विकसित भारत के लक्ष्य के समक्ष जनसंख्या बृद्धि की चुनौती

2047 तक भारत ने विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है, एवं उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर अग्रसर भी है | विश्व की पाँच आर्थिक शक्तियों में ५ वां स्थान प्राप्त करके भारत ने इस ओर कदम बढ़ा भी दिया है और आगामी कुछ वर्षों में तीसरे स्थान पर पहुँच जाने की उम्मीद भी जताई जा रही है | विकास के कई सूचकांक भारत के पक्ष में दिखलाई देते हैं जिसमें राजनैतिक सशक्तिकरण एवं रक्षा क्षेत्र में उन्नति को देखा जा सकता है | वैश्विक मंच पर भारत को मिल रही सफलताएं एवं उत्तरदायित्व से यह स्पष्ट होता है कि जल्द ही हमारा देश विश्व के अग्रिम पंक्ति में खड़ा होगा | हालाँकि भारत के समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिनमें सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती हुई जनसंख्या के रूप में दिखलाई देती है | किसी भी देश के विकास में वहाँ निवास करने वाली जनसंख्या की सक्रीय सहभागिता महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह न सिर्फ विकास की दिशा एवं दशा तय करती है अपितु उपलब्ध संसाधनों के राष्ट्रहित में उपयोग को भी रेखांकित करती है | उपलब्ध मानव संसाधन के कौशल का तार्किक प्रयोग करके देश को न सिर्फ आर्थिक उन्नति के पथ पर अग्रसर किया जा सकता है अपितु इससे सामाजिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त होता है | विकास एक बहुआयामी प्रक्रिया है जो बदलाव एवं उन्नति से सर्वथा भिन्न है | बदलाव जहाँ सकारात्मक एवं नकारात्मक परिवर्तन  से जुड़ा है तो वहीं उन्नति किसी एक दिशा में सकारात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया से जुड़ा है | ऐसे में भारत की आर्थिक उन्नति एक उम्मीद तो जगाती है परन्तु बढ़ती हुई जनसंख्या हमारे लक्ष्य के समक्ष कई चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हुई दिखलाई देती है |

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार वर्तमान समय में विश्व की जनसंख्या ८ अरब है, एवं पिछले कुछ दशकों में इसमें सर्वाधिक बृद्धि हुई है | भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवें स्थान पर विद्यमान भारत जनसंख्या की दृष्टि से प्रथम स्थान पर पहुँच चुका है | १४५ करोड़ की जनसंख्या निश्चित रूप से भारत को मानव-संसाधन के रूप में एक शक्ति प्रदान करती है परन्तु उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के सापेक्ष यह बढ़ते असमानता की चुनौती भी प्रस्तुत करती है | देखा जाये तो एशियाई देश विशेष रूप से भारत एवं चीन पर जनसंख्या बोझ बहुत अधिक है, परन्तु भारत पर यह भार क्षेत्रफल कम होने की वजह से और अधिक दिखलाई पड़ता है | विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व होने के कारण नागरिकों को मूल सुविधाओं को उपलब्ध कराना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिससे जीवन-यापन की स्थिति प्रभावित होती है | बढ़ती हुई जनसंख्या ने एक तरफ़ रोटी, कपड़ा एवं मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता को अपर्याप्त किया है अपितु इसका असर स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं पर भी पड़ा है | एक तरफ रोजगार का संकट युवा पीढ़ी में कुंठा एवं निराशा के भाव भर रहा है तो वहीं शैक्षणिक संस्थान इतनी बड़ी जनसंख्या को तकनीकी एवं कौशल आधारित शिक्षा प्रदान करने के लिए अपर्याप्त ही दिखलाई देते हैं | इतनी बड़ी जनसंख्या के अनुपात में योग्य डॉक्टरों की कमी भी देखी जा सकती है वहीं पुलिस प्रशासन की उपलब्धता भी अन्य बड़े देशों की तुलना में अत्यंत कम है | सरकारी आंकड़ों के अनुसार विगत कुछ वर्षों में डॉक्टरों की संख्या में बृद्धि हुई है एवं ८३४ व्यक्ति पर एक डॉक्टर उपलब्ध है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक संख्या १००० के सापेक्ष अधिक है | हालाँकि यह आंकडें देश में उपलब्ध स्वास्थ्य गुणवत्ता एवं वैश्विक स्वास्थ्य सूचकांक की रैखिक दिशा को नहीं दर्शाते हैं उसकी प्रमुख वजह बढ़ती जनसंख्या ही नज़र आती है | सरकार मेडिकल कॉलेजों की संख्या लगातार बढ़ा रही है, साथ ही स्नातक एवं परास्नातक की मेडिकल सीटों को भी बढ़ाया गया है परन्तु इसका असर स्वास्थ्य सेवाओं विशेष रूप से गाँवों में यह अभी भी अपर्याप्त ही दिखलाई देता है | जितनी अधिक आबादी, उतनी अधिक क़ानून व्यवस्था की चुनौती भी है | क़ानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए आबादी के सापेक्ष पुलिस प्रशासन की व्यवस्था भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिससे सरकारी संसाधन पर अतिरिक्त बोझ पड़ता हुआ दिखलाई देता है | 

