चुनाव नजदीक है



कल गाँव से भैया का फ़ोन आया था बता रहे थे कि ३ साल पहले जो पुलिया टूट गयी थी और जिसकी वजह से सैकड़ों गाँव के लोगों को शहर जाने के लिए कई किलोमीटर ज्यादा चलना पड़ता था, उसके मरम्मत का काम शुरू हो गया है । सांसद निधि से सांसद महोदय ने पुरे २२ लाख रूपये दिए हैं और साथ ही पी डब्ल्यू डी के अभियन्ता को निर्देश भी कि जल्द से जल्द पुलिया के मरम्मत का काम पूरा कर उन्हें रिपोर्ट भेजा जाय । माननीय ने सभी आला अधिकारियों को लताड़ भी लगाई । उन्होंने कहा कि मेरे क्षेत्र की जनता को किसी भी तरह की तकलीफ हो, कत्तई बर्दाश्त नहीं किया जायेगा । मैंने भैया से पूछा कि क्या सांसद जी को पुलिया टूटने की ख़बर नहीं थी ? पिछले ३ साल में वो कभी गाँव के तरफ नहीं गये ? क्या उनके शुभचिंतकों ने उन्हें गाँव वालों की परेशानियों से अवगत नहीं कराया ? इतने सारे प्रश्न सुनकर भैया ने बात को टालते हुए कहा कि माननीय के पास क्षेत्र के अलावा सैकड़ों काम हैं, रही बात इस तरफ आने कि तो मंत्री बनने के बाद विधानसभा चुनाव के दौरान हेलीकॉप्टर से  प्रचार करने आये थे, ऐसे में इतनी छोटी समस्या पर उनका ध्यान ही नहीं गया होगा या फिर उनको किसी ने बताया नहीं होगा । गाँव वाले इसी बात से खुश हैं कि चुनाव से पहले पुलिया का मरम्मत तो हो जायेगा और उन्हें शहर के लिए काफी घुमकर नहीं जाना पड़ेगा ।
कुछ दिन पहले गाँव के जुम्मन चाचा फोन करके बता रहे थे कि पिछले साल बाढ़ से जो फसल नुकसान हो गयी थी उसका मुवावजा ४ हजार रूपये उन्हें मिल गये हैं । चाचा ने फ़ोन इसलिए किया था कि अगर मुझे जरुरत है तो वो आधा पैसा भेज देंगे वरना मेरे गाँव आने तक वो मेरा हिस्सा सम्भालकर रखे रहेंगे । पिताजी के देहावसान के बाद चाचा ही खेती का काम देखते थे । पिछले दो साल से कभी सूखा तो कभी बाढ़, चाचा की मेहनत पर पानी फेर जाते । पिछले साल  चाचा को सूखा राहत के एवज में कुल ९३ रूपये मिले थे जिसमें से ५० रूपये पटवारी ने ले लिया था । पूरे ४ हजार पाकर वो काफी खुश थे, इस बार उन्हें लेखपाल और पटवारी को दक्षिणा नहीं देनी पड़ी, पैसा सीधे खाते में आ गया । वरना आधा से ज्यादा पैसा तो लेखपाल और पटवारी ही हजम कर जाते थे और पूछने पर मंत्री और कलेक्टर साहेब का नाम बता देते थे परन्तु इस बार न तो लेखपाल हिस्सा लेने आया और न ही पटवारी ही दक्षिणा की फरमाइश की । जुम्मन चाचा इस बात से हतप्रभ थे कि एक नंबर के लालची पटवारी ने इस बार पान भी अपने पैसे से मँगवाए और तो और लेखपाल ने इस बार लिस्ट से नाम काटने की धमकी भी नहीं दी । बैंक पर मक्खियों की भांति मंडराने वाले दलाल भी इस बार नदारद थे और चाचा पूरा पैसा निकालकर घर लेते आये थे । 
