बनारस

                                               
                                         
धर्म, अध्यात्म और परंपरा की विरासत को सहेजे विश्व की प्राचीनतम नगरी में से एक काशी यूँ तो ज्ञान के सबसे बड़े केंद्र के रूप में जानी जाती है परन्तु इसकी सबसे बड़ी पहचान यहाँ की गंगा जमुनी संस्कृति है । वरुणा और असी नदी की पलकों में समाया यह शहर सभी धर्मों को समान महत्व देने के लिए जाना जाता है । यहाँ भारत रत्न बिस्मिल्ला खां की शहनाई की धुन और पं किशन महाराज के तबले की थाप की जुगलबंदी का रस है तो पं मालवीय और शिवप्रसाद गुप्त के सपनों को मूर्त रूप देते विद्द्या के केंद्र भी, विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा बुद्ध का उपदेश स्थल है तो कबीर का प्राकट्य स्थल भी ।भगवान शंकर के त्रिशूल पर अवस्थित विश्व के इस अनूठे शहर को मन्दिरों का शहर भी कहा जाता है । यह एक ऐसा शहर है जहाँ काशी नरेश के वंशज को लोग आज भी महाराजा के रूप में सम्मान देते हैं तो वहीं दूसरी तरफ डोम राज भी राजा कहलाते हैं  
मोक्ष नगरी काशी देवताओं को भी अत्यंत प्रिय है तभी तो ३३ करोड़ देवी देवता यहाँ निवास करते हैं । मन्दिरों से आ रही जयघोष की आवाज़ जब कानों में पड़ती है तो अंतरआत्मा तक पवित्र हो उठती है । यहाँ साक्षात् भगवान शिव बिराजते हैं यही कारण है की भोलेनाथ के भक्तों की संख्या यहाँ सबसे ज्यादा है । काशी विश्वनाथ का भव्य मंदिर यहाँ के लोगों के आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है जहाँ देश विदेश से लाखों की संख्या में भक्त हर साल आते हैं । स्वर्ण चद्दरों में लिपटी दीवारें इस मंदिर को और भी भव्य रूप देती हैं मन्दिर प्रांगण से लगा माँ अन्नपूर्णा का मन्दिर भी लोगों में काफी लोकप्रिय है । मन्दिर के पुजारी के अनुसार भोलेनाथ अपने भक्तों के लिए माँ अन्नपूर्णा से भिक्षा के रूप में अन्न आदि मांग कर ले जाते है मान्यता है की काशी में कभी कोई भूखा नहीं सो सकता किसी न किसी रूप में भगवान यहाँ रहने वाले व्यक्ति के भोजन की व्यवस्था अवश्य करते हैं ।
काशी के कोतवाल कहे जाने वाले कालभैरव का मन्दिर भी लोगों में काफी लोकप्रिय है कहा जाता है की भोलेनाथ के दर्शन को जाने से पूर्व कालभैरव का दर्शन कर उनसे अनुमति ली जाती है और अपनी समस्या से उन्हें अवगत कराया जाता है काशी में निवास की अनुमति भी बाबा भैरव से लेनी जरुरी है अन्यथा बाबा नाराज हो जाते हैं । मान्यता है कि कोई भी पुलिस अधिकारी शहर में ज्वाइन करने से पहले बाबा के दर्शन को अवश्य जाता है । थोड़ी ही दूर पर मध्यमेश्वर में मृतुन्जय मन्दिर है जहाँ लोग दर्शन कर काल के डर से मुक्त हो जाते हैं । लोहटिया स्थित मन्दिर में स्वयं गौरी पुत्र गणेश लोगों के विघ्न दूर करते हैं शहर के दुसरे छोर पर दुर्गाकुण्ड पर संकट मोचन मन्दिर , मानस मन्दिर एवं दुर्गा मन्दिर भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय हैं । तुलसी दास द्वारा निर्मित हनुमान जी के मन्दिर में जाने मात्र से व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं । यहाँ हर मंगलवार और शनिवार को दूर दूर से भक्तगण अपने संकटों के निवारण हेतु मत्था टेकने आते हैं । नवरात्र के पांचवे दिन दुर्गा मन्दिर में दर्शन पूजन का विशेष महत्व है, वहीं सावन के महीने में मानस मन्दिर भगवान राम की झाकियों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है ।
