प्रकृति
देती है जो जीवन हमको |
उसका हम सम्मान करें ||
नभ, थल, जल से है कल |
आओ इसका गुणगान करें ||
कृतज्ञ हो सब शीश नवायें |
संरक्षण का हम ध्यान करें |
देती है जो जीवन......
एक अकेले मानव ने ही |
प्रकृति को खूब रूलाया है ||
इच्छाओं की पूर्ति खातिर |
संसाधनों का किया सफाया है ||
जीव-जन्तु सब तड़प रहे हैं |
उनका भी कुछ ध्यान करें ||
देती है जो जीवन......
सूख रहे हैं कुआँ-बावली |
नदियाँ भी सब कराह रही ||
मैला हुआ समुन्दर अपना |
भू-जल का अब थाह नहीं ||
जल-बिन जीवन असम्भव है |
जल-स्रोतों का न अपमान करें ||
देती है जो जीवन......
दूषित हवा दम घोंट रही है |
साँसे उखड़ रही हैं सबकी ||
कल-कारखानों के धुएँ से |
सेहत बिगड़ रही है नभ की ||
स्वच्छ हवा सेहत की कुंजी |
साफ-सुथरा हम आसमान करें ||
देती है जो जीवन......
मिट्टी में मिलकर प्लास्टिक |
‘दीप’ बंजर उसे बना रही है ||
नाले-नदी से होकर प्लास्टिक |
समुद्र में अम्बार लगा रही है ||
आओ आज हम त्यागे इसको |
प्लास्टिक मुक्त हिन्दुस्तान करें ||
देती है जो जीवन......
👍👍👍nice
जवाब देंहटाएंअत्यंत महत्वपूर्ण है।
जवाब देंहटाएं✨💯💯
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया 🌹
जवाब देंहटाएंअति सुंदर और बेहद गंभीर🙏🙏
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