मात्र भौगोलिक इकाई नहीं हैं नदियां
नदियों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है |
भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता नदियों के किनारे पुष्पित पल्लवित हुई हैं | हमारे
वेद-पुराण नदियों की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं जबकि धार्मिक अनुष्ठानों के लिए
नदी तट को अत्यन्त शुभ बताते हैं | भारतीय सभ्यता के विकास की साक्षी नदियाँ, भारतीय
ऋषियों के तप की भी साक्षी रही हैं | नदियों का हमारे सामाजिक, आर्थिक एवं
सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है | नदियाँ हमारे लिए मात्र भौगोलिक इकाई
नहीं हैं अपितु सृष्टि के सृजन एवं संचालन दोनों में ही नदियों की महती भूमिका परिलक्षित
होती है | नदियाँ मात्र जल-स्रोत नहीं है, यह समग्र में एक पारिस्थितकीय तंत्र भी
है जिसमें अनेकों जलचर निवास करते हैं | प्राचीन काल से ही नदियाँ भारतीय
अर्थव्यवस्था के विकास में भी सहभागी रही हैं | परन्तु विगत कुछ वर्षों से नदियों के
मुक्त-प्रवाह के साथ ही इनके जल की गुणवत्ता में नकारात्मक बदलाव देखने को मिला है
| नदियों को ‘माँ’ कहकर पूजने वाले भारत में नदियों की दयनीय स्थिति भविष्य के लिए
सुखद सन्देश नहीं हैं | ऐतिहासिक महत्त्व वाली अनेक नदियों का ‘नाले’ में
परिवर्तित हो जाना, गंगा एवं यमुना जैसी बड़ी नदियों का स्थिति में नकारात्मक बदलाव
होना, दर्जनों नदियों का अस्तित्व समाप्त हो जाना, एवं बारहों महीने प्रवाहित होने
वाली नदियों का वर्षा ऋतु में ही जल धारण करना, कहीं न कहीं, नदियों के प्रति
हमारे उदासीन सोच को दर्शाता है | पृथ्वी
पर जीवन की संवाहक नदियाँ आज तेजी से सिकुड़ रही हैं तो कहीं न कहीं हमारी
अदूरदर्शी सोच जिम्मेदार है |
विगत कुछ दिनों से नदियों का रौद्र रूप देखने को मिल रहा
है | कई स्थानों पर गंगा खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं तो वहीं सहायक नदियों का
बढ़ता जलस्तर भी डरा रहा है | हजारों एकड़ फसलों को बर्बाद करने एवं नदियों की तलहटी
में जा बसी आबादी को आगाह करने के बाद शायद नदियों का क्रोध शांत हो जाये और बारिश
थमने के बाद स्थिति में बदलाव हो जाये, परन्तु नदियों की अनदेखी आने वाली पीढ़ी के
लिए अस्तित्व संकट की बुनियाद है | घरेलू एवं औद्योगिक कचरों के बोझ को नदियों का
बाधित प्रवाह ढ़ोने में असमर्थ है, फिर भी न तो नदियों को साफ़ रखने के सरकारी
प्रयास परिणति में परिवर्तित हो पा रहे हैं और न ही आम जनमानस में नदियों के प्रति
आदर का भाव ही विकसित हो पा रहा है | शहरों का मल-मूत्र ढ़ोने वाले नाले, नदियों से
मिलकर न सिर्फ उन्हें दूषित कर रहे हैं अपितु नदियों के सामने अस्तित्व संकट भी
पैदा कर रहे हैं | भारत की सर्वाधिक पवित्र नदियों में से एक, यमुनोत्री से निकलने
वाली भगवान कृष्ण की यमुना आज सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है |
दिल्ली में यमुना, प्रदूषण से कराह रही है | ८५० एमजीडी
की तुलना में ६०० एमजीडी सीवर-जल को ही शोधित करने की व्यवस्था है | दिल्ली सरकार
ने २०२५ तक यमुना को साफ़ करने का लक्ष्य रखा है, परन्तु सरकार इस लक्ष्य को
प्राप्त करने से बहुत दूर दिखलाई पड़ती है | कच्ची कालोनियों से निकलने वाला कचरा
सीधे यमुना में मिल रहा है तो वहीं कई ऐसे नाले हैं जिनका दूषित जल बिना शोधन के
ही यमुना में गिर रहा है | झागयुक्त विषैले जल को साफ़ करने के तमाम सरकारी प्रयास
नाकाफ़ी दिखते हैं | हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, यमुना नदी
के जल में ‘मानव-मल’ में पाये जाने वाले
बैक्टीरिया की खतरनाक मात्रा, देश की राजधानी दिल्ली को डराती है, साथ ही ‘यमुना
एक्शन प्लान’ को अप्रभावी भी बताती है | यदि यमुना नहीं बची तो राजनैतिक नगरी
