जाँच जारी है जनाब
कहते हैं सच को लाख छुपाया जाय यह छुपता
नहीं है । यह किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाता
है । भले
ही इसे सामने आने में सालों लग जाय और इस सच को सामने लाने का काम किसी न किसी
जाँच विभाग का होता है जिसे बाल की खाल निकाल कर सत्य की जड़ तक पहुँचना होता है । अब आप कहेंगे की आप के पड़ोसी शुक्ला जी भी तो
हमेशा बाल की खाल निकालते रहते हैं । मसलन मोहल्ले में
किसके यहाँ कौन आया? कहाँ से आया ? किस काम से आया ? इत्यादि का पता लगाकर ही दम
लेते हैं । जाँच-पड़ताल की इस शोध उपलब्धि की
प्रक्रिया में मन्दिर के घंटे की तरह कई बार बज भी चुके हैं फिर भी अपना काम बड़ी
तल्लीनता के साथ करते हैं । खैर ! हमारे देश में कुछ जाँच इस शिद्दत के साथ
की जाती है कि जब जाँच पूरी होती है तो जिसकी जाँच चल रही होती है वो दूसरी दुनिया
में जाँच करा रहा होता है और कभी कभी तो
जाँच करने वाले की ही जाँच की नौबत आ जाती है । बिहार को ही लें, कुछ साल पहले पशुओं का चारा
कोई खा गया था । अब खाने वाली चीज को किसी ने खा लिया तो
इसमें हाय तौबा की नौबत कहाँ से आई, लेकिन नहीं ! जाँच तो जरुरी थी जनाब । जाँच चल भी रही है । अब इसमें समय तो लगेगा ही । पशु बेचारे चिल्लाने के अलावा कुछ कर नहीं सकते,
और तो और उनकी गवाही भी मान्य नहीं है जिनके साथ ऐसी नाइंसाफ़ी हुई थी उनको गुजरे
हुए कई साल हो गये, अब नई पीढ़ी इस महंगाई में अपने लिए चारे का इन्तजाम करे या फिर
मुकदमा लड़े ? थक हार वो भी इस बात पर संतोष कर चुकी है कि जाँच तो जारी है ।
पश्चिम बंगाल में भी चिटफंड में फंसी कुछ
कंपनियों की जाँच दो साल से जारी है । रोजवैली ने जहाँ
गरीब मजदूरों की दिहाड़ी कमाई को अपनी तिजोरी में भरा है वहीं शारदा ने मध्यमवर्गीय
परिवारों के सपनों को ठगने का कार्य किया है । पर मुख्यमंत्री की नज़र में दोनों ही समूह न
सिर्फ पूरी तरह से पाक साफ़ हैं बल्कि इन दोनों समूहों की कमीज़ मुख्यमंत्री साहिबा
ने सर्फ़ एक्सल से खुद ही धोई है । इसलिए इनका दामन दूध
से भी ज्यादा सफ़ेद बना हुआ है । भूख से बिलबिलाते
बच्चे को दिलासा दिला रहा गरीब और खुद की नजरों के सामने जमींदोज होते सपनों को
पथराई आँखों से देखने वाला मध्यमवर्गीय अपनी ममता दी से सिर्फ इतनी उम्मीद पाले
हुए है कि एक दिन उनके दर्द का एहसास दीदी को होगा और वो जाँच में सहयोग करेंगी । शायद उन्हें इस बात का एहसास नहीं कि यह जाँच जारी तो रहेगी परन्तु कभी पूरी नहीं होगी । शीला से लेकर जया तक, मुलायम से लेकर माया तक,
पवार से लेकर कलमाड़ी तक जाँच की आंच पहुंची तो जरुर पर इसकी तपिश शायद ही किसी को
महसूस हुई । अधिकांश मामलों में जाँच अभी चल रही है और
इनके पुरे होने की सम्भावना निकट भविष्य में शायद ही है । केजरीवाल
साहब शीला जी के घोटालों की वो थैली कहीं रखकर भूल गये लगते हैं वरना अब तक जाँच
कराकर शीला जी को जेल भेजवा चुके होते । हो सकता है कि सारी
फाइलें कपिल मिश्रा जी के घर पर रख दिया हो । बसपा सुप्रीमों की फ़ाइल् भी नसीमुद्दीन भाईजान
