भविष्य के लिए संकट पैदा करती पर्यावरण की अनदेखी

 


विगत कुछ वर्षों में पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा वैश्विक विमर्श के साथ ही स्थानीय चर्चा के केंद्र में भी रहा है | विश्व के अधिसंख्य देश आज पर्यावरण में हो रहे बदलावों से चिंतित हैं तो वहीं इस क्षेत्र में कार्य करने वाली एजेंसियों के लिए नित नई चुनौतियां पैदा हो रही हैं | पर्यावरण में हो रहा प्रतिकूल बदलाव न सिर्फ मानव अस्तित्व के लिए खतरा है अपितु पृथ्वी पर जीवन के लिए भी खतरनाक है | मानव की उपभोक्तावादी सोच का गम्भीर परिणाम सभी जीव-जन्तुओं को भुगतना पड़ रहा है, एवं अनेक जीव-जंतु लुप्तप्राय हो चुके हैं | आधुनिक समाज ने जिस प्रकार से प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया है उससे यह खतरा निरंतर गम्भीर होता जा रहा है | एक तरफ वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने के कारण पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ मौसम-चक्र भी व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है | तेजी से बढ़ती जनसंख्या, वर्तमान पीढ़ी की पर्यावरण के प्रति उदासीनता, सरकारी नीतियों की अगम्भीरता, एवं पर्यावरण कानूनों का अप्रभावी एवं अपर्याप्त होना; प्रकृति को पूज्या के रूप में मानने वाले भारत को भी प्रकृति से दूर करता जा रहा है | भारतीय दर्शन एवं चिंतन में एक प्रमुख स्थान रखने वाला पर्यावरण, आधुनिक विकास प्रक्रिया की भेंट चढ़ता गया और हम मूकदर्शक बनकर रह गये | भारतीय ज्ञान परम्परा के केंद्र में रहने वाली प्रकृति को जब तक हमने माँ के रूप में देखा, प्रकृति का स्नेह हमें मिलता रहा | परन्तु जबसे हमारी उपभोक्तावादी सोच ने हमारे आचरण एवं व्यावहार में बदलाव करना शुरू किया, प्रकृति का रौद्र रूप देखने को मिला | हमारे तीज-त्योहार में प्रकृति को पूज्यरूप में स्थान मिला था, इसका प्रमुख कारण प्रकृति के प्रति आदर भाव का सृजन कर भावी पीढ़ी को प्रकृति से जोड़कर रखना था | पंचतत्वों को सृजन का कारक मानने वाला भारत आज इन्हीं पंचतत्वों के दूषित होने से अनेकानेक समस्याओं से जूझ रहा है | औद्योगिकीकरण की रथ पर सवार होकर आज हम विकास प्रक्रिया की गति को बढ़ाने में लगे हैं परन्तु विकास के आधुनिक तौर-तरीकों ने प्राकृतिक संसाधनों के अधिकाधिक शोषण को जिस प्रकार से प्रोत्साहित किया है, वह हमारे पूर्वजों को सोच से अलग दिखती है | आलम यह है कि हमारे वेद-पुराण प्रकृति की महत्ता को बताते रहे और हमने इन जीवन-ग्रंथों को अनदेखा कर दिया | हमने आज भले ही पाठ्यक्रमों में पर्यावरण शिक्षा को जोड़ दिया है परन्तु अपने छात्रों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के लक्ष्य से काफी दूर ही दिखते हैं |

हमारी उदासीनता एवं उपभोक्तावादी सोच का सर्वाधिक प्रभाव नदियों पर पड़ा है | जीवनदायिनी नदियाँ आज औद्योगिक एवं घरेलू अपशिष्ट के कचरों का ज़हर ढ़ोने को मजबूर हैं | नदियों के मुक्त प्रवाह को रोककर हमने इसके पारिस्थितिकीय तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित करने का कार्य किया है जिससे इन नदियों के गर्भ में पलने वाले अनेक जीव आज लुप्तप्राय हो चुके हैं | टिहरी ने जबसे गंगा के मुक्त प्रवाह को बाधित किया है, यह नदी न तो अपने मूल स्वरुप में दिखी और न ही नमामि गंगे जैसी बड़ी परियोजना के संचालित होने के बाद भी पूर्व की भांति स्वच्छ ही हो सकी है | राजधानी दिल्ली में यमुना नदी प्रदूषण से कराह रही है जबकि दिल्ली सरकार अभी तक नालों में बहकर यमुना के जल में गिर रहे अपशिष्ट को शोधित करने में नाकामयाब ही रही है | दिल्ली सरकार दावा करती है कि 2025 तक यमुना साफ हो जायेगी परन्तु अभी भी 850 एमजीडी की तुलना में 600 एमजीडी सीवर-जल ही शोधित करने की व्यवस्था लक्ष्य को दूर बताती है | कभी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के केंद्र में रहने वाली नदियाँ आज उपेक्षा की शिकार हो रही हैं, एवं अनेकों नदियाँ नालों का रूप लेकर अपने अस्तित्व को तलाश रही हैं | कभी वाराणसी की पहचान रही ‘वरुणा एवं असी’ नदी आज दयनीय स्थिति में हैं तो अनेक छोटी नदियाँ शहरीकरण की भेंट चढ़ चुकी हैं | वर्तमान केंद्र सरकार ने नदियों के संरक्षण एवं उन्हें प्रदूषणमुक्त करने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं जिनके अपेक्षित परिणाम आने शेष हैं |

