प्रकृति


देती है जो जीवन हमको |

उसका हम सम्मान करें  ||

नभ, थल, जल से है कल |

आओ इसका गुणगान करें ||

कृतज्ञ हो सब शीश नवायें |

संरक्षण का हम ध्यान करें |

देती है जो जीवन......

एक अकेले मानव ने ही |

प्रकृति को खूब रूलाया है ||

इच्छाओं की पूर्ति खातिर |

संसाधनों का किया सफाया है ||

जीव-जन्तु सब तड़प रहे हैं |

उनका भी कुछ ध्यान करें ||

देती है जो जीवन......

सूख रहे हैं कुआँ-बावली |

नदियाँ भी सब कराह रही ||

मैला हुआ समुन्दर अपना |

भू-जल का अब थाह नहीं ||

जल-बिन जीवन असम्भव है |

जल-स्रोतों का न अपमान करें ||

देती है जो जीवन......

दूषित हवा दम घोंट रही है |

साँसे उखड़ रही हैं सबकी  ||

कल-कारखानों के धुएँ से  |

सेहत बिगड़ रही है नभ की ||

स्वच्छ हवा सेहत की कुंजी  |

साफ-सुथरा हम आसमान करें ||

देती है जो जीवन......

मिट्टी में मिलकर प्लास्टिक |

‘दीप’ बंजर उसे बना रही है ||

नाले-नदी से होकर प्लास्टिक |

समुद्र में अम्बार लगा रही है ||

आओ आज हम त्यागे इसको |

प्लास्टिक मुक्त हिन्दुस्तान करें ||

देती है जो जीवन......

 

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