हिन्दी पत्रकारिता : संभावनाएं एवं चुनौतियाँ

 


विगत कुछ वर्षों में हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में कई बदलाव देखने को मिले हैं | कुछ बदलाव जहाँ सकारात्मक प्रतीत होते हैं तो वहीं कुछ बदलाव २०० वर्ष पूरे करने की ओर अग्रसर हिन्दी पत्रकारिता के समक्ष कठिन चुनौती प्रस्तुत करते नज़र आते हैं | प्रसार संख्या की दृष्टि से अंग्रेजी समाचार पत्रों से काफी आगे निकल चुके हिन्दी समाचार पत्र इसके समृद्ध संसार को दर्शाते हैं तो वहीं हिन्दी समाचार चैनल तेजी से बाजार विस्तार कर रहे हैं | अच्छी यातायात व्यवस्था, साक्षरता दर में सुधार, एवं उन्नत तकनीकी ने समाचार पत्रों को ग्रामीण पाठकों तक पहुँचाने का कार्य किया है, इसके साथ टी वी चैनल बड़ी तेजी से क्षेत्र विस्तार करने में लगे हैं जिससे सुदूरवर्ती क्षेत्रों एवं ग्रामीण अंचलों में भी सिर्फ दूरदर्शन सेवा प्राप्त करने की बाध्यता  समाप्त हो गई है | आज हिन्दी पत्रकारिता, अंग्रेजी एवं अन्य भाषायी पत्रकारिता से कोसों आगे नज़र आती है जिन्हें आई आर एस की रिपोर्ट पुष्ट करती है | टेलीविजन रेटिंग पॉइंट में भी हिन्दी समाचार चैनलों को आगे देखा जा सकता है | हिन्दी पत्रकारिता के बाजार विस्तार के पीछे हिन्दी भाषी पाठक एवं दर्शक वर्ग की प्रभावी भूमिका नजर आती है | नये भारत की संकल्पना ने भी हिन्दी पत्रकारिता को नया पंख दिया है, इस संकल्पना ने हिन्दी-भाषी  पाठक अथवा दर्शक के स्वाभिमान को जागृत करने के साथ ही नीजि भाषा के प्रति लगाव उत्पन्न करने का कार्य किया है | एक तरफ हिन्दी पत्रकारिता का दायरा बढ़ा है तो वहीं इसके समक्ष कई चुनौतियाँ भी दिखी हैं |

वैश्वीकरण के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों ने हिन्दी पत्रकारिता की दिशा एवं दशा दोनों पर ही व्यापक प्रभाव डाला है जिससे सामाजिक सरोकारों से जुड़ी रहने वाली पत्रकारिता की यह विधा अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है | पत्रकारिता के क्षेत्र में हो रहे नये प्रयोग एवं नई प्रवृत्तियों से भी यह क्षेत्र अत्यधिक प्रभावित हुआ है | पं० युगल किशोर, भारतेंदु हरिश्चंद्र, विष्णु राव पराड़कर एवं गणेश शंकर विद्यार्थी के सपनों की हिन्दी पत्रकारिता बाजार के भंवरजाल में जकड़ सी गई है जिसे आन्तरिक एवं वाह्य स्तर पर कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है | कभी हिन्दी भाषा को समृद्ध करने वाली हिन्दी पत्रकारिता के समक्ष आज भाषा सम्बन्धित गम्भीर चुनौती नजर आती है | हिन्दी पत्रकारिता में अंग्रेजी शब्दों का चलन तेजी से बढ़ रहा है, वहीं व्याकरण सम्बन्धित अशुद्धियां भी देखने को मिलती हैं | क्षेत्रीय भाषा का हस्तक्षेप भी दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है, जिसे हिन्दी समाचार पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार चैनलों द्वारा सहज ही अंगीकार किया जा रहा है | कुछ लोग इसे भले ही बाजार की माँग बताते हैं परन्तु अनेक विद्वान विकृत होती हिन्दी भाषा को एक संकट के रूप में देखते हैं | उनका मानना है कि हिन्दी समाचार पत्रों में भाषा एवं वर्तनी की अशुद्धियों से बचना चाहिए, एवं ऐसे प्रयोगों से भी बचना चाहिए जो हिन्दी भाषा में मिलावट का जहर घोलते हों | हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार, विकास एवं परिमार्जन में हिन्दी के पत्र-पत्रिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है | आज भाषा के स्वरुप में विकृति को अनदेखा किया जा रहा है और व्याकरण के नियमों की उपेक्षा हो रही है | अंग्रेजीयत से प्रभावित युवा उपभोक्ताओं को आकृष्ट करने के लिए अनेक प्रयोग किये जा रहे हैं जिससे भाषा सम्बन्धित बिशुद्धि का संकट गहराता जा रहा है | समाचार संगठनों से जुड़े लोगों की हिन्दी भाषा पर पकड़ ढ़ीली पड़ती जा रही है तो वहीं पाठक अथवा दर्शक भी इसे सहज स्वीकार कर लेता है | भले ही हम भाषा सम्बन्धित अशुद्धियों को बाजार की माँग बताकर इतिश्री कर लेते हैं परन्तु इससे हमारी प्रतिष्ठा पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है | निश्चित तौर पर जनमाध्यमों की भाषा साहित्यिक नहीं है परन्तु आम जनमानस की भाषा होने के नाते यह त्रुटिहीन एवं मर्यादित होनी चाहिए | यह तभी सम्भव है जब हिन्दी समाचार संगठनों में सम्पादक नामक संस्था को प्रभावी बनाया जायेगा | भाषा सम्बन्धित चुनौती भले ही समाचार संगठनों का आन्तरिक मामला है परन्तु आमजन के सरोकारों से जुड़ी होने की वजह से इस चुनौती को समाप्त करना भी इनकी नैतिक जिम्मेदारी है | हिन्दी समाचार चैनल अक्सर ही भाषायी मर्यादा का उलंघन करते दिखलाई देते हैं जो न सिर्फ़ हिन्दी पत्रकारिता के सरोकारों पर कुठाराघात है अपितु जनमानस पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है |

