दक्षिण भारत के तरफ बढ़े भाजपा के कदम
आगामी लोकसभा
चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तैयारी शुरू कर दिया है जबकि प्रमुख
विपक्षी दल कांग्रेस अभी भी अपने सहयोगी क्षेत्रीय दलों के सियासी उठापटक में उलझी
हुई है | उत्तर भारत में मजबूत स्थिति में दिख रही भाजपा इस बार दक्षिण भारत में
सियासी बढ़त बनाना चाहती है जिससे वह लोकसभा में एक ऐतिहासिक लक्ष्य को प्राप्त कर
सके | हाल ही में सम्पन्न तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार ८
सीटों पर जीत हासिल कर यह संकेत दे दिया है कि आने वाले चुनाव में वह दक्षिण के इस
राज्य में अच्छा प्रदर्शन करने जा रही है | कर्नाटक में पहले से ही भाजपा का
प्रदर्शन ठीक रहा है जिसे वह और बेहतर करना चाहेगी जबकि आंध्रप्रदेश में भाजपा को
सहयोगी दलों से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद होगी | प्रमुख दक्षिण
भारतीय राज्य तमिलनाडु भाजपा के एजेंडे में सबसे ऊपर दिखाई दे रहा है जहाँ यह
राष्ट्रीय दल अन्नाद्रमुक से रिश्ता तोड़कर आगे बढ़ चला है एवं अपने अभियान की कमान
अन्नामलाई जैसे पिछड़ी जाति के नेता के हाथों में सौंप रखा है | पिछड़े समूह से आने
वाले अन्नामलाई अपनी जाति के वोटरों में अच्छी पकड़ रखते हैं, साथ ही प्रधानमंत्री
के रूप में मोदी की द्रविड़ वोटरों के बीच लोकप्रियता भी बढ़ती नज़र आ रही है, केंद्र
सरकार द्वारा पिछड़े एवं अति-पिछड़े समूह के लिए चलायी जा रही योजनाओं से भी भारतीय
जनता को फायदा होने की उम्मीद है | भाजपा मुस्लिम वोटरों को साधने में भी लगी है, मुस्लिम
महिलाओं के साथ ही पसमांदा मुस्लिमों को अपनी तरफ आकर्षित करके दक्षिण भारत में
अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पार्टी सक्रिय दिखलाई देती हैं | तमिलनाडु में पिछड़े समूह के अलावा ब्राह्मण वोट
पर भी भाजपा की पैनी नजर है जो अभी तक भाजपा से दूर नजर आते रहे हैं | विगत वर्ष
काशी-तमिल संगमम की शुरुआत करके भाजपा ने दो प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्रों को जोड़ने
की कवायद शुरू कर दिया था जिसे विपक्षी दलों ने भले ही मात्र आयोजन समझा था जबकि
राजनीतिक जानकारों ने इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बताया था | १६ नवम्बर, २०२२ को शुरू किये गये ‘काशी तमिल संगमम’ न सिर्फ भारतीय सभ्यता
एवं संस्कृति के दो प्राचीनतम संस्कृतियों को एक-दूसरे के पास लाने का प्रयास था, अपितु
इससे अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय राजनीति के दो घटकों को जोड़ने का प्रयास भी किया
गया | इस वर्ष १८ दिसंबर को काशी-तमिल संगमम के शुभारम्भ के अवसर पर उत्तर प्रदेश
के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे प्रधानमंत्री के विजन का परिणाम बताया था
जिसके केंद्र में दक्षिण से उत्तर के संगम को साकार करना था | सांस्कृतिक
राष्ट्रवाद केन्द्रित यह संगमम सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विचार-विमर्श से जुड़ा
है, परन्तु इसके राजनीतिक निहितार्थ भी है | यही कारण है कि २०२२ एवं २०२३ में हुए
इस आयोजन में भाजपा के बड़े नेता सक्रिय रूप से सहभागी रहे |
भारतीय जनता
पार्टी दक्षिण भारतीय जनमानस को काशी विश्वनाथ मंदिर का भव्यतम स्वरुप दिखाकर
उन्हें आध्यात्मिक गौरव का एहसास कराने के साथ ही उत्तर से दक्षिण तक एक भावनात्मक
