मिलावटी ज़हर से मुक्त हो बाजार
भारतीय बाजार आज
मिलावटी उत्पादों से पटा हुआ है | मिलावटी जहर से बने हुए नकली उत्पाद न सिर्फ
हजारों लोगों को मौत के चौखट पर पहुँचा रहे हैं अपितु कई ऐसी गम्भीर बीमारियाँ
बाँट रहे हैं जो उपभोक्ता के जीवन को दीमक की भांति खोखला कर रही है | तीज-त्योहारों
पर मिलने वाली नकली मिठाई हो, या फिर चन्द रुपयों की लालच में आकर बेचीं गयी नकली
दवाई, सौन्दर्य प्रसाधन के उत्पाद हों या फिर मिलावटी दूध जैसा जहर, आज नकली
उत्पाद शहर के साथ ही ग्रामीण बाजारों तक पहुँच चुका है | फल एवं सब्जी जैसे रोज
उपयोग में लाये जाने वाले उत्पाद को भी जहर रुपी रासायनिक पदार्थ के साथ धड़ल्ले से
बेचा जा रहा है | फलों एवं सब्जियों को ताज़ा रखने एवं उन्हें समय से पहले तैयार
करने के लिए कई तरह के रासायनिक पदार्थ उपयोग में लाये जा रहे हैं जिससे आम उपभोक्ता
के समक्ष जीवन संकट उत्पन्न होता दिख रहा है | बड़ी कम्पनियों से लेकर स्थानीय स्तर
पर निर्मित उत्पाद, सरकार द्वारा तय मानकों की अनदेखी करते हुए दिख जाते हैं | उत्पादक, विज्ञापनों की चिकनी-चुपड़ी बातों से आम उपभोक्ता को गुमराह कर उत्पाद के साथ धीमा
जहर बेच लेते हैं, और हमारा क़ानून ऐसे उत्पादकों के हाथ की कठपुतली बन कर रह जाता
है | कभी कोई बड़ा हादसा होने पर कुछ लोगों को नाकाफ़ी सजा अथवा नाकाफ़ी प्रतिबन्ध
अवश्य देखने को मिलता है परन्तु इससे मिलावट के ज़हर का धंधा करने वाले लोगों के
सेहत पर गम्भीर असर नहीं पड़ता है | लचीले क़ानून का फायदा उठाकर मिलावटी उत्पाद
बनाने एवं उसे बेचने वाले अक्सर ही बच निकलते हैं |
बाजार की दृष्टि से भारत विश्व के तमाम
देशों के लिए सबसे अधिक संभावनाओं वाला क्षेत्र है | उत्पाद बनाने
वाली सभी वैश्विक कम्पनियां न सिर्फ भारत के बाजार में पैठ बनाने के लिए तरह-तरह
के हथकण्डे अपनाती हैं अपितु बाजार विस्तार के लिए लगातार प्रयासरत दिखती हैं |
विगत
कुछ वर्ष में भारतीय बाज़ार में नकली उत्पादों की भरमार कई चुनौती पैदा कर चुकी
हैं| वैश्वीकरण के बाद से भारत का उपभोक्ता बाजार विश्व के तमाम देशों के
लिए खुल गया जिससे उत्पाद अथवा सेवा प्रदान वाली विदेशी कम्पनियों ने भारतीय बाजार
में अपनी स्थिति मजबूत करना शुरू कर दिया | कुछ विदेशी
कम्पनियों ने सस्ते उत्पाद के जरिये भारतीय उत्पादों को बाजार से लगभग बाहर कर
दिया तो वहीं कुछ भारतीय कम्पनियों ने बाजार में बने रहने के लिए अपने उत्पाद की
गुणवत्ता से समझौता करना शुरू कर दिया | फलस्वरूप उत्पाद अथवा सेवा की उपलब्धता
तो बढ़ी परन्तु उपभोक्ता हितों पर भी व्यापक असर देखने को मिला | बाजारवाद
की बढ़ती संस्कृति ने उपभोक्ता हितों को सर्वाधिक प्रभावित किया है | अधिक मुनाफे की चाह ने उपभोक्ता हितों
को हाशिए पर ले जाने का कार्य किया है, साथ ही मिलावटी अथवा नकली उत्पादों की
समस्या से भी दो-चार होना पड़ा है |
समस्या तब और बड़ी हो जाती है जब स्थानीय
स्तर पर भी मिलावट का काला ज़हर विभिन्न उत्पादों को विषैला बना देता है | चिकन को जल्द
तैयार करने के लिए प्रतिबंधित दवा देना, लौकी जैसी सब्जी को इंजेक्शन देकर जल्द
तैयार करना, फलों को ऊपर रासायनिक पदार्थों को लेप लगाना, दूध जैसे अमृत तुल्य
पदार्थ में यूरिया मिलाना, गेंहूँ एवं चावल को कीड़े से बचाने के लिए उसमें दवा
मिलाकर बेचना, कहीं न कहीं सेहत के लिए खिलवाड़ ही है | नकली शराब हर साल हजारों लोगों
