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बाजारवाद और उपभोक्ता संरक्षण

बाजार की दृष्टि से भारत विश्व के तमाम देशों के लिए सबसे अधिक संभावनाओं वाला क्षेत्र है | उत्पाद बनाने वाली सभी बड़ी कम्पनियां न सिर्फ भारत के बाजार में पैठ बनाने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाती हैं अपितु बाजार विस्तार के लिए लगातार प्रयासरत दिखती हैं | वैश्वीकरण के बाद से भारत का उपभोक्ता बाजार विश्व के तमाम देशों के लिए खुल गया जिससे उत्पाद अथवा सेवा प्रदान वाली विदेशी कम्पनियों ने भारतीय बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करना शुरू कर दिया | कुछ विदेशी कम्पनियों ने सस्ते उत्पाद के जरिये भारतीय उत्पादों को बाजार से लगभग बाहर कर दिया तो वहीं कुछ भारतीय कम्पनियों ने बाजार में बने रहने के लिए अपने उत्पाद की गुणवत्ता से समझौता करना शुरू कर दिया | फलस्वरूप उत्पाद अथवा सेवा की उपलब्धता तो बढ़ी परन्तु उपभोक्ता हितों पर भी व्यापक असर देखने को मिला | बाजारवाद की बढ़ती संस्कृति ने उपभोक्ता हितों को सर्वाधिक प्रभावित किया है |   अधिक मुनाफे की चाह ने उपभोक्ता हितों को हाशिए पर ले जाने का कार्य किया है, साथ ही मिलावटी अथवा नकली उत्पादों की समस्या से भी दो-चार होना पड़ा है | त्योहारों के समय अक्सर ही ...

मैं हिंदू हूँ

सत्य सनातन का संवाहक, हिंद-कुश का हिंदू हूँ | सप्तऋषियों का वंशज मैं, नभमण्डल का बिंदू हूँ || राम की मर्यादा मुझमें, कृष्ण की आभा है मुझमें | भगीरथ सा तप है मुझमें, प्रेम भाव का मैं सिंधू हूँ || वेद-पुराण रग-रग में मेरे, धर्म-नीति जीवनपथ में मेरे | त्याग दधीचि सा है मुझमें, मैं सृष्टि का केंद्र बिंदू हूँ ||

बढ़ता प्रदूषण, हाँफती सरकार

  विगत कुछ वर्षों से नवम्बर दिल्ली-वासियों के लिए अत्यधिक मुश्किलों भरा महीना साबित हुआ है | एक तरफ वायु प्रदूषण ने दिल्ली के नागरिकों की सांसों में ज़हर घोलकर उन्हें कई प्रकार की बिमारियों का दंश झेलने पर मजबूर किया है तो वहीं यमुना में बढ़ते प्रदूषण ने अधिसंख्य को दूषित जल पीने पर मजबूर किया है | यमुना में तैरते रासायनिक झाग वर्षों से चल रहे ‘यमुना एक्शन प्लान’ की खामियों को उजागर करते हैं वहीं नमामि गंगे योजना के अन्तर्गत यमुना को साफ करने के केंद्र के प्रयासों पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं | राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा अरबों रूपये खर्च करने के बावजूद दिल्ली को गैस चैम्बर के रूप में देखकर सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाई है और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने आपातकालीन बैठक बुलाकर सम्बन्धित अधिकारियों को प्रदूषण की वर्तमान स्थिति पर काबू पाने के लिए यथाशीघ्र उपाय करने का निर्देश दिया है |  मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना की सख्त टिप्पणी से राज्य सरकार जागी तो है परन्तु प्रदूषण नियंत्रित करने के सारे उपाय पूर्व में किये गये उपायों की भांति अल्पकालिक राहत देने वाले ही ...

आजादी पर्व

  आओ सब मिलकर हम, आजादी पर्व मनायें | हर चौखट पर खुशियों के, दीपक एक जलायें || वीर शहीदों की वो कुर्बानी, सार्थक हम बनायें | आओ मिलकर आज तिरंगा ऊँचा हम फहरायें ||   कल को याद करें हम, कल की याद दिलायें | शान तिरंगे की खातिर, हम हँस के मर जायें ||   हों साकार सपने, भगत सिंह और आजाद के | तुम छेड़ो कोई तराने, कोई गीत हम गुनगुनायें ||   लाखों शहीद हुए थे, इस तिरंगे को लहराने में | आजाद हिन्द के नभ में, राष्ट्र-गौरव फहराने में || दें श्रद्धांजलि वीरों को हम, उत्सव आज मनायें | भ्रष्टाचार के दीमक को हम, जड़ से आज मिटायें ||   छू न सके कोई बाबर, भारत माँ के आँचल को | कर न सके कब्जा कोई, माँ भारती के धरातल को || ऊँच-नीच का भेद मिटा, हम रामराज्य फिर लायें | अखण्ड भारत की विजय पताका, हम सब फहरायें ||    

कुछ बदला बदला सा है..

