राजनीतिक क्षेत्र में महिला भागीदारी महत्वपूर्ण

 


भारत एक लोकतान्त्रिक देश है जो सभी नागरिकों को समानता का अवसर प्रदान करता है | हमारा संविधान लैंगिक आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव की मनाही करता है | संविधान में पुरुषों की भांति ही महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनैतिक स्तर पर समान अवसर की बात की गयी है | निश्चित तौर पर किसी भी देश का विकास उस देश की समग्र जनसंख्या द्वारा सक्रीय सहभागिता की माँग करता है, एवं पुरुष जनसंख्या के साथ ही महिला जनसंख्या की सहभागिता भी महत्वपूर्ण होती है | भारतीय स्वतंत्रता के बाद महिला वर्ग को सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनैतिक स्तर पर अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिससे देश के समग्र विकास पर भी असर देखने को मिला | विशेषतौर पर राजनीति के क्षेत्र में महिला प्रतिनिधियों की संख्या अत्यन्त कम रही जिससे राजनीतिक पटल पर उनकी आवाज को उतना महत्त्व नहीं मिला | इससे नीतियों का निर्माण करते समय भी वर्षों तक महिलाओं से जुड़ी समस्याओं पर कम ही ध्यान दिया गया | फलस्वरूप प्राचीन भारत में अर्धनारीश्वर के रूप में समान स्थान पाने वाली स्त्री पुरुषों से पीछे रह गयी | विगत कुछ वर्षों में सरकार ने न सिर्फ महिलाओं को आगे आने के अनेक अवसर उपलब्ध करायें है अपितु उनके जीवन स्तर में सुधार के लिए विभिन्न स्तर पर प्रयासरत है | महिलाओं से जुड़ी योजनाओं के निर्माण एवं उनके क्रियान्यवन में महिला प्रतिनिधि की आवाज अत्यन्त महत्वपूर्ण है, ऐसे में आधी आबादी की राजनैतिक सहभागिता अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है जिससे नीति-निर्धारण में उन्हें सहभागी बनाया जा सके | राजनीतिक क्षेत्र में महिला भागीदारी का रास्ता दोनों सदनों से होकर जाता है क्योंकि यही वो स्थान हैं जो महिलाओं के राजनैतिक सशक्तिकरण का आधारशिला रखते हैं | दोनों सदनों में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व न सिर्फ महिलाओं को राजनैतिक रूप से सशक्त करेगा अपितु इससे महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण का मार्ग भी प्रशस्त होगा |

वर्ष 2019 में संपन्न हुए 17 वीं लोकसभा चुनाव में पहली बार 78 महिला प्रतिनिधि चुनी गयीं जिससे राजनैतिक क्षेत्र में महिला हिस्सेदारी के सन्दर्भ में आशा की किरण दिखी | वर्तमान समय में लोकसभा में इस बार सर्वाधिक 82 महिला सांसद हैं जबकि राज्यसभा में महिला सांसदों की संख्या 33 है | यह पहला अवसर है जब संसद के दोनों सदनों में महिला सांसदों की मिलाकर संख्या 100 से अधिक है | निश्चित तौर पर इसे संतोषजनक स्थिति कहा जा सकता है | परन्तु वर्षों से लम्बित महिला आरक्षण विधेयक का दोनों सदनों में पारित न हो पाना भारतीय राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व के बारे में तमाम राजनैतिक पार्टियों की सोच पर प्रश्नचिन्ह खड़े करता है | महिला आरक्षण विधेयक के रास्ते में रोड़ा अटकाकर कुछ राजनैतिक दल भले ही त्वरित लाभ प्राप्त करते हों, परन्तु इससे राजनैतिक क्षेत्र में समान महिला भागीदारी का मार्ग अवरूध्द होता है | आम तौर पर राजनैतिक दलों द्वारा महिला प्रत्याशियों को टिकट देने में भी कंजूसी की जाती है जिसका असर सदन में महिला प्रतिनिधित्व पर भी पड़ता है | सरकार में महिला मंत्रियों की संख्या भी कम ही होती है जो महिला हितों पर असर डालती है, एवं समग्र रूप से महिला सशक्तिकरण पर इसका असर पड़ता है |

