अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग
हमारा संविधान
प्रत्येक भारतीय नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है साथ ही ८
युक्तियुक्त निर्बन्धन के माध्यम से इसकी स्वतंत्रता की परिधि भी सुनिश्चित करता
है। १९ (१)(क) में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमे स्वछन्द होने की छुट नहीं
देती है। परन्तु विगत कुछ वर्षों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं स्वच्छंदता के
बीच की पतली रेखा धुंधली होती नजर आयी है। जे एन यू में हुई घटना अभिव्यक्ति के
नाम पर मिली स्वतंत्रता का न सिर्फ दुरूपयोग है बल्कि देश की संप्रभुता एवं अखंडता
पर भी गहरी चोट करती है । ऐसा नहीं है की
इस तरह की ये पहली घटना थी। जे एन यू में इस तरह की आवाज का फैशन पहले से रहा है
परन्तु इस बार तथाकथित छात्रों ने सारी हदें पार कर दी। सरकार के खिलाफ़ बोलने से शुरू
हुआ ये सफ़र सोशल मीडिया के युग में सारी सीमाएं लाँघ चुका है। जो लोग देश विरोधी
नारे लगाने वाले छात्रों का समर्थन कर रहे वो उन छात्रों से भी ज्यादा कसूरवार हैं
जिनकी कथनी और करनी में बहुत फर्क है। इस घटना को छात्र आन्दोलन का रूप देना कहीं
से जायज नहीं है । मुठ्ठी भर पथभ्रमित
छात्रों को बचाने के लिए कथित आन्दोलन को उन शिक्षकों का समर्थन हासिल है जो
शिक्षक का मुखौटा लगाये अन्दर से कुछ और ही हैं । ऐसे शिक्षक उन छात्रों से ज्यादा
कसूरवार हैं । भारत जैसे देश में यदि लोकतान्त्रिक मूल्यों को जिन्दा रखना है तो
ऐसी विचारधारा को जड़ से मिटाने की जरुरत है जो खुद को संविधान से भी ऊपर समझती है।
कोई भी अपने विचार रखने को स्वतंत्र है परन्तु यही स्वतंत्रता जब स्वछंदता की सीमा
लाँघ जाती है तो उस पर अंकुश लगाना जरुरी हो जाता है । सरकार उन मठाधीशों को
चिन्हित कर दण्डित करे जो छात्रों का चोला पहन कैम्पस में डेरा जमाये हुए हैं ।
हाँ इस बात का जरुर ध्यान रखना चाहिए की किसी भी निर्दोष छात्र को सजा न मिले ।
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