इधर बीच सरकारी नौकरियों के विज्ञापन भी पिछले कुछ दिनों से खूब आ रहे हैं । विभिन्न पदों के लिए निकाले जाने वाले विज्ञापनों में आरक्षित पदों की भरमार है । प्रधानमंत्री जी ने जबसे दलितों और पिछड़ों को उनका हक दिलाने के लिए आवाज बुलन्द की है, सभी मन्त्रालय कुम्भकर्णी नींद से जाग गये हैं और आनन- फानन में बैकलॉग के सभी पदों को भरने का कमर कस चुके हैं । हर एक मन्त्रालय दलितों का मसीहा बनने को व्याकुल है और इस व्याकुलता का आलम यह है कि अचानक से सरकारी नौकरियों से सम्बन्धित विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गयी है । कोई भी मन्त्रालय पीछे नहीं रहना चाहता, लगता है इस बार चुनाव के एजेण्डे में दलित कार्ड है । चार साल से नौकरी की आस में सैकड़ों फॉर्म भरने वाला सामान्य वर्ग का युवा सरकारी खजाने को भले ही भरने का साधन रहा हो, दलित वर्ग के युवाओं के लिए सभी फॉर्म निःशुल्क भरने की व्यवस्था की गयी है । विज्ञापनों की शक्ल में ये चुनावी झुनझुने भले ही कुछ वोट जुटा जाए परन्तु चुनाव के बाद ये युवा वर्ग को और कुण्ठित करने का कार्य ही करेंगे । चुनाव भले ही दलित और सामान्य वर्ग के युवाओं को दो चश्मे से देखने की मज़बूरी हो परन्तु चुनाव बाद युवा वर्ग सिर्फ बेरोजगार वर्ग ही रहने वाला है ।
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम बढ़ने पर भी सरकार दुसरे देशों को पेट्रोल और डीजल निर्यात करने वाली दर से देश के नागरिकों को भी पेट्रोल एवं डीजल उपलब्ध करा रही है । अब न ही सरकार को सरकारी खजाने की चिंता है और न ही पूंजीपति मित्रों को फायदा पहुँचाने की विवशता । अचानक से बिजली की उपलब्धता भी बढ़ गयी है, गाँव में सबके सो जाने के बाद आने वाली और पौ फंटने से पहले ही ओझल हो जाने वाली बिजली रानी रातों को जगमग रखने को व्याकुल दिखती है । प्याज और दाल के दाम भी कुछ दिनों से औंधे मुँह गिरे पड़े हैं । इस बार सरकार ने पिछले कुछ सालों की भांति कोई नया कर नहीं थोपा है वरना क्या मजाल जो आम आदमी सरकार के नाक के नीचे कुछ पैसे जोड़ ले और सरकार मूकदर्शक बनी रहे । कभी किसानों के नाम पर, कभी सफाई के नाम पर तो कभी शिक्षा के नाम पर हर साल एक नया कर जनता पर लादने वाली सरकार इस बार कोई भी नया कर नहीं लगा रही तो इसके पीछे जरुर कोई बड़ा कारण है ।
अपने पूरे कार्यकाल में क्षेत्र की जनता से दूरी बनाने वाले माननीय का क्षेत्र में अचानक आवागमन बढ़ गया है तो निश्चित ही कोई विशेष कारण होगा । सरकारी विभागों में धक्के खाने वालों की गुहार अचानक सुनी जाने लगे तो जरुर कोई कारण होगा । दशकों से रिक्त पड़े पद विज्ञापित किये जा रहे तो इसके पीछे भी बहुत बड़ा कारण हो सकता है । सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलटकर अचानक से दलित राग़ अलापा जा रहा है तो इसके पीछे भी जरुर कोई ठोस कारण होगा । महंगाई से कराह रहे आम आदमी को अचानक से राहत मिल रही है तो हमें समझ लेना चाहिए कि चुनाव नजदीक है । काश ! जनता और चुनाव की नजदीकी ऐसे बनी रहती ।




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