देश के लिए घातक है ‘मुफ़्त’ की सियासत

 

कुछ ही दिनों में देश के दो प्रमुख राज्य लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव के साक्षी बनेंगे | चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न कराने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है, परन्तु विगत कुछ वर्षों से भारतीय राजनीति में ‘मुफ़्त’ की घोषणाओं ने न सिर्फ चुनाव सुधार के लक्ष्य को प्रभावित किया है अपितु निष्पक्ष मतदान के उद्देश्य पर भी असर डाला है | प्रधानमंत्री महोदय से लेकर सर्वोच्च न्यायलय तक ‘मुफ़्त घोषणाओं’ पर चर्चा कर चुके हैं | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में ‘रेवड़ी कल्चर’ को देश के लिए घातक कहा था जबकि सुप्रीमकोर्ट इससे जुड़ी याचिका को मंजूर कर उसे ३ न्यायधीशों की बेंच को भेज चुका है | कुछ समय पहले ही सुप्रीमकोर्ट ने सभी राजनैतिक दलों से इस सन्दर्भ में सुझाव माँगे थे | 

विगत दिनों हुई एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि राजनैतिक दलों द्वारा मुफ़्त उपहार देने वाली योजनाओं से सरकार को 'आसन्न दिवालियापन' की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है | सबके बीच सभी राजनैतिक दलों ने इस प्रमुख मुद्दे के प्रति जिस प्रकार से उदासीनता दिखलाया है, देश की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ सकता है | चुनाव की स्वस्थ प्रक्रिया को प्रभावित करने के साथ ही ‘मुफ़्त’ की राजनीति भारतीय अर्थव्यवस्था को निरन्तर चोट पहुँचा रही है |

एक तरफ तो सभी राजनितिक दल निष्पक्ष चुनाव का राग अलापते हैं, वहीं दूसरी तरफ ‘मुफ़्त’ की घोषणाओं से मतदाताओं को लालच के भंवरजाल में फँसाकर अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें अपने पक्ष में मतदान करने को प्रेरित भी करते हैं | क्षेत्रीय स्तर का राजनैतिक दल हो अथवा कोई बड़ा राजनैतिक दल, अपने घोषणा पत्र में ‘मुफ़्त’ की अनेकों ऐसी योजनाओं को सम्मिलित करता है जिसको पूरा करने के लिए राजकीय कोष पर अतिरिक्त बोझ बढ़ता है, एवं अन्त में वित्तीय घाटे की भरपाई विभिन्न करों के रूप में की जाती है | चुनावी समर में उतर रहे सियासी दल मुफ़्त की घोषणाओं को अपना अधिकार मानते हैं, एवं इसे संवैधानिक बताने की कोशिश करते हैं जबकि राजनीतिक दलों द्वारा की गयी ‘मुफ़्त घोषणाओं’ को अभिव्यक्ति की आजादी के श्रेणी में रखना उचित नहीं है क्योंकि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए घातक है |

राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित राजनैतिक दल हो अथवा क्षेत्रीय स्तर पर राजनैतिक विस्तार को आतुर कोई राजनीतिक दल, ‘मुफ़्त’ की सियासत को ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयुक्त करता हुआ दिखलाई देता है | कुछ राजनीतिक दल चुनाव से ठीक पहले ‘मुफ़्त’ की घोषणाओं का अम्बार लगा देते हैं | हद तो तब हो जाती है जब इन घोषणाओं में उन वस्तुओं एवं सुविधाओं को भी शामिल कर लिया जाता है जो मूलभूत आवश्यकताओं की श्रेणी में नहीं आती हैं | आगामी चुनाव में लगभग सभी राजनीतिक दल मुफ़्त बिजली देने का वादा कर रहे हैं जिसे पूरा करने के लिए राजकीय कोष पर अनावश्यक बोझ बढ़ेगा | विगत कुछ वर्षों में देश की राजनीति में ‘मुफ़्त’ योजनाओं को बढ़ावा देने वाली एक पार्टी ने अब तक जारी किये गये अपने सभी घोषणा पत्र में ‘मुफ़्त’ योजनाओं को प्रमुखता से सम्मिलित किया है, साथ ही इसका लाभ भी प्राप्त किया है | मुफ़्त बिजली एवं पानी की घोषणाओं के साथ विजयी शुरुआत करने वाली पार्टी अपने सभी चुनाव में इसे हथियार के रूप में प्रयोग करते दिखी है, साथ ही बेरोजगारों एवं महिलाओं को आर्थिक भत्ता देने का वादा भी पार्टी को अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में सहायक हुआ है | दो राज्यों में सरकार चला रही पार्टी अच्छी तरह से समझती है कि ‘मुफ़्त’ की सियासत एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें मतदाता के साथ ही अन्य राजनितिक दल भी फँस जाते हैं |

