स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक है कुटुंब प्रबोधन
विगत दिनों काशी के एक बृद्धाश्रम
में ख्यातिलब्ध लेखक एस एन खंडेलवाल की मृत्यु हो गई, जिनके अंतिम संस्कार में उनके
बच्चों ने आने से मना कर दिया | करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक रहे खंडेलवाल की बृद्धाश्रम
तक की यात्रा, एवं बेटे के रहते हुए मृत्यु पश्चात् सामाजिक कार्यकर्ता अमन कबीर द्वारा
मुखाग्नि देना, भारतीय मूल्यों पर पड़ने वाली वह चोट है जो न सिर्फ हमारी सामाजिक मान्यताओं
को दरका रहा है अपितु कुटुंब प्रबोधन की आवश्यकता को भी रेखांकित कर रहा है |
परिवार में संवाद की प्रक्रिया ही परिवार को जोड़ने का कार्य करती है | जैसे ही यह प्रक्रिया
बाधित होती है, परिवार की एकता कमजोर होने लगती है, और अंततः परिवार नामक संस्था प्राणविहीन
सी हो जाती है | शहरीकरण ने पहले ही परिवार नामक संस्था को एकल स्वरुप देकर कमजोर करने
का प्रयास किया है जिससे हमारे देश में संयुक्त परिवारों की संख्या निरंतर घटी है |
संयुक्त परिवार की संकल्पना भारतीय समाज की सहगामी रही है, एवं एकत्व के सूत्र की संवाहक
भी | संयुक्त परिवार सदियों से भारतीय समाज को एकता के सूत्र में बाँधने का कार्य करता
रहा है | परन्तु विगत कुछ वर्षों से परिवार नामक संस्था का कमजोर होना, भविष्य के भारत
की तस्वीर का एक स्याह रंग दिखा रहा है | शहरीकरण की शर्तों पर, भारतीय समाज में एकल
परिवार की बढ़ती संख्या को उचित नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि एकल परिवार की बुनियाद,
संयुक्त परिवार की अपेक्षा पहले से ही कमज़ोर है | संयुक्त परिवार में संवाद की स्वस्थ
प्रक्रिया परिजनों के बौद्धिक विकास में मदद करती है, साथ ही कई प्रकार की स्वास्थ्य
समस्याओं से भी बचाती है | विज्ञान भी इस बात को स्वीकारता है कि संयुक्त परिवार में
रहने वाले लोगों को मानसिक स्तर पर कई प्रकार का लाभ मिलता है | सामाजिक आचरण की प्राथमिक
शिक्षा देने वाले परिवार के बड़े-बुजुर्गों से किनारा करते एकल परिवार की परम्परा ने
एक ऐसे सामाजिक वातावरण को निर्मित करना शुरू कर दिया है, जिसका दंश पश्चिम के देश
पहले से ही महसुस कर रहे हैं, एवं आधुनिकीकरण के रथ पर सवार भारतीय समाज भी उसी ओर
बढ़ता हुआ दिखलाई दे रहा है |
वर्तमान भारतीय समाज एक प्रकार
के संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, जिसका असर परिवार नामक संस्था पर भी देखा जा सकता
है | पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण, भारतीय मूल्यों को दूषित कर रहा है जिसका असर
परिवार एवं सदस्यों पर भी पड़ रहा है | आज पारिवारिक सदस्यों में संवादहीनता से न सिर्फ
परिवार टूट रहे हैं अपितु एकल परिवारों में यह कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं को
भी जन्म दे रहा है | तकनीकी उपकरणों की दुनिया ने संवाद की जो प्रक्रिया स्थापित किया
है, उससे भले ही हम संवाद की प्रक्रिया को आसानी से पूरा कर पाते हैं परन्तु वास्तविक
रूप से इसने जो भावनात्मक दुराव पैदा किया है, उसका असर पारिवारिक सम्बन्धों पर भी
पड़ रहा है | एक ही घर में रह रहे माता-पिता एवं बच्चों के मध्य संवाद की प्रक्रिया
का प्रभावित होना एक ऐसे समाज को निर्मित कर रहा है जिसमें मानसिक अवसाद, कुंठा एवं
संत्रास जैसी समस्याएं बढ़ती हुई दिख रही है | ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि हम भारतीय
समाज की प्राथमिक इकाई के रूप में भारतीय मूल्यों को सहेजे रखने वाले परिवार नामक संस्था
को सशक्त करने का प्रयास करें | तकनीकी उपकरण संचार के लिए आवश्यक हैं, और बिना इनके
हम वर्तमान समय में रह भी नहीं सकते | परन्तु तकनीकी दासता हमें मशीननिर्मित उस दुनिया
