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है | प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा में तकनीकी का प्रयोग शिक्षण की प्रक्रिया को आसान बनाने के साथ ही प्रभावी बना रही है | तमाम बदलाव के बावजूद शिक्षक की प्रासंगिकता है, और भविष्य में भी बनी रहेगी | तकनीकी, शिक्षक की प्रासंगिकता को पूरी तरह से समाप्त कर देगी, ऐसी सम्भावना न के बराबर है | हाँ, इतना अवश्य है कि तकनीकी का ज्ञान रखने वाला शिक्षक, तकनीकी का ज्ञान न रखने वाले शिक्षक की प्रासंगिकता को कम कर देगा |
Bahut hi khoob likha hai.
जवाब देंहटाएंअति सुंदर लेख।
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