गंगा तट पर बसा हुआ यह प्राचीन शहर विश्व के प्राचीनतम शहरों में से एक है । सुबह जब सूरज की किरणें गंगा के लहरों के साथ अठखेलियाँ करती हैं तो दृश्य इतना मनोरम होता है कि हर कोई इसे सहेज लेना चाहता है । यही वजह है कि सुबह-ए-बनारस की एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं । हाल ही में अस्सी घाट पर शुरू किया गया सुबह-ए-बनारस कार्यक्रम भी लोगों को खूब लुभा रहा । दशाश्वमेध घाट पर शाम को माँ गंगा की आरती लोगों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती है । गंगा आरती की ऐसी मनोरम प्रस्तुति अलौकिक प्रतीत होती है मोक्षदायिनी गंगा के तट पर स्थित मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार का अलग महत्व है । मान्यता है कि यहाँ पर अंत्येष्टि करने से आत्मा जीवन मरण के मायाजाल से मुक्त हो जाती है । हजारों साल पहले प्रज्वलित अग्नि आज तक कभी नहीं बुझी और न ही कभी श्मशान भूमि ही ठण्डी हुई घाटों का शहर बनारस राजघाट से अस्सी घाट तक न सिर्फ प्राचीनता का बोध कराता है बल्कि अनेक रजवाड़ों के वैभव की झलक भी प्रस्तुत करता है । पांच शिवालयों की यह नगरी सांस्कृतिक रूप से भी काफी सम्पन्न है बेंगाली टोला जहाँ पश्चिम बंगाल की झलक दिखलाता है वहीं केदार घाट मराठी संस्कृति से सराबोर नजर आता है, ललिता घाट के पास नेपाली मन्दिर जहाँ नेपाली संस्कृति का बोध कराता है वहीं राजघाट की तरफ जाने पर मैथिलि संस्कृति की खुश्बू महसूस होती है । सारनाथ बौध संस्कृति की ऐसी विराट दर्शन कराता है कि सात समंदर पार बैठा बौध अनुयायी खिंचा चला आता है ।
बनारसी साड़ीके लिए मशहूर शहर व्यावसायिक दृष्टि से भी काफी समृद्ध है । यहाँ निर्मित बनारसी साड़ी का निर्यात देश-विदेश किया जाता है । यह पूर्वांचल के लिए सबसे बड़ा बाज़ार भी है । दालमंडी स्थित थोक बाज़ार आस पास के जिलों के लिए आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराती है । बनारसी पान की दीवानगी यहाँ हद से ज्यादा देखने को मिलती है आलम यह है कि हर दूसरा आदमी मुंह में पान घुलाये दिख जाता है । यहाँ का लंगड़ा आम भी बहुत प्रसिद्ध है । खान-पान के शौकीनों को यह शहर खूब रास आता है। कचौड़ी- जलेबी के साथ ही विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ लोगों को खूब भाती  हैं ।

बनारस लक्खी मेलों के लिए भी विशेष तौर पर जाना जाता है । रामनगर की रामलीला , नाटी ईमली का भरत मिलाप , चेतगंज की नक्कतैया, डी एल डब्ल्यू का रावण दहन और रथयात्रा के मेले की विशेष पहचान है । लोग दूर – दूर से इन मेलों में हिस्सा लेने आते हैं और इन लक्खी मेलों के गवाह बनते हैं । रामनगर की रामलीला का मंचन जहाँ आज भी द्वापरयुग का बोध कराती है  वहीं नाटी ईमली के भारत मिलाप का नयनाभिराम दृश्य हर कोई अपनी नज़रों में कैद कर लेना चाहता है । इन दोनों मेलों में काशी नरेश की उपस्थिति इसे और विशेष बना देती है । चेतगंज की नक्कतैया में झाकियां देखकर हर कोई स्तब्ध रह जाता है । डी एल डब्ल्यू मैदान में जब रावण एवं कुम्भकर्ण के विशालकाय पुतले का दहन किया जाता है तो बुराई के इन प्रतीकों को जलता देख हर कोई राहत महसूस करता है। रथयात्रा मेले में भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने के लिए लाखों श्रद्धालु आतुर दीखते हैं । 

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