हाल-ए-वफ़ा

 

लवों पे रखते थे हँसी के फूल कभी |

न जाने अब क्यूँ मुस्कुराते भी नहीं ||

बस्तियां थी रौशन जिनके दीदार से |

आँगन में चराग वो जलाते भी नहीं ||

गैरों के दर्द पर मरहम लगाने वाले |

दर्द अपना किसी को दिखाते भी नहीं ||

बावफ़ा निकले वो वफ़ा की राह में |

बेवफ़ा के प्यार को भूलाते भी नहीं ||

जी रहे हैं अश्कों के दरिया किनारे |

अश्कों से भीगे नज़र आते भी नहीं ||

भूली-बिसरी यादें समेटे हुए ‘दीप’ |

हाल-ए-वफ़ा अपनी बताते भी नहीं ||

 

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