संदेश

2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मिलावटी ज़हर से मुक्त हो बाजार

  भारतीय बाजार आज मिलावटी उत्पादों से पटा हुआ है | मिलावटी जहर से बने हुए नकली उत्पाद न सिर्फ हजारों लोगों को मौत के चौखट पर पहुँचा रहे हैं अपितु कई ऐसी गम्भीर बीमारियाँ बाँट रहे हैं जो उपभोक्ता के जीवन को दीमक की भांति खोखला कर रही है | तीज-त्योहारों पर मिलने वाली नकली मिठाई हो, या फिर चन्द रुपयों की लालच में आकर बेचीं गयी नकली दवाई, सौन्दर्य प्रसाधन के उत्पाद हों या फिर मिलावटी दूध जैसा जहर, आज नकली उत्पाद शहर के साथ ही ग्रामीण बाजारों तक पहुँच चुका है | फल एवं सब्जी जैसे रोज उपयोग में लाये जाने वाले उत्पाद को भी जहर रुपी रासायनिक पदार्थ के साथ धड़ल्ले से बेचा जा रहा है | फलों एवं सब्जियों को ताज़ा रखने एवं उन्हें समय से पहले तैयार करने के लिए कई तरह के रासायनिक पदार्थ उपयोग में लाये जा रहे हैं जिससे आम उपभोक्ता के समक्ष जीवन संकट उत्पन्न होता दिख रहा है | बड़ी कम्पनियों से लेकर स्थानीय स्तर पर निर्मित उत्पाद, सरकार द्वारा तय मानकों की अनदेखी करते हुए दिख जाते हैं | उत्पादक, विज्ञापनों की चिकनी-चुपड़ी बातों से आम उपभोक्ता को गुमराह कर उत्पाद के साथ धीमा जहर बेच लेते हैं, और हमारा क़ान...

लोकतंत्र का आधार स्तंभ है पारदर्शी चुनाव व्यवस्था

  किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए पारदर्शी चुनाव व्यवस्था अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी जाती है | स्वस्थ निर्वाचन प्रक्रिया न सिर्फ लोकतंत्र को मजबूत करती है अपितु संवैधानिक मूल्यों की रक्षा भी करती है | यह प्रक्रिया नागरिकों में निष्पक्ष चुनाव का भाव पैदा करने के साथ ही आदर्श चुनाव व्यवस्था का बोध भी कराती है | इस पूरी प्रक्रिया को सही ढंग से क्रियान्वित करने में चुनाव आयुक्त की अहम् भूमिका होती है | चुनाव आयुक्त द्वारा लिए गये निर्णय न सिर्फ चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं अपितु लोकतंत्र की दशा एवं दिशा भी तय करते हैं | चुनाव आयुक्त किसी दल विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, वह संवैधानिक दायित्व के निर्वहन के लिए स्वतंत्र संस्था का नेतृत्व करता है | चुनाव आयोग के मुखिया के रूप में कार्यरत चुनाव आयुक्त को विधिक एवं संवैधानिक अधिकार प्राप्त होते हैं जिससे वह देश में विभिन्न स्तर पर चुनाव को सम्पन्न करा सके | अनेक अवसरों पर विपक्षी दल चुनाव आयुक्त को कटघरे में खड़ा करते आये हैं, एवं सत्तापक्ष को फायदा पहुँचाने का आरोप लगाते रहे हैं | तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बीच चुनाव होते रहे हैं, स...