मौसम बदला, जीवन बदला, बदल गया संसार | आई जबसे एक बिमारी, बदल दिया व्यापार || रहन-सहन व दर्शन बदला, बदल गये विचार | सातों दिन एक हैं लगते, जैसे होता था इतवार ||   करते थे संग मस्ती जिनके, दोस्त व यार भी बदले | बिन बुलाये आने वाले, अब तो रिश्तेदार भी बदले || पास-पड़ोस की ताका झांकी, अब कुछ रहा न बाकी | फीके लगते हैं मुझको, अब सारे त्यौहार भी बदले ||   स्विगी, ज़ोमैटो और अमेजान, बन गई अपनी दुकान | तरह-तरह के व्यंजन हैं मिलते, मिल जाता हर सामान || दादी के मोबाइल में अब तो, उपलब्ध हैं एप्प ये सारे | जिनको अच्छे लगते थे केवल, घर के ही सब पकवान ||   माँ का किचन बदला, दादी का शासन भी बदला | पापा बन गये अब दोस्त, उनका अनुशासन बदला || देती थी जो सजा अनूठी, डाँटने वाली मैडम बदली | मोबाइल पर रोक नहीं, सख्त स्कूल-प्रशासन बदला ||   ऑनलाइन लॉग-इन कर, जब मन हुआ सो जाते हैं | टेक्निकल प्रॉब्लम का बहाना, जब चाहें हम बनाते हैं || मोबाइल पास होने पर, कर देते थे जो क्लास से बाहर | वही अध्यापक आज हमें, मोबाइल पर ही पढ़ाते हैं   || झपकी की ...

मुसाफ़िर

  कोशिशों के रास्ते में मिल रही हार अगर | किनारों के पास रूक रही पतवार अगर || रुकना नहीं मुसाफ़िर थक हार कर कभी   | आसमां से बरस रहे राह में अंगार अगर || हार और जीत में केवल थोड़ा है फासला | असम्भव ही सम्भव का दिखाता है रास्ता || भागना नहीं मुसाफ़िर मुँह मोड़ कर कभी | आ जाये रास्ते में मुश्किलों के पहाड़ अगर || हर रात के बाद सुबह का पैगाम है यही | अँधेरा कितना भी घना हो छंटता है सही || डरना नहीं मुसाफ़िर ज़िन्दगी के मोड़ पर   | दिख रहे राह में झंझावातों के जंजाल अगर ||    

राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय दृष्टि

  प्राचीन काल से ही भारत अपने शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए विश्व-विख्यात रहा है | सदियों से यहाँ का शैक्षणिक वातावरण न सिर्फ दुनिया को आकर्षित करता रहा है अपितु अपने ज्ञान दर्शन से सभ्य एवं आदर्श समाज के निर्माण में योगदान भी देता रहा है | हमारे प्राचीन ग्रन्थ न सिर्फ भारतीय शिक्षा नीति एवं दृष्टि को स्पष्ट करते हैं अपितु समाज के सर्वांगीण विकास की धुरी रही शिक्षा व्यवस्था एवं उसकी प्रासंगिकता को भी दर्शाते हैं | गुरूकुल परम्परा को आत्मसात करने वाली शिक्षा व्यवस्था में गुरु को सृजनकर्ता की संज्ञा दी जाती है जिसमें राजा और रंक दोनों के लिए समान शिक्षा व्यवस्था की बात की गयी है | यह शिक्षा व्यवस्था एक तरफ चरित्र निर्माण की बात करती है तो वहीं दूसरी तरफ कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी जीवन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है | भाषायी वैविध्यता वाले भारत में प्रत्येक भाषा को ऊचित सम्मान प्राप्त होता है जो इसकी समग्रता के परिचायक होते हैं | नालन्दा एवं तक्षशीला जैसे विद्या केंद्र न सिर्फ भारतीय दर्शन का बोध कराते हैं अपितु ज्ञान-पुंज को विश्व में पल्लवित करने का कार्य भी करते हैं | अनेको...

पर्यावरण संरक्षण पर टिका भविष्य

पिछले कुछ वर्षों में मौसम ने जिस तरह से करवट बदला है उससे आने वाले खतरे का अंदेशा होने   लगा है | बिन मौसम के बारिश की मार हो या दिन प्रतिदिन चिलचिलाती गर्मी का टूटता रिकॉर्ड , बादल फटने की बढ़ती घटनाएं हों या फिर सैकड़ों को काल के गाल में ले जाने वाली लू का प्रकोप , निश्चित तौर पर प्रकृति हमें आगाह कर रही है | प्रकृति से हो रहे छेड़छाड़ ने पूरे पारिस्थितिकीय तंत्र को बदल दिया है जिससे प्रतिदिन एक नई चुनौती जन्म ले रही है | प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन एक तरफ इन संसाधनों की भविष्य में उपलब्धता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ विभिन्न प्रकार की समस्या को भी जन्म दे रहा है | आज मनुष्य की भौतिकवादी जीवनशैली एवं उपभोक्तावादी आचरण की कीमत पृथ्वी पर रहने वाला प्रत्येक जीव किसी न किसी रूप में चुका रहा है | आर्थिक प्रगति को विकास की धुरी मान बैठा मानव जिस प्रकार से प्रकृति रुपी उसी डाल को काट रहा है जिसपर उसका अस्तित्व टिका है, निश्चित तौर पर उसकी सेहत के लिए शुभ संकेत नहीं है | विगत कुछ वर्षों से देश में बारिश की कमी की वजह से जहाँ कई राज्य सूखे का दंश झेल चुके हैं वहीं भार...