आज भारत की राजधानी दिल्ली विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है, जहाँ वर्ष में अधिसंख्य दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक 200 के ऊपर रहता है | 60 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर से अधिक पीएम 2.5 एवं 100 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर से अधिक पीएम 10 वायु गुणवत्ता पर नकारात्मक असर डालता है जिससे मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलता है | पीएम 2.5 जो कि फेफड़ों को सर्वाधिक नुकसान पहुँचाता है, हवा में घुले जहर के समान है |  हाल ही में दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर की गई सर्वोच्च न्यायालय की टिपण्णी ‘प्रदूषण में रहना जीवन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन’, निश्चित तौर पर दिल्ली सरकार के उछल-कूंद प्रयास को आईना दिखाती है | प्रतिदिन लगभग 3800 टन कचरे का अशोधित रह जाना आम आदमी पार्टी की महत्वाकांक्षी एमसीडी परियोजनाओं की पोल खोलती है | विगत दिनों प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करने के लिए कनाडा में हुई बैठक में भी कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका जिसमें प्लास्टिक उत्पादन की वैश्विक सीमा तय करना प्रमुख था, जबकि यह सर्वविदित है कि प्लास्टिक का उपयोग पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा हैं एवं समुद्र में जमा हो रहा प्लास्टिक रुपी कचरा एक गम्भीर संकट को आमंत्रित कर रहा है | आइआइटी कानपुर के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में किये गये शोध में यह कहा गया है कि प्रदूषण बढ़ाने में स्थानीय स्रोतों की प्रमुख भूमिका होती है | अतः इन्हें दूर करने के लिए स्थानीय स्तर पर किये गये योजनाबद्ध ठोस प्रयास महत्वपूर्ण हो जाते हैं | प्रधान न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड की अध्यक्षता में दिए गये संवैधानिक पीठ के निर्णय में कहा गया कि स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार प्रभावी नहीं है | अनुच्छेद-21 में वर्णित जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार भी है जो कि पर्यावरण में हो रहे प्रतिकूल बदलावों से प्रभावित होता है |

शहरीकरण का सर्वाधिक असर वन क्षेत्र पर पड़ा है, एवं एनजीटी की चिंताओं के बावजूद भी हम वन क्षेत्र को कम होने से रोक नहीं पाये हैं | पिछले दो दशक में भारत में 23.3 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र का कम होना हमारी पर्यावरण नीति पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है जबकि पीपल, बरगद, एवं नीम जैसे उपयोगी पौधों की जगह सजावटी पौधे लगाने का चलन भी पर्यावरण के अनुकूल नहीं है | अपनी हरियाली से ध्यानाकर्षित करने वाले पूर्वोत्तर राज्यों में भी वन क्षेत्र संकुचित हो रहा है जो कि चिंताजनक है | आज सरकार एवं स्वयंसेवी संगठन पौधारोपण को गति देने में लगे दिखते हैं परन्तु यह प्रक्रिया नागरिक उदासीनता के कारण अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त करने में असफल दिखती है एवं असंख्य पौधे आवश्यक देख-भाल के आभाव में सूख जाते हैं | विगत कुछ दशक में मौसम का बदलता मिज़ाज भविष्य के लिए खतरे की घंटी है | बिना मौसम भारी बारिश, भीषण गर्मी, भयंकर सूखे की स्थिति, एवं तबाही मचाने वाले तूफान निश्चित रूप से भविष्य के संकट के प्रति आगाह कर रहे हैं परन्तु विज्ञान के दम पर दम्भ भरने वाली मानव जाति वायुमंडल के अनेकानेक जीवों पर आ रहे अस्तित्व के संकट को अनदेखा कर सिर्फ अपने बारे में सोच रही है जबकि पर्यावरण की यह अनदेखी न तो हमारे हित में है और न ही प्रकृति को देवतुल्य मानकर प्राकृतिक संसाधनों के प्रति आदर का भाव रखने वाली भारतीय सोच के अनुकूल ही है | आज आवश्यक है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस नीति बने, मौजूदा पर्यावरण कानूनों में आवश्यक सुधार हो, सरकार की जवाबदेही तय हो, साथ ही क़ानूनी एवं नैतिक उत्तरदायित्व से बंधकर प्रत्येक भारतीय नागरिक पर्यावरण संरक्षण की प्रक्रिया में अपना योगदान सुनिश्चित करे |

 

 

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