बेटियां क्यों सहमी हैं?
द्रोपदी की चीखें सुन क्या कोई कन्हैया आयेगा |
मानव रूपी गिद्धों से एक नारी को आज बचाएगा ||
बेटी पैदा होने पर पिता का भय कब होगा गौण |
जहां की बात कर आये...
भीष्म सरीखे मुखिया की चुप्पी जब तक रहेगी |
औरत अपनी पीड़ा किससे ही बिना डरे कहेगी ||
अबला समझकर कब तक जननी नोंची जायेगी |
कोई निर्भया कब तक ही अपनी जान गवायेगी ||
हैवानों की हैवानियत को आज फिर रोकेगा कौन |
जहां की बात कर आये...
इंसानों के भेष में जानवर चहुँओर ही भरे पड़े हैं |
लगा मुखौटा शराफत का सज्जन बनकर खड़े हैं ||
घर में भी महफूज नहीं हैं आज अगर बहू- बेटियां |
गाँव मुहल्ले के भाई भी कसते हैं आज फब्तियाँ ||
रिश्तों के बुनियाद पर आज यकीं फिर करेगा कौन |
जहां की बात कर आये...
बेटियां क्यों सहमी बैठें जिनसे घर में खुशियाँ हों |
माँ के ममता की परछाईं और पापा की परियां हों ||
बन अर्धांगिनी जो सृजन सा हम पर उपकार करे |
माँ बन इस धरा पर जीवन का 'दीप' संचार करे ||
बदलें अपनी सोच को आज तोड़ें हम भीष्म सा मौन |
जहां की बात कर आये...
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