हमने देखा है

 

हमने देखा है यू पी को बदलते हुए,

आगे बढ़ते हुए इसको संवरते  हुए |

छूट गया था राह में जो पीछे कभी,

तेज चलते हुए इसको निखरते हुए ||

हमने देखा है …….

राम की अयोध्या भी खुशहाल है,

मेरी काशी का भी बदला हाल है |

सुनाई देने लगी मंदिरों की घंटियाँ,

ध्वज सनातन का फिर फहरते हुए ||

हमने देखा है ……

नफरतों ने जलाये थे जो घर कभी,

फिर से बनते हुए उसे संवरते हुए |

कबीर लड़ते रहे थे उम्र भर जिससे,

जमी बर्फ को दिलों से पिघलते हुए ||

हमने देखा है …

चल पड़ा है जो मंजिल की ओर,

देख सकते नहीं अब ठहरते हुए  |

चारों दिशाओं में फैलेगी खुश्बू ,

हवाएं भी कहेंगी ये गुजरते हुए  ||

हमने देखा है …

चंद कदम चले हैं चलते ही जाना है,

सपनों को ‘दीप’ सच कर दिखाना है |

बंजर सी जमीं में फुंट रहे हैं अंकुर,

देखना है इसमें फूल निकलते हुए ||

हमने देखा है …

 

 

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