बाजारवाद के इस युग में कोई भी सेवा अथवा सुविधा मुफ़्त नहीं हो सकती है अर्थात इसके लिए किसी न किसी को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में भुगतान करना ही पड़ता है | फिर चाहे करदाताओं से प्राप्त राशि हो सुविधा एवं सेवा कर के रूप में प्राप्त राशि, मुफ़्त सेवा अथवा सुविधा की प्रक्रिया को पूरा करने में भेंट चढ़ जाती है | मुफ़्त में प्राप्त सेवाओं का दुरूपयोग भी एक बड़ी चुनौती है जिसके बारे में राजनैतिक दलों को सोचना होगा | जब भी कोई सुविधा अथवा सेवा मुफ़्त में उपलब्ध होती है तो प्रायः उपभोक्ता उसके प्रति संवेदनशील नहीं होता है | मुफ़्त के रूप में उपलब्ध वस्तु से मतदाता अंशकालिक लाभ तो प्राप्त कर लेता है परन्तु किसी न किसी रूप में इसका दूरगामी असर आम जनमानस पर ही पड़ता है | निरन्तर ‘मुफ़्त’ घोषणाओं के बीच राजनैतिक लाभ के लिए राज्य अथवा केंद्र सरकार को वित्तीय नुकसान पहुँचाने वाली योजनाओं पर रोक की मांग भी समय-समय पर उठती रही हैं जिन्हें सभी राजनैतिक दल अनसुना कर देते हैं | पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट द्वारा सम्बन्धित याचिका पर सुनवाई किये जाने से ‘मुफ़्त’ की सियासत पर रोक की उम्मीद जगी है, हालाँकि कोर्ट के पिछले निर्णय से यह स्पष्ट हो चुका है कि वह इस मुद्दे पर प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से बचना चाहती है | वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी चुनावी घोषणाओं को अभिव्यक्ति की आज़ादी से जोड़ते हैं और इसे राजनैतिक दलों का अधिकार बताते हैं |

आज शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी घोषणाएँ भले ही कम होती हैं, परन्तु राजनैतिक लाभ से जुड़ी घोषणाओं की बौछार सी होती रहती है | प्रश्न यह नहीं है कि चुनाव से पहले की गयी ‘मुफ़्त’ की घोषणाएं सही हैं या गलत, प्रश्न यह है कि इन घोषणाओं का उद्देश्य क्या है? एवं इससे देश पर दूरगामी असर क्या होगा ? मुफ़्त की घोषणाएँ राजनैतिक दलों को मूल समस्याओं के समाधान से दूर कर, त्वरित लाभ देने वाली घोषणाओं की तरफ आकर्षित करेगा, जिससे विकसित राष्ट्र का लक्ष्य निरन्तर दूर होता जायेगा | वंचित वर्ग के लिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से सम्बन्धित घोषणा गलत नहीं हैं |

भारत जैसे विकासशील देश के लिए अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाये रखना महत्वपूर्ण है, साथ ही विकास के सभी सूचकांकों के प्रति भी गम्भीर रहना है | यदि हम विकसित राष्ट्र के श्रेणी में सम्मिलित होना चाहते हैं तो उन सभी योजनाओं के प्रति गम्भीरता पूर्वक विचार करना होगा जिससे देश पर वित्तीय घाटा एवं विदेशी कर्ज बढ़ रहा हो | चुनाव आयोग राजनैतिक दलों द्वारा किये जा रहे ‘मुफ़्त’ घोषणाओं पर नज़र रख सकता है, एवं सभी राजनैतिक दलों के घोषणापत्र की जाँच करने के बाद ही उसे सार्वजनिक करने की अनुमति दे सकता है, साथ ही सम्बन्धित दल से घोषणापत्र में किये जा रहे वादे को पूरा करने के लिए एक ‘रोडमैप’ बताने एवं शपथ पत्र जमा करने को कह सकता है | मतदाता को जागरूक किये जाने की भी आवश्यकता है जिससे वह ऐसी घोषणाओं के चक्रव्यूह में न फँसे जो अप्रत्यक्ष रूप से उसके हितों को ही प्रभावित करती हों |

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