दिल्ली जलविहीन हो जायेगी, ऐतिहासिक महत्त्व वाली भगवान कृष्ण के मथुरा की आत्मा मर जायेगी, विश्व में सुन्दरता
के प्रतीक ताजमहल पर दाग लग जायेगा, वहीं गंगा, यमुना एवं सरस्वती के आत्मीय मिलन
की गवाह नगरी प्रयागराज कुम्भ स्नान के अमृत बोध से मुक्त हो जायेगा | हिमालय से
निकलकर बंगाल की खाड़ी तक पहुँचने से पहले भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा अनगिनत नालों
की गंदगी ढ़ोने को मजबूर है | गंगा का अमृततुल्य जल आज मानवजनित विषाक्त पदार्थों
से मिलकर अपने प्राकृतिक गुण से दूर हो रहा है | हरिद्वार पहुँचने से पहले ही
गंगाजल में खतरनाक बैक्टीरिया मिलना भविष्य के लिए एक संकेत है | कानपुर, वाराणसी,
एवं पटना जैसे बड़े शहरों में आज गंगाजल बहुत अधिक दूषित हो चुका है, एवं इसे साफ़
तथा स्वच्छ बनाने के तमाम सरकारी प्रयास अपर्याप्त साबित हो रहे हैं | नदियों के
किनारे बसे शहरों से निकलने वाले घरेलू कचरे, औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाले
रासायनिक पदार्थ, एवं प्लास्टिक इत्यादि के दंश से नदी का जल काला पड़ता जा रहा है |
वाराणसी में गंगाजल का अचानक हरा हो जाने की घटना हो या दिल्ली में यमुना के जल पर
झागयुक्त रसायन का तैरना, भविष्य के लिए सुखद संकेत कदापि नहीं है |
मई २०१५ में गंगा एवं सहयोगी नदियों की दयनीय स्थिति में
सुधार करने के उद्देश्य से २० हजार करोड़ की नमामि गंगे परियोजना शुरू की गयी थी, परन्तु
पहला चरण बीत जाने, एवं आधी से अधिक राशि खर्च हो जाने के बाद भी गंगा को साफ़ करने
की योजना धरातल से अभी भी दूर है, एवं गंगा को साफ़ करने की दिशा में सार्थक परिणाम
अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है |राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत ‘नमामि गंगे
२.०’ की बुनियाद भी रखी जा चुकी है, एवं सरकार को यह उम्मीद है कि इससे नदियों की
स्वच्छता एवं निर्मलता की दिशा में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे | नदियों के
संरक्षण एवं प्रदूषणमुक्त करने की दिशा में प्रयास जारी हैं, परन्तु जब तक हम
नदियों के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे, नदियाँ प्रदूषण-मुक्त नहीं होंगी | इस दिशा
में रिसर्च फॉर रिसर्जेन्स फाउंडेशन, नागपुर का ‘नदी को जानो’ अभियान एवं तरुण
भारत संघ द्वारा नदियों को पुनर्जीवित करने की दिशा में किया जा रहा कार्य अत्यन्त
महत्वपूर्ण है जो जीवनदायिनी नदियों की वर्तमान स्थिति में सुधार के लिए लोगों को
जागरूक कर उनको सहभागी बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं | नदियों किनारे
संचालित विद्युत उत्पादन इकाईयों की स्थापना हो, कृषि के लिए सिंचाई जल की
व्यवस्था हो या फिर पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करना, सरकार बाँध बनाकर नदियों के
प्रवाह को अवरूद्ध करने पर विवश है परन्तु सरकार की यह विवशता दीर्घकालिक संकट
पैदा कर रही है | धार्मिक अनुष्ठानों एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ ही भारतीय
संस्कृति एवं सभ्यता की विकास यात्रा के केंद्र में रही नदियों का अस्तित्व मिटा
तो पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व मिटने में देर नहीं लगेगी | सरकार को विकास की
कार्ययोजना बनाते समय नदियों के मुक्त-प्रवाह के साथ ही, प्रदूषण-मुक्त रखने के
कारगर उपाय भी करने होंगे, साथ ही आम जनमानस को संवेदनशील एवं सहभागी बनाना होगा |
Very Informative
जवाब देंहटाएंइसके लिए सभी प्राइवेट कंपनियों पर सरकार द्वारा नियम लागू करना चाहिए, व स्वयं भी जगह जगह हाइड्रोफाट्स प्लांट लगाना चाहिए व इक्विलीब्रियम टैंक का निर्माण करना चाहिए, जिससे जल प्रदूषण पर रोक लगाई जा सके।
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