एक है जो...
नफरतों के दौर में प्यार बाँट रहा,
शुष्क मौसम में बहार बाँट रहा |
कट गये हैं जड़ों से हजारों तरुण,
ऐसे वर्धमानों में संस्कार बाँट रहा ||
बढ़ रही है पीड़ा, कुंठा और संत्रास,
अपनों से दूरी का कड़वा एहसास |
दब रही है हँसी दुखों के पहाड़ से,
मुस्कुराहट की हल्की फुंहार बाँट रहा ||
बंज़र हो रही है जो उपजाऊ धरा,
हरेक आँगन है आज सूना पड़ा |
देहरी को तकती हैं पथराई आँखें,
ऐसी दीदाओं को संसार बाँट रहा ||
पाया है कुछ तो खोया बहुत है,
अपनों को खोकर रोया बहुत है |
पपीहा सा प्यासा मुसाफिर कोई,
हर प्यासे को जल-धार बाँट रहा ||
👌👌👌👌
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