हथिया चुके हैं वरना वो बीजेपी के साजिशों का पर्दाफाश करने में देर नहीं लगाती ।
बोफ़ोर्स घोटाले की जाँच कब खत्म होगी,
शायद भगवान को भी नहीं मालूम है । इस जाँच की जाँच
करने के लिए एक जाँच आयोग की जरुरत है जो यह पता लगाये कि इस जाँच के लिए जो जाँच
आयोग गठित किये गये उन्होंने कैसे जाँच किया कि घोटाले की रकम से ज्यादा जाँच में
खर्च हो गये । वैसे वाड्रा साहब ने खून पसीने की कमाई
से कुछ एकड़ जमीन लिया था उसकी भी जाँच चल रही है । शायद यह जाँच भी तब तक जारी रहेगी जब तक कि
खेमका साहब यह नहीं कह देते कि वाड्रा साहब तो निर्दोष हैं । अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक महत्वपूर्ण
जाँच समिति बनाई गयी है जो यह जाँच करेगी कि लगभग सौ बच्चे ओक्सीजन की कमी से मर
गये या फिर किसी की लापारवाही से । हम आपको बता दें कि
जाँच समिति कुछ साल में इस नतीजे पर पहुँचेगी कि इसके पीछे मच्छर के एक गिरोह की
साजिश थी जिसने लश्कर के इशारे पर इस घटना को अन्जाम दिया था । साजिश से याद आया, सुनन्दा पुष्कर मामले में भी जाँच जारी है और इस
बात का पता लगाया जा रहा है कि यह हत्या थी या आत्महत्या । उनकी मौत की गुत्थी ठीक उसी तरह से उलझी हुई है
जैसे काले हिरण के शिकार का मामला । सूत्रों की मानें तो हिरण के परिजनों ने जाँच
समिति के सामने यह स्वीकार कर लिया है कि उसने गरीबी से तंग आकर आत्महत्या कर ली
थी, भाईजान बिल्कुल निर्दोष हैं । अब जाँच समिति यह
पता करने की कोशिश कर रही है कि कहीं इस आत्महत्या के पीछे कोई और कारण तो नहीं ?
अब आप कहेंगे कि कम से कम हमारे यहाँ जाँच
तसल्ली से तो होती है, पाकिस्तान थोड़े ही है जहाँ कुछ ही महीने में जाँच की वजह से
प्रधानमंत्री को कुर्सी गवानी पड़ी । यह अमेरिका भी नही है
जहाँ राष्ट्रपति को सत्ता से हाथ धोना पड़ा । अब पनामा में कुछ लोगों का नाम आने पर सजा थोड़े
दे सकते हैं ? जब तक इसकी जाँच नहीं हो जाती, तब तक किसी को दोषी ठहराना ठीक नहीं । अब जाँच करने में दस बीस साल तो लगेंगे ही जैसे
स्विस बैंक में जमा काले धन का पता लगाने में लग रहे । अब आप ही बताइये ! भारत जैसे विविधता वाले देश
में जाँच इतना आसन काम है क्या ? जाँच समितियों को जाति, धर्म और दल विशेष का भी
तो ध्यान रखना है । वर्तमान
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कहते हैं कि हम पूर्ववर्ती सरकार के समय में हुए
कार्यों की जाँच करायेंगे तो पूर्व प्रधानमन्त्री और पूर्वमुख्यमंत्री कहते हैं कि
हमने भी सत्ता इसी वादे को करके हासिल की थी । वह इस
बात से नहीं डरते कि उनके कार्यकाल में हुई अनियमितताओं की जाँच होने जा रही है
बल्कि इस बात से खुश होते हैं कि इसी बहाने वह मीडिया की नज़र में जीवित तो रहेंगे । रही बात जाँच की तो उन्हें इस बात का पूरा विश्वास
होता है कि यह जाँच भी उनके समय में हो रही जांचों की तरह ही जारी रहेगी ।
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