सामाजिक ढांचे को मजबूत करेगा आर्थिक आरक्षण

 


सामान्य वर्ग के गरीब व्यक्ति को सरकारी नौकरी एवं उच्च शिक्षण संस्थान में १० प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने लाखों प्रतिभाओं को नेपथ्य में खो जाने से बचाने का कार्य किया है, जिनकी प्रतिभा गरीबी की धुंध में खोकर दम तोड़ देती थी | वर्ष २०१९ में जब केंद्र सरकार ने १०३ वें संविधान संशोधन के जरिये सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला किया तब कुछ राजनैतिक नेताओं ने इस फैसले को दलित एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करार दिया | आज जब सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण को हरी झण्डी दिखाया है, तब भी वरिष्ठ नेता उदित राज जैसे लोग इसके पीछे भेदभाव की बात कर रहे हैं | प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा बहुमत से दिया गया फैसला सामाजिक समरसता की बुनियाद मजबूत करेगा, साथ ही आर्थिक बेड़ियों में जकड़े उस वर्ग को अवसर देगा जिनकी मूल समस्या को अबतक अनदेखा किया जाता रहा है | जातिगत आधार पर मिलने वाले आरक्षण के अतिरिक्त १० प्रतिशत आरक्षण सामान्य जाति में जन्म लेने वाले उन व्यक्तियों को देना जो सामान्य जाति में पैदा होने का दंश झेलने को मजबूर होते हैं, सर्वथा उचित प्रतीत होता है | अत्यन्त निर्धन परिवार में जन्म लेने के कारण सामाजिक अपंगता का शिकार व्यक्ति न ही सरकारी मदद प्राप्त कर सकता था, न ही उसके लिए समान अवसर उपलब्ध होते थे |

निवर्तमान सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण दिये जाने का फैसला लिया जाने के बाद से ही इसको चुनौती दी जा रही थी | कुछ लोग इसके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाये तो वहीं कुछ ने इसे राजनैतिक मुद्दा बनाकर लाभ भी प्राप्त किया | आशा है सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले से दो वर्ष से अधिक चले राजनैतिक ड्रामे का पटाक्षेप होगा, एवं उस वर्ग को भी आगे आने का अवसर मिलेगा जो सामान्य वर्ग में जन्म लेने के बावजूद आर्थिक विपन्नता का दंश झेल रहा था | सामान्य वर्ग में भी ऐसे अनेकों परिवार हैं जो न तो सही ढंग से जीवन यापन कर पाते हैं, न ही अपने बच्चे को उच्च शिक्षा ही दिला पाते हैं | सरकारी तंत्र की उदासीनता एवं सामाजिक उपेक्षा के शिकार ऐसे परिवारों के लिए आर्थिक आरक्षण पर मिलने वाला आरक्षण संजीवनी की तरह है जिससे इस वर्ग को सामाजिक पुनर्जीवन मिल सकता है |  

हमारे देश में आरक्षण एक जटिल प्रश्न है जिसे कुछ राजनैतिक दलों द्वारा निरन्तर जटिलता प्रदान करने की कोशिश की जाती रही है | आज आरक्षण द्वारा सृजित अनेक अवसर सिर्फ उन लोगों तक ही पहुँच पाते हैं जो आरक्षण का लाभ प्राप्त करते हुए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त हो चुके हैं | आरक्षण का मूल उद्देश्य शोषित एवं वंचित समाज को अवसर प्रदान कर उन्हें समाज के मुख्य धारा से जोड़ना था | बाबा साहब अम्बेडकर का उद्देश्य भी यही था | यदि शोषित एवं वंचित समाज आगे बढ़ेगा तभी देश खुशहाल होगा, देश की समृद्धि एवं विकसित राष्ट्र का स्वरुप भी देश के सभी वर्ग की सकारात्मक सहभागिता पर ही निर्भर है | किसी भी राष्ट्र का विकास तभी सम्भव है जब विकास प्रक्रिया में सभी वर्ग की सहभागिता सुनिश्चित की जाय | वर्तमान सामाजिक एवं राजनैतिक परिवेश में कोई भी राजनैतिक दल आरक्षण को समाप्त करने की सोच भी नहीं सकता, और शायद आरक्षण को समाप्त किया जाना उचित भी नहीं है | परन्तु इसका डर दिखाकर अनेक राजनेता अपनी रोटियां सेंक रहे हैं | हाँ आरक्षण की समीक्षा करना न सिर्फ प्रासंगिक प्रतीत होता है, अपितु यह देश हित में भी है |

आर्थिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण को सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखना चाहिए, न कि इसे राजनैतिक दृष्टि से लाभ अर्जित करने वाले उपकरण के रूप में देखना चाहिए | यह सशक्त एवं समृद्ध समाज की आधारशिला रखेगा, एवं सामान्य वर्ग तथा अन्य वर्ग के बीच में आ रहे वैचारिक दरार को भी समाप्त करेगा | भारतीय संविधान सभी के लिए समान अवसर की बात करता है, एवं ऐसे किसी भी विभेद को समाप्त करने की बात भी करता है जिससे भारतीय समाज में विषमता व्याप्त हो | केंद्र सरकार एवं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकारी तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आर्थिक आधार पर मिलने वाला आरक्षण जरूरतमंद को मिले | यह इसलिए भी आवश्यक है कि गरीबों के लिए दी गई इस संजीवनी को भ्रष्टाचार की आँच से दूर रखा जा सके | एक महत्वपूर्ण बात हमें समझना चाहिए कि आर्थिक आधार पर मिलने वाला आरक्षण का एक सीमित दायरा है, एवं एक आय वर्ग तक का परिवार ही इसका लाभ ले सकता है | यह उन जरूरतमंद परिवारों के लिए है जिनके लिए सामान्य वर्ग में होने के बावजूद दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिल पाती है | विगत दो वर्षों में ई डब्ल्यू एस श्रेणी में सह-आचार्य एवं आचार्य जैसे पदों के लिए निकाले गये विज्ञापन खानापूर्ति मात्र ही है, सरकारी तंत्र को इस दिशा में भी सोचने की आवश्यकता है क्योंकि इस प्रकार से सरकार का यह गम्भीर प्रयास अप्रभावी हो जाता है |

गरीब व्यक्ति की न तो कोई जाति होती है और न ही उसका कोई धर्म ही होता है | सामान्य वर्ग के आर्थिक विपन्न व्यक्ति एवं समाज के लिए रौशनी की किरण दिखाने वाला यह प्रयास तभी सार्थक होगा जब आरक्षण का लाभ लेने वाले समुदाय के साथ ही विपक्ष में बैठी हुई राजनैतिक पार्टियां इसे सामाजिक बदलाव के उपकरण के रूप में देखेंगे न कि इसकी धार को कुंद करने का प्रयास करेंगे | साथ ही सामान्य वर्ग के सक्षम लोगों को यह संकल्प लेना होगा कि सरकार द्वारा प्रदत्त इस आरक्षण का लाभ सिर्फ जरूरतमंद को ही मिले | वैसे तो सही मायने में भारत तभी सशक्त एवं समृद्ध होगा जब किसी भी भारतीय समुदाय एवं समाज को किसी भी प्रकार के आरक्षण की आवश्यकता नहीं होगी | समाज में सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध होंगे, एवं भारतीय समाज की सभी इकाई भारत को एक नई ऊंचाई प्रदान करने के लिए प्रयासरत होगी |   

 

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