संदेश

2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

किसानी में का बा ?

  खेत बा खलिहान बा, टूटल मकान बा बरखा बुन्नी होत नईखे, रूठल आसमान बा ज़ेब में कड़की छाईल बा, दू सौ अरमान बा किसानी में का….. आठ घंटा लाइट बा, यूरिया क भाव टाइट बा असवों भाव गिरल बा, मंडी में स्ट्राइक बा दू जून के जुगाड़ में, रोज ही पंचाइत बा किसानी में का….   डीजल क भाव बढ़ल बा, अमीन दुआरे अड़ल बा कुछऊ बुझात नईखे, कईगो नेवता पड़ल बा रात के नींद आवत नईखे, दुआरे गल्ला पड़ल बा किसानी में का…. पप्पुआ क फीस देवे के बा, मलकिन के साड़ी लेवे के बा माई क आपरेशन बा, केहू से कर्जा लेवे के बा नून तेल लकड़ी खातिर, जीवन क नैया खेवे के बा किसानी में का… खाता में पैसा आईल बा, लेखपाल क साइन लेवे के बा धान क बीया भेवे के बा, खेत में पानी देवे के बा         स्टोर में आलू रखाइल बा, बुचिया क शादी जोहे के बा किसानी में का…. नेता क आश्वासन बा, आँख मुदले प्रशासन बा घोषणा पत्र क हिस्सा बा, किसानन खातिर भाषण बा हजार गो जंजाल बा, सूद-खोरन क मकड़जाल बा किसानी में का…..

गुरू

चित्र
सूरज की तपिश चाँद की छाया है गुरू, ईश्वर को भी सही राह दिखाया है गुरू | गुरू ही सिखाता हर मुश्किल से लड़ना, ईश्वर का रूप ईश्वर की काया है गुरू || कभी विश्वामित्र कभी परशुराम है गुरू, कभी राधाकृष्णन कभी कलाम है गुरू | दधिची सा त्याग गुरू ही कर सकता, शिष्य के लिए ईश्वर का वरदान है गुरू || असम्भव को सम्भव बना देता है गुरू,   जीवन को उत्सव बना देता है गुरू | मिल गया गुरू जो अबोध कबीर को,   जीवन का सार समझा देता है गुरू || सागर सा ज्ञान का भण्डार है गुरू,   भविष्य निर्माता व सृजन-संसार है गुरू | तय कराता अँधेरे से प्रकाश का सफ़र, शिष्य के जीवन का खेवनहार है गुरू || भूत के रहस्य से पर्दा उठाता है गुरू, वर्तमान का मार्ग सुगम बनाता है गुरू | समझाकर जीवन मूल्य ‘दीप’, सहस्रतार्ची बन भविष्य की राह दिखाता है गुरू ||

मैं केजरीवाल बोल रहा हूँ… ( व्यंग्य )

( मनीष जी केजरीवाल जी से मिलने उनके घर पर आते हैं, दिल्ली के हालात पर दोनों के बीच काफी देर तक चर्चा होती है | प्रस्तुत है दोनों के बीच हुई बातचीत का मुख्य अंश…) मनीष- क्या हुआ भाई ? आप इतने परेशान क्यों दिख रहे हो ? केजरीवाल- क्या बताऊँ मनीष ? दिल्ली की जनता हमारी असलियत जान चुकी है | जब भी फोन करता हूँ, उल्टा ही सुनाती है.. वादाखिलाफी करने का आरोप वो लगाती है | पता नहीं उनको भड़का रहा है कौन ? मनीष- आप चिंता न करो भाई.. आप फिर से फ़ोन लगाओ.. देखता हूँ मैं उठाता है कौन ? केजरीवाल- फिर से फ़ोन लगाते हैं…. रिंग बजती है.. दूसरी तरफ से एक महिला फ़ोन उठाती है… महिला- हैल्लो कौन ? केजरीवाल- अरे हम बोल रहे हैं | महिला- कौन ? किससे बात करनी है ? केजरीवाल – मुझे नहीं जानती ? महिला- नहीं जानती.. केजरीवाल- मुझे नहीं पहचानती ? महिला- बोला न.. नहीं पहचानती.. आइन्दा इस नम्बर पर फोन नहीं करना..कहकर फ़ोन कट कर देती है | मनीष- भाई ये तो पोपट हो गया.. मात्र ५ महीनों में ही लोग आपकी आवाज तक भूल गये..लगता है जनता आपसे नाराज है | केजरीवाल- ऐसी बात नहीं.. जनता विश्वास करती है, मेरे ए...

हिंदुस्तान के प्रहरी

देश के असली हीरो का, आईये हम सम्मान करें | शहीद हुए हैं शूरवीर, शहादत पर अभिमान करें || कर्तव्य मार्ग पर चलके,  प्राण आहुति दे गये वो | हम भी तो कम से कम, नीजि स्वार्थ बलिदान करें || हिंदुस्तान के प्रहरी हैं वो , भारत माँ के सब बेटे हैं | शान तिरंगा की रख, माँ भारती की गोद में लेटे हैं || अखंड भारत के सपने संग, सरहद पर जो डटे हुए | आपस में लड़कर हम सब, कम उनका न मान करें || कर लेगा मनमानी अपनी, ड्रेगन की औकात नहीं | जब तक हिन्द के रक्षक हैं, डरने की कोई बात नहीं || राजनीति से ऊपर उठिये, यह साथ चलने की बेला है | चक्रव्यूह में फंसा अभिमन्यू, फिर से आज अकेला है || दुश्मन का दम्भ तोडने, जो बैठे हैं दुश्मन की छाती पर | वीर रणबाकुरों का मिलकर, हमसब ही गुणगान करें ||