तकनीकी बदलाव ने भी हिन्दी पत्रकारिता के रूप एवं स्वरुप पर व्यापक असर डाला है | एक तरफ जहाँ डिजिटल प्लेटफार्म पर समाचार पत्र की उपलब्धता अनिवार्य बनती जा रही है वहीं साधारण समाचार पत्रों के लिए यह एक नई चुनौती प्रस्तुत कर रही है | आज का युवा वर्ग अपने स्मार्टफोन अथवा कम्प्यूटर स्क्रीन पर समाचार पत्र पढ़ता है | बड़े समाचार पत्रों ने ऑनलाइन संस्करण के माध्यम से बाज़ार में अपनी उपलब्धता सुनिश्चित की है परन्तु छोटे समाचार पत्रों के लिए यह कार्य अपेक्षाकृत कठिन प्रतीत हुआ है | इसकी एक बड़ी वजह तकनीकी रूप से दक्ष टीम का अभाव भी है | छोटे समाचार पत्र भी ऑनलाइन प्लेटफार्म पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे हैं परन्तु गुणवत्तापूर्ण परिणाम प्रस्तुत करना अभी भी एक चुनौती बनी हुई है | तकनीकी बदलाव ने समाचार संकलन एवं प्रकाशन को भी बदलने का कार्य किया है | डिजिटल तकनीकी के साथ ही समाचार चैनलों ने भी ऑनलाइन प्लेटफार्म के तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है जिससे इन्हें एक नया ग्राहक वर्ग प्राप्त हुआ है | तकनीकी बदलाव ने हिन्दी समाचार पत्रों को आकर्षक स्वरुप प्रदान किया है वहीं दूसरी तरफ हिन्दी समाचार चैनलों में ढाँचागत बदलाव भी किया है | उन्नत होती तकनीकी को हम सकारात्मक बदलाव के रूप में देख सकते हैं परन्तु जिस तेजी से तकनीकी बदलाव हो रहे हैं उनसे कदम-ताल मिलाकर आगे बढ़ना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है | विशेषकर उन समाचार पत्रों अथवा समाचार चैनलों के लिए जो कम पूँजी से संचालित होने पर विवश हैं | इन समाचार संगठनों से जुड़े लोगों के लिए भी ये तकनीकी बदलाव चुनौतीपूर्ण दिखते हैं |

वस्तुनिष्ठता पत्रकारिता की आत्मा है | इसके साथ किसी भी प्रकार का समझौता न सिर्फ समाचार संगठन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है अपितु पाठक या दर्शक को दूर कर देता है | वस्तुनिष्ठता के साथ समझौता करने से विश्वसनीयता का संकट खड़ा होगा जिससे समाचार के चयन एवं प्रसार की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है | कई बार राष्ट्रीय समाचार चैनलों द्वारा प्रमुख मुद्दों को उपेक्षित कर दिया जाता है या फिर उसे इतना गौण बनाकर किसी दूसरे समाचार की तरफ पाठक अथवा दर्शक को मोड़ दिया जाता है जो न्यायोचित नहीं है | बाजार के दबाव ने वस्तुनिष्ठता को भी प्रभावित किया है, बड़े उद्योग समूहों ने भले ही इसके क्षेत्र एवं बाजार विस्तार में योगदान दिया है परन्तु समय के साथ उनका हस्तक्षेप भी बढ़ा है | विदेशी पूँजी निवेश ने भले ही इसे व्यावसायिक रूप से सशक्त किया है परन्तु इससे समाचार पत्र की नीतियों पर पड़ रहे असर को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है | सरकारी नीतियों का भी समाचार संगठनों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है | समाचार प्रसार की प्रक्रिया प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में सरकारी हस्तक्षेप से प्रभावित होती है | पिछले कुछ वर्षों में सरकारी विज्ञापन के माध्यम से सरकार पर समाचार संगठनों को प्रभावित करने का आरोप लगता आ रहा है जिससे सबसे ज्यादा हिन्दी मीडिया प्रभावित दिखती है | छोटे मीडिया संगठनों का दम तोड़ना भी हिन्दी पत्रकारिता के लिए उचित नहीं है | अब प्रश्न यह है कि भाषा सम्बन्धित चुनौती को किस प्रकार से समाप्त किया जाय | निश्चित तौर पर इसका उत्तर हिन्दी पत्रकारिता से जुड़े लोगों को ही ढूँढना होगा, साथ ही सामाजिक सरोकारों को आत्मसात कर जनहित में कार्य करने वाली इस विधा को बाजार के नकारात्मक प्रभाव से बचाने का प्रयास करना होगी | तकनीकी बदलाव को सकारात्मक रूप में लेना होगा जिससे तकनीकी का उपयोग इसकी उन्नति का संवाहक बने |

 

 

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