जब तक सरकार रोजगार के कुछ अवसर सृजित करती है, जनसंख्या उसके सापेक्ष कई गुना बढ़ जाती है और यह क्रम लगातार चलता रहता है | यही स्थिति शैक्षणिक संस्थानों की उपलब्धता का भी है | विगत कुछ वर्षों में देश के सभी क्षेत्रों में अनेकों शैक्षणिक संस्थान खुले हैं परन्तु न तो ये उपलब्ध छात्रों को समायोजित करने में पूरी तरह से सक्षम हो पाये हैं और न ही ये अनुकूल एवं उपयुक्त शैक्षिक संसाधन ही उपलब्ध करा पाये हैं | छात्र-शिक्षक अनुपात हो या फिर आवश्यक सुविधाएं, उपलब्ध शैक्षणिक व्यवस्था अपर्याप्त दिखलाई देती है जिससे वैश्विक बाजार की आवश्यकतानुसार कौशल मानव संसाधन उपलब्ध कराने का भारतीय लक्ष्य अभी पूर्णरूपेण प्राप्त करना कठिन प्रतीत होता है जबकि तकनीकी एवं कौशलयुक्त शिक्षा देकर हम वैश्विक बाजार में उपलब्ध अवसरों का न सिर्फ लाभ ले सकते हैं अपितु विकसित भारत के लक्ष्य को गति भी प्रदान कर सकते हैं | वैश्विक बाज़ार में भारतीय मानव संसाधन की उपस्थिति आगामी वर्षों में भारत को और सशक्त कर सकती है | अन्य बड़े देशों की तुलना में भारत में मानव संसाधन सस्ता है जिससे वैश्विक कम्पनियाँ भारत में अपनी उत्पादन इकाईयां लगाने की तरफ आकर्षित हो रही हैं जिससे भारत में रोज़गार के नये अवसर सृजित हो रहे हैं | इस अवसर का और अधिक लाभ लेने के लिए हमें अपने नागरिकों को कौशलयुक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे जिससे उपलब्ध अवसरों के लिए हम तैयार रहें | आगामी २-३ दशकों में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या भी बढ़ेगी जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की उपयुक्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भी सरकार को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे |

विगत कुछ वर्षों में जिस प्रकार से जनसंख्या बढ़ी है उससे नदियों पर भी अतिरिक्त भार पड़ा है | एक तरफ बढ़ते विद्युत मांग की आपूर्ति के लिए इनके मुक्त प्रवाह को रोककर बाँध बनाये गये हैं तो वहीं दूसरी तरफ औद्योगिक एवं घरेलू कचरों के बढ़ते बोझ से भी नदियाँ निरन्तर दूषित हो रही हैं | नदियों की स्वच्छता सुनिश्चित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जो बढ़ती जनसंख्या के साथ और भी कठिन होता जा रहा है | इतनी बड़ी जनसंख्या को स्वच्छ पेय जल की आपूर्ति करना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसे कम होती जल उपलब्धता और भी अधिक कठिन करता जा रहा है | केन्द्रीय जल आयोग द्वारा जारी आंकडें के अनुसार वर्ष २०३१ के लिए प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल उपलब्धता १३६७ घनमीटर आंकी गई है जबकि १७०० घनमीटर से कम वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता को जल संकट की स्थिति माना जाता है | जनसंख्या बढ़ने से यह संकट और भी गहरा सकता है जिसका समाधान आवश्यक है | जनसंख्या के अनुरूप परिवहन साधनों की बढ़ती संख्या प्रदूषण जैसी चुनौती पैदा कर रही है तो वहीं आवास उपलब्ध कराने के लिए हो रहे निर्माण से वन क्षेत्र पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है | पिछले दो दशक में भारत में 23.3 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र कम हुआ है जिसका मूल कारण बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति ही है | इस प्रकार से स्पष्ट होता है कि बढ़ती जनसंख्या एक तरफ तो हमें विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मजबूती प्रदान करती है तो वहीं कई प्रकार की चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करती है | वैश्विक बाज़ार की नज़र आज भारतीय मानव संसाधन पर है जिसे हम अपने पक्ष में कर सकते हैं | हालाँकि बढ़ती जनसंख्या के कारण मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ ही उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के तार्किक उपयोग को भी ध्यान में रखना होगा | 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

छपास रोग ( व्यंग्य )

सूरजकुण्ड मेला : नये सन्दर्भों में परम्परा का ताना- बाना

मूल्यपरक शिक्षा का आधारस्तम्भ है शिक्षक