आरजू

ख्वाब मेरे जब कभी, हकीकत में बदलेंगे | ख़ुदा कसम ख़ुदा से, हम तुम्हें माँग लेंगे || हैं मुश्किल हालात आज, आरजू-ए-सफ़र के | आयेंगे तेरे दर पे, मेरे हालात जब बदलेंगे || मेरी मुहब्बत पर, रखना यकीन मेरे यार | अँधेरी निशा से कल, बाहर हम निकलेंगे || तेरी यादें जो हो गयी, कभी रुसवा मुझसे | खुद को ही खुद से, रुसवा हम कर लेंगे   || मर भी गये कल, तो निभाएंगे ‘दीप’ वादा | तेरी धड़कनों में एहसास बन कर जीयेंगे ||

मजदूर ही तो हैं

चित्र
मरते हैं तो मरने दो मजदूर ही तो हैं, बेबस लाचार गरीब मजबूर ही तो हैं   | छले जाते हैं ये ताउम्र ज़िन्दगी में, वक्त के मारे मिट्टी के कोहिनूर ही तो हैं || दुःख में मुस्कुराने का हुनर आता इन्हें, सदियों से ही कुचला जाता है जिन्हें   | कीड़े-मकोड़े से ज्यादा वजूद नहीं कोई, सुख गढ़ते हैं पर सुख से दूर ही तो हैं || गाँव से शहर भाग आते हैं अभागे, लाते हैं साथ ये जिम्मेदारियों के धागे | बहन का सम्मान और पिता की लाठी, माँ के आँखों के ये नूर ही तो हैं   || गर्मी जाड़ा हो या भयंकर बरसात, सुहानी सुबह हो या फिर काली रात | हर रोज ही अपनी हड्डियों को गलाते, खुद के अरमान जलाते तन्दूर ही तो हैं || आपके सपनों का महल हैं ये बनाते, भगा देते हैं आप साहब इनको रुलाके | बहुत कुछ कहती हैं नम आँखें इनकी, कसूर इतना है कि बेक़सूर ही तो हैं || बड़ा दर्द है ‘दीप’ इनकी सिसकियों में मोल नहीं जिनका सत्ता की गलियों में | मौत पर बहा देते कुछ घड़ियाली आँसू, राजशाही के लिए ये गैर-जरूर ही तो हैं || जिस शहर को अपने पसीने से सींचा, उस शहर से लौट रहे बेगरूर ही तो हैं | भू...

गांव

गांव जबसे  हमारे  शहर बन गये, बीज प्यार के देखो जहर बन गये | टूट गई हैं जबसे मिट्टी की  दिवारें, सभी के यहां पक्के घर बन गये || तरक्की इतनी हुई कि इठलाने लगे, माँ- बाप से अलग  घर बनाने लगे | बांट लेते थे कभी गैरों के भी  गम, आज अपनों से नजरें  चुराने लगे || गांव की बदली है ऐसी आबो- हवा, भाई-भाई में नफरत से नहाई फिजा | नजर किसकी लगी ये पता न चला, प्यार के देवता आज कहर बन गये || टीवी सोफे और महंगे साजो-सामान, रूतबा भी और दौलतमंद की पहचान | नींद आती थी जो नंगी  चारपाई  पर , मखमली बिस्तर भी नहीं देते आराम || चले थे कहाँ और 'दीप ' कहाँ आ गये, सब कुछ पाकर भी हम बंजर बन गये ||

एहसास

बिन तेरे अधूरा हूँ,   मेरी पहचान इतनी है | तू सीने में है जबतक, मेरी हाँ जान इतनी है || तेरी यादों की महफ़िल से, सनम मैं रोज गुजरता हूँ चाँद तारों से रातों को, तेरी ही बातें करता हूँ || तेरे दीदार को आँखें, मेरी हर पल तरसती हैं | कभी पलकें भिगोती हैं , कभी सावन सी बरसती हैं || खता थी मेरी कोई, जो मुझको छोड़ गये तुम | जगाकर प्यार सीने में, तड़पता छोड़ गये तुम || तेरे बारे में पूछूँ जो, इन बेदर्द हवाओं से | तार दिल के छेड़ कहतीं, पूंछो दिशाओं से || तुझसे बिछड़ कर मेरे, जज्बात कैसे हैं | कैसे बताऊँ तुझको, मेरे हालात कैसे हैं || तू लौट के आ जा, मेरी अरमान बन जा तू | मैं बन जाऊँ तेरी धड़कन, मेरी जां बन जा तू ||

कसक

वो हमसे रूठ कर न जाने किधर गये, मेरे घर न आये न अपने शहर गये  | न ख़त आया उनका न आया पैगाम, इंतज़ार में उनके कई सावन गुजर गये  | | फासले बढ़ते गये दोनों के दरमियां, होते थे जो कभी दो जिस्म- एक जां  | दबीज होने लगी है उन यादों की कब्र, जिन यादों के सहारे वर्षों गुजर गये  | | कफ़स बन गयी हिज्र की वो शाम, बच गया मेरी दुनिया में जजीरे इन्हिदाम  | जो ख़्वाब मेरे सीने में दफ्न हैं उनके, कैसे करूँ ‘दीप’ उन ख्वाबों को नीलाम  | | मयस्सर नहीं प्यार उनका कोई बात नहीं, कैसे कहूँ दिल में उनके जज्बात नहीं  | भीगी पलकें कराती हैं एहसास हर सुबह, न आये मेरे ख्वाब में कोई रात नहीं  | | उनकी तस्वीर को सीने से लगा रखा है, यादों की दिल में दुनिया बसा रखा है  | कहीं किसी मोड़ पर होगी मुलाकात, इस उम्मीद में खुद को जिन्दा रखा है  | |