में ले जा सकती है जिसमें भावनात्मक लगाव का अभाव होने की सम्भावना है | ऐसे में कुटुंब
प्रबोधन की प्रक्रिया न सिर्फ परिवार के सदस्यों में भावनात्मक लगाव का निर्माण करने
का मार्ग प्रशस्त कर सकती है अपितु व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास के साथ ही सामाजिक विकास
की प्रक्रिया को भी गति प्रदान कर सकती है | वर्तमान सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए
यह कहा जा सकता है कि परिवार नामक संस्था में एकाकीपन के बोध को मिटाने का कार्य कुटुंब
प्रबोधन द्वारा ही किया जा सकता है | आज तकनीकी परिदृश्य में जन्में बाजार आधारित मूल्य
कुटुंब प्रबोधन की आवश्यकता एवं अनिवार्यता दोनों को ही दर्शाते हैं, साथ ही समाज में
संवेदनहीनता जैसे दुर्गुण को जन्म लेने से रोकते हैं क्योंकि कुटुंब प्रबोधन की प्रक्रिया
से व्यक्ति संवेदनशील आचरण को अपना सकता है जिससे वह अपने परिवार एवं समाज से भावनात्मक
रूप से जुड़ाव महसुस करता है | कुटुंब प्रबोधन की प्रक्रिया सामाजिक अवसाद को जन्म लेने
से पहले ही समाप्त कर सकती है जिससे स्वस्थ समाज का निर्माण होता है क्योंकि इस प्रक्रिया
में व्यक्ति के अन्दर नकारात्मक भाव का लोप होता है एवं सकारात्मक भाव का निर्माण होता
है जिससे बेहतर समाज के सृजन का मार्ग प्रशस्त होता है |
व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवधारणा
ने प्राचीन पारिवारिक परम्परा को खंडित करने का कार्य किया है जिससे हम सोशल मीडिया
पर बने आभासी मंच पर तो अपनी भावनाएं व्यक्त कर लेते हैं परन्तु परिवार के साथ साझा
करने में कंजूसी कर जाते हैं | परिवार में साथ बैठकर भोजन करने की परम्परा का अनुपालन
कुटुंब प्रबोधन का एक महत्वपूर्ण अंग है जो पारिवारिक सामंजस्य का आधार तैयार करता
है | प्रतिदिन अथवा सप्ताह में एक साथ बैठकर परिवार के लोग आपस में चर्चा कर सकते हैं,
अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते हैं, परिवार के अन्य सदस्यों की भावनाओं को समझ
सकते हैं जिससे संचार एवं संवाद की प्रक्रिया सुदृढ़ होगी एवं हम परिवार के सुख-दुःख
को अच्छी तरह से समझ सकते हैं | भारतीय मूल्यों से पोषित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
ने अपने पंच-परिवर्तन अभियान में भी कुटुंब प्रबोधन को महत्वपूर्ण स्थान दिया है |
संघ द्वारा कुटुंब प्रबोधन की प्रक्रिया को भारतीय समाज एवं संस्कृति के लिए अत्यंत
आवश्यक बताया गया, एवं इस बात पर बल दिया गया कि परिवार के सदस्यों के बीच बेहतर संवाद
एवं सामंजस्य स्थापित करने के लिए परिवार के सदस्य एक साथ समय बितायें | परिवार में
रहने वाले बुजुर्ग सदस्यों के साथ समय बिताना उन्हें भावनात्मक बल प्रदान करने के साथ
ही उन्हें ख़ुशी की अनुभूति कराता है, एवं इस प्रक्रिया में वे अपने जिन आनुभविक मूल्यों
को साझा करते हैं उससे समाज की बेहतर समझ भी विकसित होती है | कुटुंब प्रबोधन की प्रक्रिया
के दौरान अंतर्व्यक्तिक एवं समूह संचार की प्रक्रिया संपन्न होती है जिससे व्यावहारिक
जीवन के कई प्रकार के कठिन प्रश्नों के उत्तर स्वतः ही मिल जाते हैं | समय सापेक्ष
मूल्यों में परिवर्तन समाज की उन आवश्यकताओं में से एक है जो समाज को गतिशील बनाये
रखता है परन्तु जब यही मूल्य पारिवारिक अलगाव को जन्म देने लगते हैं तो पारिवारिक संरचना
में बदलाव के साथ ही आदर्श समाज की अवधारणा भी खंडित होने लगती है | यदि हम सशक्त भारत
की ओर देख रहे हैं तो हमें सामाजिक ईकाइयों को मजबूत करना होगा, और यह कार्य परिवार
नामक संस्था को सशक्त किये बिना सम्भव नहीं दिखता है | निश्चित रूप से हम पारिवारिक
सदस्यों के मध्य बेहतर संवाद को स्थापित करने के लिए कुटुंब प्रबोधन की प्रक्रिया को
अपना सकते हैं जिससे बेहतर समाज का निर्माण किया जा सके |
🙏👏👏
जवाब देंहटाएं