सेतु का निर्माण करने में लगी है | इस वर्ष होने वाले आयोजन में सहभागिता करने
वाले लोगों को अयोध्या में बन रहे भव्य राममन्दिर से जोड़ने का लक्ष्य भी देखा जा
सकता है | इस तरह भाजपा रामेश्वरम एवं काशी विश्वनाथ के पावन ज्योतिर्लिंगों के
माध्यम से जहाँ धार्मिक जुड़ाव स्थापित करने का प्रयास कर रही है वहीं उत्तर से
दक्षिण भारत तक अपने पदचिन्ह अंकित कराने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम राम के माध्यम
से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के भाव को जागृत करने के लिए प्रयासरत भी दिखती है |
भाजपा यह जानती है कि आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्य का बोध कराकर भारत की दो
प्राचीन संस्कृतियों को जोड़ने का मार्ग प्रशस्त होगा, साथ ही तमिल लोगों के अन्दर आध्यात्मिक
चासनी में लिपटे राष्ट्रबोध का भाव विकसित किया जा सकेगा | आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष
में ऐसे आयोजनों से सरकार न सिर्फ एक भारत श्रेष्ठ भारत की पटकथा लिख रही है अपितु
मुख्य विपक्षी पार्टी के अभियान की धार कुंद करके दक्षिण भारत विशेषकर तमिल
मतदाताओं में पैठ भी बनाना चाहती है | वर्तमान सरकार जानती है कि खण्डित हिन्दू मतदाताओं
को धार्मिक भावनाओं के माध्यम से ही जोड़ा जा सकता है, एवं यह आयोजन इस दिशा में एक
महत्वपूर्ण कदम हो सकता है |
विगत दो
वर्षों में कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार से दक्षिण भारतीय
मतदाताओं को रिझाने का प्रयास किया है, उससे २०२४ में होने वाले चुनाव में दक्षिण
भारत की महत्ता स्पष्ट होती है | कांग्रेस ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के जरिये अपने
परम्परागत वोटरों को जोड़ने का प्रयास किया, साथ ही दक्षिण भारत से सम्बन्ध रखने
वाले नेता को पार्टी की कमान सौंपकर दक्षिण के अपने किले को ध्वस्त होने से बचाने
को प्रयासरत दिखती है क्योंकि उत्तर भारत में कोई चमत्कार ही पार्टी को अपेक्षित
जीत दिला सकता है | इसीलिये कांग्रेस के कद्दावर नेता दक्षिण भारतीय राज्यों की
तरफ ही मुख्यरूप से देख रहे हैं | हालाँकि उत्तर से लेकर दक्षिण तक अपना घर बचाने
को आतुर क्षेत्रीय दल कांग्रेस को ‘हिट विकेट’ नहीं करायेंगे, इसकी आशंका कम ही है
| दक्षिण भारतीय मतदाताओं में पैठ रखने वाले क्षेत्रीय दलों के नेता इस बात से
भलीभांति परिचित हैं कि आई एन डी आई ए गठबंधन में हो रही खींचतान एवं गठबंधन का एक
चेहरा न होना आगामी चुनाव में भारी पड़ सकता है, उत्तर भारत में भाजपा की मजबूत
स्थिति को देखते हुए वो किसी कीमत पर दक्षिण में भाजपा का विस्तार नहीं चाहते हैं
| दक्षिण भारतीय नेताओं के पिछले कुछ बयानों ने दक्षिण एवं उत्तर भारत में कड़वाहट
पैदा करने का भरसक प्रयास किया जिसपर कांग्रेस का मौन उत्तर भारतीय वोटरों को
नागवार गुजरा जबकि भाजपा ने इसे कांग्रेस की मिलीभगत कहकर प्रसारित किया | इस समय
भाजपा दक्षिण भारत के राजनैतिक वातावरण को अनुकूल मान रही है, एवं केरल को छोड़कर
अन्य सभी दक्षिणी राज्यों में अच्छे परिणाम के प्रति आशान्वित है | अब देखना यह है
कि उत्तर भारत में कमल खिलाने वाली भाजपा दक्षिण भारत में कितने राज्यों में कमल
खिला पाती है ? हालाँकि, वर्तमान प्रयास एवं परिस्थितियां भारतीय जनता पार्टी के
अनुकूल दिखती हैं |
Very apt and balanced review
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