सामाजिक ढांचे को मजबूत करेगा आर्थिक आरक्षण

  सामान्य वर्ग के गरीब व्यक्ति को सरकारी नौकरी एवं उच्च शिक्षण संस्थान में १० प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने लाखों प्रतिभाओं को नेपथ्य में खो जाने से बचाने का कार्य किया है, जिनकी प्रतिभा गरीबी की धुंध में खोकर दम तोड़ देती थी | वर्ष २०१९ में जब केंद्र सरकार ने १०३ वें संविधान संशोधन के जरिये सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला किया तब कुछ राजनैतिक नेताओं ने इस फैसले को दलित एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करार दिया | आज जब सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण को हरी झण्डी दिखाया है, तब भी वरिष्ठ नेता उदित राज जैसे लोग इसके पीछे भेदभाव की बात कर रहे हैं | प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा बहुमत से दिया गया फैसला सामाजिक समरसता की बुनियाद मजबूत करेगा, साथ ही आर्थिक बेड़ियों में जकड़े उस वर्ग को अवसर देगा जिनकी मूल समस्या को अबतक अनदेखा किया जाता रहा है | जातिगत आधार पर मिलने वाले आरक्षण के अतिरिक्त १० प्रतिशत आरक्षण सामान्य जाति में जन्म लेने वाले उन व्यक...

देश के लिए घातक है ‘मुफ़्त’ की सियासत

  कुछ ही दिनों में देश के दो प्रमुख राज्य लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव के साक्षी बनेंगे | चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न कराने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है, परन्तु विगत कुछ वर्षों से भारतीय राजनीति में ‘मुफ़्त’ की घोषणाओं ने न सिर्फ चुनाव सुधार के लक्ष्य को प्रभावित किया है अपितु निष्पक्ष मतदान के उद्देश्य पर भी असर डाला है | प्रधानमंत्री महोदय से लेकर सर्वोच्च न्यायलय तक ‘मुफ़्त घोषणाओं’ पर चर्चा कर चुके हैं | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में ‘रेवड़ी कल्चर’ को देश के लिए घातक कहा था जबकि सुप्रीमकोर्ट इससे जुड़ी याचिका को मंजूर कर उसे ३ न्यायधीशों की बेंच को भेज चुका है | कुछ समय पहले ही सुप्रीमकोर्ट ने सभी राजनैतिक दलों से इस सन्दर्भ में सुझाव माँगे थे |  विगत दिनों हुई एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि राजनैतिक दलों द्वारा मुफ़्त उपहार देने वाली योजनाओं से सरकार को 'आसन्न दिवालियापन' की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है | सबके बीच सभी राजनैतिक दलों ने इस प्रमुख मुद्दे के प्रति जिस प्रकार से उदासीनता दिखलाया है, देश की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ सकता है |...

ज़िंदगी का सफ़र

खिड़की से दिखा जो, आसमाँ समझ लिया | साथ में तन्हा भीड़ थी , कारवां समझ लिया || ज़िन्दगी के सवालों में, उलझा हुआ था कभी | आसान से सवालों को,  इंतहां समझ लिया || खुद से दूर होकर जब, तलाशता रहा खुशियाँ | किराये के मकां को ही, आशियाँ समझ लिया | ठोकरों ने सिखाया,  सम्भलकर चलना मुझे | ठोकरों को जब मैंने,  हमनवां समझ लिया || वक्त ने दिखाये 'दीप', ज़िंदगी के हजारों रंग | ज़िंदगी का हर लम्हा, हसीं दास्तां समझ लिया ||

तकनीकी युग में शिक्षक की प्रासंगिकता

शिक्षक किसी भी समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | शिष्य के बौद्धिक विकास के साथ ही उसके चरित्र निर्माण का अहम् दायित्व भी गुरु नामक संस्था पर निर्भर करती है | प्राचीन काल से लेकर अबतक शिक्षण व्यवस्था में अनेकानेक परिवर्तन देखने को मिले हैं, परन्तु बदलते परिवेश में भी गुरु कभी भी अप्रासंगिक नहीं हुआ है | आज के तकनीकी युग में शिक्षक का कार्य एवं दायित्व दोनों ही प्रभावित हुआ है, परन्तु इससे शिक्षक की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है | शिक्षण-प्रशिक्षण के बदलते स्वरुप ने शिक्षक के सामने चुनौती अवश्य प्रस्तुत किया है, परन्तु आदर्श शिक्षक तकनीकी बदलाव को शिक्षण-पद्धति के साथ जोड़कर निरन्तर क्रियाशील दिखता है | ‘वर्चुअल क्लासरूम’ के इस युग में लोग गुरु जैसी संस्था पर प्रश्न उठा रहे हैं, और आधुनिक शिष्यों के लिए गुरु जैसी संस्था का महत्त्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है | ‘गुरु’ के स्थान पर ‘गूगल’ के महत्त्व को बढ़ता देख लोग गुरु जैसी महत्वपूर्ण संस्था की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठा रहे हैं, जो कदापि उचित नहीं है | आज के इस युग में निश्चित तौर पर ‘मेटा’ को महत्त्व दिया जाना चाहिए, परन्तु इससे...

मात्र भौगोलिक इकाई नहीं हैं नदियां

चित्र
  नदियों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है | भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता नदियों के किनारे पुष्पित पल्लवित हुई हैं | हमारे वेद-पुराण नदियों की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं जबकि धार्मिक अनुष्ठानों के लिए नदी तट को अत्यन्त शुभ बताते हैं | भारतीय सभ्यता के विकास की साक्षी नदियाँ, भारतीय ऋषियों के तप की भी साक्षी रही हैं | नदियों का हमारे सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है | नदियाँ हमारे लिए मात्र भौगोलिक इकाई नहीं हैं अपितु सृष्टि के सृजन एवं संचालन दोनों में ही नदियों की महती भूमिका परिलक्षित होती है | नदियाँ मात्र जल-स्रोत नहीं है, यह समग्र में एक पारिस्थितकीय तंत्र भी है जिसमें अनेकों जलचर निवास करते हैं | प्राचीन काल से ही नदियाँ भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में भी सहभागी रही हैं | परन्तु विगत कुछ वर्षों से नदियों के मुक्त-प्रवाह के साथ ही इनके जल की गुणवत्ता में नकारात्मक बदलाव देखने को मिला है | नदियों को ‘माँ’ कहकर पूजने वाले भारत में नदियों की दयनीय स्थिति भविष्य के लिए सुखद सन्देश नहीं हैं | ऐतिहासिक महत्त्व वाली अनेक नदियों का ‘नाले’ में परिवर्...

हम कट्टर ईमानदार हैं

हम कट्टर ईमानदार हैं हम कट्टर ईमानदार जबसे सत्ता में आये हैं हम, कई रंग दिखाये हैं | जब चाहा पलटी मारी, नये रिकॉर्ड बनाये हैं || लोभ द्वेष पाखण्ड से हम, करते बहुत प्यार हैं | डंके की चोट पर हम, करते नित् भ्रष्टाचार हैं || हम कट्टर ईमानदार हैं.............. लोक लुभावन बातें हैं, रायता हम फैलाते हैं | अपनी ही बातों से हम, साफ़ मुकर जाते हैं   || बड़े-बड़ों से प्रश्न हैं पूछे, सत्ता के हम हैं भूखे | पूछे जाते प्रश्न कभी, बना लेते उसे हथियार हैं || हम कट्टर ईमानदार हैं.............. सत्ता हथियाने को हमने, किये हजारों वादे झूठे | दोस्त यार सब पीछे छूटे, गुरु जी रूठे तो रूठे || कंगाल हुआ राज्य भले, विज्ञापनों की भरमार है | जन-भावनाएं रोज बेंचते, हम करते व्यापार हैं || हम कट्टर ईमानदार...  

भारतीय दिलों में अमर हैं नेताजी

चित्र
आज हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, एवं सरकार द्वारा स्वतंत्र भारत की यज्ञ-वेदी में आहुति देने वाले नायकों के योगदान-गाथा को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है | ऐसे में भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के महान नायक ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ की कहानी आज़ादी के ७५ वर्ष बाद भी हमें भारतीय स्वतंत्रता की कीमत समझाने में सफल दिखती है जिसने भारतीय क्रांति की अमर गाथा को अपने लहू से लिखने का कार्य किया था | भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने न सिर्फ एक नई दिशा दी अपितु स्वतंत्र भारत की पटकथा लिखने में अग्रणी भूमिका निभाने का कार्य किया | उच्च प्रशासनिक पद को ठोकर मारकर अपनी मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले नेताजी से जुड़े अनेक तथ्यों से भारतीय जनमानस भले ही अनजान है परन्तु नेताजी द्वारा किये गये साहसिक कार्य भारतीय इतिहास की पुस्तकों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है | तत्कालीन इतिहासकार भले ही नेताजी से जुड़े तथ्यों के साथ न्याय नहीं कर सके, परन्तु वर्तमान सरकार द्वारा नेताजी के कार्यों को भारतीय जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करने के प्रयास ने अपने वीर नायक से जुड़ने का अवस...

बारिश की बूँदों को सहेजना जरुरी

  भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जिसकी दिशा एवं दशा दोनों ही मानसून तय करता है | अपेक्षानुरूप बारिश, न सिर्फ कृषि उत्पादन तय करती है अपितु यह भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर डालती है | हमारे यहाँ फसल उत्पादन का तरीका भी मौसम सापेक्ष ही रहा है अर्थात कौन सी फसल कौन से मौसम में उगानी है ? का निर्धारण भी मौसम के अनुसार ही किया गया है | धान जो कि एक मुख्य फसल है, एवं इसका उत्पादन अधिक जल आपूर्ति की माँग करता है, और इस आपूर्ति को कहीं न कहीं बारिश ही पूरी करती है | जलवायु परिवर्तन के कारण विगत कुछ वर्षों में वर्षा-चक्र में बदलाव भी देखने को मिला है जिसकी वजह से मानसून आने में देरी जैसी समस्या का सामना करना पड़ा है | समय से मानसून नहीं आने की वजह से जून-जुलाई के महीने में धान की रोपाई करने को तैयार भारतीय किसान मायूस होता है, साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था भी मायूस होती है क्योंकि इसका असर वार्षिक कृषि-चक्र पर भी पड़ता है | भारत में औसत बारिश होने के बावजूद भी कई राज्य सूखे का दंश झेलने को मजबूर दिखलाई देते हैं तो कुछ राज्य बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं | मानसून...

जनसंख्या की रफ़्तार थमे, तो बात बने

  भारत एक विकासशील देश है, एवं विकसित राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयासरत है परन्तु तेजी से बढ़ रही जनसंख्या भारत के इस लक्ष्य को निरन्तर दूर करते हुए दिखलाई देती है | हमारा देश जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे स्थान पर है, और पिछले कुछ वर्षों में जनसँख्या बृद्धि की जो दर रही है, जल्द ही सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश चीन को पीछे छोड़ देने की सम्भावना है | वर्तमान समय में देश के समक्ष उपस्थित अनेकों चुनौतियों के पीछे हम किसी न किसी रूप में जनसंख्या बृद्धि को कारक के रूप में देख सकते हैं | संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना हो अथवा रोटी, कपड़ा एवं मकान की व्यवस्था करनी हो, सुरसा की तरह मुँह फैलाती जनसंख्या के समक्ष यह ऊँट के मुँह में जीरा प्रतीत होता है | बढ़ती जनसंख्या न सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचा रही है अपितु सरकार द्वारा रोजगार प्रदान करने की राह में प्रमुख रोड़े के रूप में भी दिख रही है | उदाहरण स्वरुप सरकार जब तक १ करोड़ रोजगार सृजित करती है, जनसंख्या दोगुनी अथवा चौगुनी बढ़ जाती है, इससे समस्या निरन्तर बढ़ती ही जा रही है | तेजी से बढ़ रही जनसंख्या कई...

मानसिक प्रदूषण फैलाते टीवी डिबेट

  विगत कुछ वर्षों से समाचार चैनलों पर समसामयिक विषय पर ‘बहस’ को अनिवार्य रूप से दिखाया जा रहा है | भले ही इस चर्चा-परिचर्चा के पीछे चैनल का आर्थिक गणित छुपा हुआ है परन्तु देखा जाय तो ‘टीवी डिबेट’ ने देश के सामाजिक गणित को सबसे अधिक प्रभावित किया है | किसी भी लोकतान्त्रिक देश में किसी विषय पर चर्चा करना, स्वस्थ लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है परन्तु जिस प्रकार से समाचार चैनलों पर चर्चा होती है, निश्चित रूप से यह मानसिक प्रदूषण को फ़ैलाने का कार्य करता है | इन चर्चाओं के पीछे न सिर्फ समाचार चैनल का एक ‘एजेंडा’ छिपा हुआ दिखलाई देता है अपितु कई बार यह चर्चा किसी प्रमुख मुद्दे से ध्यान भटकाने का कार्य करती है | हास्यास्पद तब होता है जब एक ही विशेषज्ञ विभिन्न विषय पर चर्चा करता हुआ नजर आता है, ऐसे में विषय की गम्भीरता प्रभावित होना स्वाभाविक है | कभी-कभी तो न्यूज़ एंकर पक्ष या विपक्ष की तरफ से बोलता हुआ नजर आता है जिससे समाचार चैनल की वस्तुनिष्ठता प्रभावित   होती है | किसी भी विषय पर चर्चा करते समय, चर्चा को राजनीतिक रंग देना आज सामान्य बात है परन्तु इससे न तो विषय के साथ न्याय होता...

जल स्रोतों को बचाना जरुरी

पिछले कुछ वर्षों में देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों में पेय जल का संकट देखने को मिला है वहीं ग्रामीण क्षेत्र भी सूखते जलस्रोतों को देखने को विवश दिखे हैं | एक तरफ गंगा, यमुना, कावेरी, एवं नर्मदा जैसी बड़ी नदियों का स्वतन्त्र जल प्रवाह अवरूद्ध होता दिखा है वहीं वर्षों से ग्रामीण जीवन का हिस्सा रहे कुएं एवं नलकूप का जल स्तर भी बेहद नीचे पहुँच चुका है | ताल, तलैया जहाँ बीते दिनों की बात हैं वहीं देश की प्रमुख झील सूखे का दंश झेलने को विवश हैं | तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद छोटे तालाब एवं पोखर भी दयनीय स्थिति में ही दिखते हैं | जल स्रोतों के रूप में उपलब्ध लगभग सभी विकल्प आज गम्भीर संकट का सामना कर रहे हैं | सरकारी तंत्र की अनदेखी एवं आम जनमानस की उपेक्षा से भले ही जल स्रोत संकट ग्रस्त दिखते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि इससे पूरा जीवन तंत्र ही खतरे में है | जल ही जीवन है, सदियों पुरानी यह उक्ति हमारे जीवन में जल की उपयोगिता को रेखांकित करती है और हमें सचेत करती है कि जिस दिन जल स्रोतों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा, उस दिन पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जायेगा | नदियाँ मानव सभ्यता के विकास की स...

हिन्दी पत्रकारिता : संभावनाएं एवं चुनौतियाँ

पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़ी तेजी से बदलाव देखने को मिले हैं | कुछ बदलाव जहाँ सकारात्मक प्रतीत होते हैं वहीं कुछ बदलाव २०० वर्ष पूरे करने की ओर अग्रसर हिन्दी पत्रकारिता के समक्ष कठिन चुनौती प्रस्तुत  करते नज़र आते हैं | प्रसार संख्या की दृष्टि से अंग्रेजी समाचार पत्रों से काफी आगे निकल चुके हिन्दी समाचार पत्र इसके समृद्ध संसार को दर्शाते हैं तो वहीं हिन्दी समाचार चैनल तेजी से बाजार विस्तार कर रहे हैं | अच्छी यातायात व्यवस्था, साक्षरता दर में सुधार, एवं उन्नत तकनीकी ने समाचार पत्रों को ग्रामीण बाज़ार की तरफ अग्रसर करने का कार्य किया है | साथ टी वी चैनल बड़ी तेजी से क्षेत्र विस्तार करने में लगे हैं जिससे सुदूरवर्ती क्षेत्रों एवं ग्रामीण अंचलों में भी सिर्फ दूरदर्शन सेवा प्राप्त करने की बाध्यता  समाप्त हो गई है | आज हिन्दी पत्रकारिता, अंग्रेजी एवं अन्य भाषायी पत्रकारिता से कोसों आगे नज़र आती है जिन्हें आई आर एस की रिपोर्ट पुष्ट करती है | टेलीविजन रेटिंग पॉइंट में भी हिन्दी समाचार चैनलों को आगे देखा जा सकता है | हिन्दी पत्रकारिता के बाजार विस्तार के पीछे ह...