सरकार द्वारा वर्ष 1992 में 73 वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायत स्तर पर महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए लागू किया गया ‘पंचायती राज एक्ट’ एक महत्वपूर्ण कदम है जिसने न सिर्फ पंचायतों में एक तिहाई महिला हिस्सेदारी सुनिश्चित हो सकी, एवं कुछ राज्यों में यह हिस्सेदारी पुरुषों के समकक्ष है | त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं द्वारा किया गया कार्य भविष्य की राजनीतिक व्यवस्था पर भी प्रकाश डालता है | वर्तमान में पढ़ी-लिखी महिला प्रतिनिधि अपने कार्यों से न सिर्फ ध्यान आकर्षित कर रही हैं अपितु पुरुष प्रधान राजनीति में अमिट छाप भी छोड़ रही हैं | निश्चित तौर पर पंचायत स्तर पर महिलाओं की बढ़ती संख्या एक सुखद संकेत है, परन्तु अभी भी महिलाओं की वास्तविक भागीदारी की राह में कई रोड़े भी हैं | प्रधान-पति एवं प्रधान-ससुर की छत्र-छाया से निकलना एक बड़ी चुनौती है, यह चुनौती तब और भी बड़ी हो जाती है जब महिला आरक्षित सीट प्राप्त करने के लिए पूर्व पंचायत प्रतिनिधि ही अपने घर की महिला को चुनाव लड़ाता है एवं चुनाव जीतने पर अपरोक्ष रूप से पंचायत प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है | वह न सिर्फ प्रतिनिधि क्षेत्र में पंचायत सदस्य के रूप कार्य करता है अपितु विभिन्न प्रशासनिक बैठकों में भी हिस्सा लेता है | इससे वास्तविक रूप में पंचायत कार्यों में महिला भागीदारी नहीं हो पाती जिससे सरकार द्वारा किया जा रहा प्रयास सार्थक नहीं हो पाता है |

21 वीं सदी के भारत में महिला सशक्तिकरण नितान्त आवश्यक है जिसका रास्ता राजनैतिक क्षेत्र में महिला भागीदारी से होकर जाता है | यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं की आवाज़ सुनी जाये, महिलाओं से जुड़ी नीतियों को बनाते समय महिला सहभागिता हो, एवं महिलाओं को वास्तविक रूप में राजनैतिक प्रतिनिधित्व मिले | इसके लिए आवश्यक है कि संविधान द्वारा प्रदत्त समानता का अधिकार सिर्फ कागजों तक सीमित न रहे, एवं अतिशीघ्र महिला आरक्षण बिल पारित हो | महिला सशक्तिकरण के तमाम प्रयास तभी सफल होंगे जब महिलाएं अपने अधिकारों से अवगत होने के साथ ही प्राप्त अवसर को पूरे आत्मविश्वास के साथ बिना किसी बैशाखी के भुना पायेंगी | एक सशक्त भारत के निर्माण में भी महिलाओं की राजनैतिक भागीदारी महत्वपूर्ण हो जाती है | आज देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर महिला प्रतिनिधित्त्व एक अनुकूल परिस्थिति प्रदत्त करता है, एवं राजनैतिक दलों से अपेक्षा की जाती है कि राजनैतिक क्षेत्र में महिलाओं की समान भागीदारी के लिए आवश्यक कदम बढ़ाये | राजनीति से जुड़ा होने के बावजूद यह विषय राजनीति की माँग नहीं करता है | अतः पक्ष एवं विपक्ष में बैठे सभी दलों को अपना राजनैतिक तराजू किनारे रखकर देश हित में समान महिला भागीदारी के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना होगा | राजनीतिक क्षेत्र में समान महिला भागीदारी से न सिर्फ भारत का राजनैतिक परिदृश्य बदलेगा अपितु सही मायने में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होंगी |

 

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