ज़ख्म
जब भी दर्द हुआ मुस्कुरा लिया हमने |
बंद पलकों में अश्क चुरा लिया हमने ||
पढ़ न ले कोई दिल- ए- किताब मेरी |
दर्द भरे पन्नों को छुपा लिया हमने ||
भीग गयी पलकें जब तन्हाई में कभी |
छुपकर अश्कों से नहा लिया हमने ||
बिखेर गये अपनी यादों को रेत में |
दे गये तन्हाई वे मुझे अपनी भेंट में ||
वक्त के रेत में बिखरी यादों को उनके |
ख्वाब-ए-दुनिया में सजा लिया हमने ||
खुश हैं आज वो ‘दीप’ मुझको भुलाकर |
गये थे दूर कभी जो मुझको रुलाकर ||
ज़ख्म ही हैं अब मेरी ज़ख्मों की दवा |
ज़ख्म उनके सीने से लगा लिया हमने ||
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