उलझन

एक अजीब उलझन में हूँ, मद्धम धड़कन में हूँ | हुई है कातिल हवा ऐसी, ज़िन्दा ही कफ़न में हूँ || मौत के शोर में डूबे हुए, करूण क्रन्दन में हूँ | रौंद गया हो जिसे कोई, उजड़े गुलशन में हूँ   || छाया है गुबार हर तरफ, चिता के धुँआओं का | आसमां भी रो रहा, रंग बदला है घटाओं का || सियासत के कद्रदान, इस कदर हुए हैं मेहरबान | नोंच रहे ज़िन्दा लाश, हुक्मरानों के बन्धन में हूँ || जल रहे मेरे ख़्वाब ‘दीप’, ख़्वाबों के तपन में हूँ | कह रही उखड़ती साँसें, कुछ पल ही तन में हूँ ||

रूकती नहीं है ज़िन्दगी

  रूकती नहीं है ज़िन्दगी, राहों के रूक जाने से | कारवां बिछड़ जाने से, शमां के बुझ जाने से || आती नहीं है रौशनी, कभी अरमां जलाने से | सूखता नहीं समन्दर, नदियों के सूख जाने से || हो जाये रात अगर, समन्दर से कभी गहरी | होगी फिर सुबह नई, उजाले के आने से || जीवन के धूप-छाँव में, दिखते हैं रोज रंग नये | कट जाते मुश्किल सफ़र, कुछ क़दम बढ़ाने से || रोका है किसने आपको, ग़म में मुस्कुराने से | ख़्वाबों को बुनने से, मन्जिल को पाने से ||

हमने देखी है…

  बदलते मौसम की बेरूखी हमने देखी है, आँखों में दर्द और बेबसी हमने देखी है | गुमान था जिसे सफलता के आसमां का, सरकती हुई एक ज़िन्दगी हमने देखी है || होती है जो कभी उजाले में हरपल साथ, अँधेरे में परछाईं की बेरूखी हमने देखी है | प्यार में सराबोर थी जो ज़िन्दगी कभी, प्यार की बूँद को तरसती हमने देखी है || अर्श से फर्श के दरमयां बदलते रिश्ते, हिज्र-ए-शाम की मायूसी हमने देखी है | बदल जाते पैमाने सिक्के की खनक से, ऐसे मयखाने की मयकशी हमने देखी है ||  

रूबरू

  खुद से खुद को जब रूबरू कराया है, चेहरे के पीछे अक्स नज़र आया है | तन्हा था सफ़र हजारों के संग मेरा, आज तन्हाई में कारवां नज़र आया है || खुद की धड़कनों से अनजान था दिल, पल दो पल का ही मेहमान था दिल | ढूढ़ता रहा खुद को कस्तूरी की तरह, अधूरी इच्छाओं का आसमान था दिल || नज़रों ने देखे थे जो ख़्वाब कभी , आज हकीकत में नज़र आया है | हुई है पहचान आज मुझसे मेरी , वर्षों बाद मैंने खुद को पाया है ||      

का बा राजा बनारस में ?

  बाबा विशेश्वर क दरबार बा, माँ अन्नपूर्णा क श्रृंगार बा | ज्ञान क सगरो भण्डार इहाँ, सगरी बनारस होशियार बा || मालवीय क सपना इहवाँ, कबीर-तुलसी क रचना इहवाँ | डोम राजा के अगवाँ, राजा हरिश्चन्द्र भी कर्जदार बा || का बा राजा बनारस……. वरुणा-असी क अद्भुत संगम, शिव डमरू क डम-डम-डम | सुबह-ए-बनारस मनभावन, गंगा आरती क दृश्य विहंगम || धर्म-अध्यात्म क ई नगरी, शिव-त्रिशूल पर टिकल सही बा | सारनाथ में बुद्ध क दर्शन, पावन कर देला सबकर मन || का बा राजा बनारस…..         भारत-माता मन्दिर के देखे, देश-विदेश से लोगवा आवें | राम नगर किला सबही के, गौरवशाली इतिहास देखावे || ऊँच-नीच क शब्द इहाँ, केहरो भी न त पावल जाला   | संत रविदास के इहवां पर, बड़ श्रद्धा संग पूजल जाला || का बा राजा बनारस…. चेला भी गुरु कहल जाला, हर अड़ी चुनाव लड़ल जाला | बात-बात में बड़का संबोधन, देके प्यार से भिड़ल जाला || राशन इहाँ उठावे वालन, अन्न पुजारी सब बढ़के मिलिहें | रेती पार पहुँच गदबेला, सिलबट्टा पर भाँग घोटल जाला || का बा राजा बनारस…. बड़का छोटका भेद मिटावे,...