को मौत की नींद सुला देता है, तो वहीं कोल्डड्रिंक में तय मानकों से अधिक मात्रा
में पेस्टीसाइड मिलना भारतीय उपभोक्ताओं के हितों पर कुठाराघात है | त्योहारों के
समय अक्सर ही मिलावटी सामानों की बिक्री सम्बन्धित समाचार सुनने को मिलते हैं |
कुछ
स्थानों पर सरकारी महकमा छापेमारी कर उत्पाद को जब्त करता दिखता है तो वहीं कुछ
मामलों में गिरफ़्तारी भी दिखती है | परन्तु जब मामला बड़ी कंपनियों से जुड़ा
होता है तो आम उपभोक्ता के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-१९८६ ही अन्तिम विकल्प
नजर आता है जिसकी सहायता से उपभोक्ता न्याय की उम्मीद करता है | हालाँकि
भारत में उपभोक्ता हितों की अक्सर ही अनदेखी की जाती है | उत्पादों की गुणवत्ता
सुनिश्चित करने के लिए अनेक मानक निर्धारित किये गये हैं, फिर भी दैनिक जीवन में
उपयोग किये जाने वाले अनगिनत उत्पाद इन मानकों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं |
ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि भारतीय
बाजार को मिलावट के ज़हर से मुक्त कैसे किया जाये | निश्चित तौर पर यह एक बड़ी
चुनौती है, परन्तु हमें आज नहीं तो कल इस चुनौती का सामना करना ही पड़ेगा | उपभोक्ताओं
द्वारा मिलावटी उत्पाद बनाने वाली कम्पनी का पूर्ण बहिष्कार किया जाना चाहिए, साथ
ही सरकार द्वारा क़ानून बनाकर मिलावटी उत्पाद बनाने वाले लालची लोगों को कठोर सजा
का प्रावधान करना चाहिए | सरकार को निगरानी तंत्र और भी मजबूत करना चाहिए जिससे
मिलावट के दंश से समाज को मुक्ति दिलाई जा सके | हमारे देश में आज भी उपभोक्ता
हितों से जुड़े क़ानून अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे देशों की तुलना में नाकाफ़ी हैं |
ऐसे में २४ दिसम्बर, १९८६ को
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-१९८६ के रूप में मिले उपभोक्ता क़ानून में संसोधन कर कुछ
कठोर प्रावधानों को जोड़ना चाहिए जिससे मिलावटी जहर बाँटने वालों के मन में क़ानून
का डर पैदा किया जा सके | निश्चित तौर पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों द्वारा
सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित रखने का सार्थक प्रयास किया एवं सरकार
द्वारा उत्पाद अथवा सेवा प्रदत्त करने वाली कम्पनियों की मनमानी पर अंकुश लगाने की
ओर कदम बढ़ाया गया | उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सभी वस्तुओं एवं सेवाओं पर लागू होता
है, अतः इसके प्रावधानों की जानकारी प्रत्येक भारतीय को होनी चाहिए जिससे
उपभोक्ता अधिकारों को संरक्षित किया जा सके | वैश्वीकरण के इस
युग में बाजार पर नियंत्रण अथवा निगरानी बहुत ही दुरूह कार्य है | ऐसे
में सरकार का यह फ़र्ज बनता है कि वह प्रत्येक भारतीय नागरिक को उपभोक्ता हितों के
प्रति जागरूक करे | विगत कुछ वर्षों में सरकार ने इस दिशा में
प्रयास भी किया है परन्तु आज भी भारतीय जनमानस अपने उपभोक्ता अधिकारों के प्रति
उतना सचेत व सतर्क नहीं दिखता है जितना कि पश्चिमी देशों के उपभोक्ता अपने
अधिकारों के प्रति सचेत दिखलाई पड़ते हैं | मिलावट के जहर से मुक्ति तभी मिलेगी
जब उपभोक्ता जागरूक होगा, क़ानून सख्त होगा, सरकारी तंत्र की जवाबदेही सुनिश्चित
होगी, एवं सरकार उपभोक्ता हितों के प्रति गम्भीर होगी |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें