तकनीकी ने बदला चुनाव प्रचार का परम्परागत तरीका
कोविड की तीसरी लहर के
आशंका के बीच ही भारतीय निर्वाचन आयोग ने पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा
चुनाव की तिथियों का ऐलान कर दिया है | इसके साथ ही आयोग द्वारा प्रचार के लिए एक
दिशा-निर्देश भी जारी किया गया है जिसने इन राज्यों में चुनावी ताल ठोकने जा रहे
राजनीतिक दलों को प्रचार के परम्परागत तरीकों को छोड़कर ‘वर्चुअल प्रचार’ की तरफ़
कदम बढ़ाने को विवश कर दिया है | भले ही ये दिशा-निर्देश आगामी १५ जनवरी तक के लिए
है परन्तु कोरोना की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि राजनैतिक दलों
को रैली एवं पदयात्रा की अनुमति मिलना सम्भव नहीं है, एवं सभी राजनैतिक दलों को
संचार माध्यमों के साथ ही चुनाव प्रचार को आगे बढ़ाना होगा जिसमें सोशल मीडिया की
भूमिका अहम होगी | आज सोशल मीडिया न सिर्फ लाखों वोटर को प्रभावित करने की ताकत
रखती है अपितु मुख्य धारा की मीडिया को भी दिशा-निर्देशित करने की क्षमता रखती है
| किसी नेता द्वारा किया गया एक ‘ट्विट’ सभी मीडिया को उस सूचना के आस-पास प्रमुख
समाचार देने को मजबूर कर सकता है तो वहीं फेसबुक पर साझा किया गया वीडियो लाखों
उपभोक्ताओं के विचारों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है | यही कारण है कि सभी
राजनीतिक दल एवं बड़े नेता सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर काफी सक्रीय दिखलाई देते हैं
| प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जहाँ सोशल मीडिया पर सबसे सक्रिय नेता हैं एवं
उन्हें करोड़ों लोग फॉलो करते हैं तो वहीं चुनावी समर में ताल ठोकने जा रहे योगी
आदित्यनाथ, श्री अखिलेश यादव, सुश्री मायावती जैसे नेता भी सोशल मीडिया उपभोक्ताओं
के बीच काफी लोकप्रिय हैं |
आगामी चुनाव प्रचार
में इन्टरनेट आधारित तकनीकी एवं सोशल मीडिया को ‘गेम चेंजर’ के रूप में देखा जा
रहा है | अर्थात तकनीकी आधारित ‘वर्चुअल प्रचार’ को निर्णायक की भूमिका में भी
देखा जा रहा है | हालाँकि वर्चुअल प्रचार का तरीका कोई नया नहीं है एवं २०१४ के
लोकसभा चुनाव में हम ‘चाय पर चर्चा’ जैसे कार्यक्रम की लोकप्रियता को देख चुके हैं
| भारतीय जनता पार्टी ने अपने स्टार प्रचारक श्री नरेंद्र मोदी को एक साथ विभिन्न
शहरों से जुड़ने का अवसर प्रदान किया जिसका पार्टी को फायदा मिला | इसके पश्चात सभी
प्रमुख पार्टियों ने वर्चुअल प्रचार के जरिये मतदाताओं तक पहुँचने का प्रयास किया
एवं फेसबुक लाइव जैसे वर्चुअल दुनिया का उपयोग किया | आगामी चुनाव में पहली बार
अपने मताधिकार का प्रयोग करने जा रहे युवा मतदाताओं की संख्या भी लाखों में है | यह
मतदाता वर्ग सोशल मीडिया पर अत्यधिक सक्रिय है जिसे सभी पार्टियाँ अपने पाले में
खींचने का प्रयास करेंगी | परन्तु जिन राज्यों में अभी चुनाव होने जा रहे उनमें एक
बड़ी संख्या में वह मतदाता वर्ग भी शामिल है जो सोशल मीडिया पर कम सक्रिय है | ऑनलाइन
मंच उपलब्ध कराने के साथ ही अत्यन्त कम समय में लाखों मतदाताओं तक बात पहुँचाने का
विकल्प उपलब्ध कराने वाली सोशल मीडिया आगामी चुनाव की दिशा एवं दशा दोनों ही तय
करने की क्षमता रखती है | ऐसे में इस बात की आशंका भी है कि चुनाव प्रचार के इस
आधुनिक मंच का दुरूपयोग न हो |
भारत में इन्टरनेट
उपभोक्ताओं की संख्या ७० करोड़ से अधिक है जबकि सोशल मीडिया उपभोक्ताओं की संख्या
भी ४५ करोड़ को पार कर चुकी है | यह एक सुखद सन्देश है | यूट्यूब एवं फेसबुक पर
लोगों की बढ़ती सक्रियता की बात हो अथवा ट्विटर के जरिये सन्देश सम्प्रेषण की बात,
ऑनलाइन मंच पर अपने विचार साझा करने की बात हो या चित्र अथवा वीडियो को शेयर करने
की बात, सोशल मीडिया ने ऑनलाइन संचार की प्रक्रिया को काफी आसान बना दिया है तो
वहीं इसका निरंकुश प्रवाह घातक भी नजर आता है | यह अत्यन्त कम समय एवं कम लागत के
साथ लाखों लोगों से जुड़ने का विकल्प तो उपलब्ध कराती है परन्तु इसके आचार-संहिता
की परिधि अभी भी स्पष्ट नहीं है | सोशल
मीडिया पर प्रसारित सन्देश न सिर्फ अत्यन्त कम समय में लाखों लोगों तक पहुँच सकते
हैं अपितु ‘फेक न्यूज़’ की आशंका भी बनी रहती है | चुनाव आयोग को इस बात पर भी
ध्यान रखना होगा कि वर्चुअल प्रचार के दौरान ऐसे अन्तर्वस्तु का प्रसार न हो जिससे
सामाजिक सौहार्द पर असर पड़े | आई-टी एक्ट के कमज़ोर धाराओं की परिधि अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता के नाम पर दुष्प्रचार करने वालों को रोक पायेगी, इसकी सम्भावना भी कम
ही दिखती है | अतः चुनाव आयोग को एक टीम गठित कर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी नजर
रखनी होगी जिससे दुष्प्रचार की सम्भावना को समाप्त किया जा सके | इन प्लेटफार्म के
लिए भी एक दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए जिससे मनगढंत एवं तथ्यहीन सन्देश को
प्रसारित करने से बचा जा सके, साथ ही राजनीतिक दलों को भी दुष्प्रचार से बचने के
लिए निर्देश देना होगा | भविष्य में राजनीतिक दल चुनाव के खर्च को कम करने के लिए
प्रचार के परम्परागत तरीके की बजाय वर्चुअल प्रचार को अपना सकते हैं | तकनीकी
आधारित प्रचार का तरीका आवागमन की समस्या, भीड़जनित समस्या, एवं प्रशासन पर
अतिरिक्त कार्य दबाव के बोझ को बेहद कम करेगा | अब देखना यह है कि कोविड के
चुनौतियों के बीच प्रयुक्त हो रहे इस चुनावी विकल्प को राजनीतिक दल किस प्रकार
उपयोग में लाते हैं ? सभी राजनीतिक दलों को ‘वर्चुअल प्रचार’ को सकारात्मक तरीके
से लेना होगा एवं इसे दुष्प्रचार के हथियार के रूप में इस्तेमाल न करके भविष्य के
प्रचार का माध्यम बनाना होगा |
Nice
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