ज़िंदगी का सफ़र
खिड़की से दिखा जो, आसमाँ समझ लिया |
साथ में तन्हा भीड़ थी , कारवां समझ लिया ||
ज़िन्दगी के सवालों में, उलझा हुआ था कभी |
आसान से सवालों को, इंतहां समझ लिया ||
खुद से दूर होकर जब, तलाशता रहा खुशियाँ |
किराये के मकां को ही, आशियाँ समझ लिया |
ठोकरों ने सिखाया, सम्भलकर चलना मुझे |
ठोकरों को जब मैंने, हमनवां समझ लिया ||
वक्त ने दिखाये 'दीप', ज़िंदगी के हजारों रंग |
ज़िंदगी का हर लम्हा, हसीं दास्तां समझ लिया ||
Kya bat hai
जवाब देंहटाएंशानदार, जानदार और लाजवाब
जवाब देंहटाएं😍😍
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास।
जवाब देंहटाएं