वक्त
शाम ढल रही थी जैसे- जैसे , ले रही थी जिंदगी करवटें।
वर्षों से सजाये मेरे स्वप्न के , टुटने का एहसास करा रहा था वक्त ।
और मै खुद की दुनिया को लुटते हुए , देखने को मजबूर था ।
तभी तुमने रखा मेरी जिंदगी में कदम, और अचानक ही मुझे लगा ।
मेरी दुनिया बदलने लगी तेजी से , लेकिन नसीब ने ला दिया ।
उस अनचाहे मोड़ पर , जहाँ से तुम मेरी दुनिया से दूर हो रहे थे ।
और मै देखने को मजबूर था ।
दर्द को सीने में छुपा जैसे ही , मै बढ़ा था दो चार कदम आगे ।
तेरी यादों ने कुरेद दिया मेरे जख्मो को , जो अभी भरे नहीं थे पूरी तरह से ।
इन यादों का दर्द गहरा था उन जख्मों से , जो मिला था तुमसे ।
और मै सहने को मजबूर था ।
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