विगत दिनों बिहार में उच्च शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी कर महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में कार्यरत शिक्षकों को प्रतिदिन कम से कम 5 कक्षाएं लेना अनिवार्य कर दिया, साथ ही यह स्पष्ट कर दिया कि जो भी शिक्षक इस आदेश का पालन नहीं करेंगे उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायेगी | कुलसचिव एवं प्राचार्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी शिक्षक अनिवार्य रूप से प्रति कार्यदिवस न्यूनतम 5 कक्षा लेंगे, साथ ही इस बाबत उन्हें नियमित रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी | एक तरफ सरकार शिक्षा सुधार की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है और राज्य में बेपटरी शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की पुरजोर कोशिश कर रही है, तो वहीं यह आदेश शिक्षकों की मनोदशा पर प्रतिकूल असर डाल सकता है | हाल ही में राज्य को लगभग 1 लाख नये शिक्षक मिले हैं एवं जल्द ही 1 लाख से अधिक शिक्षकों की भर्ती की जानी है | ऐसे में राज्य में शिक्षा व्यवस्था के कायाकल्प की दिशा में सकारात्मक संकेत से सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश पर असर पड़ना लाजिमी है, परन्तु आदेशित शैक्षिक कार्यभार से शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित होने का जोख़िम अत्यधिक है |
स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही सरकार ने शिक्षा सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया था जिसमें शिक्षण कार्य को अन्य पेशे से अलग देखना महत्वपूर्ण था | 1948 में शिक्षाविद् डॉ० राधाकृष्णन की अध्यक्षता में गठित विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने अपने सिफारिशों में कहा था कि अध्यापकों से सप्ताह में अधिक से अधिक 18 घंटे अध्यापन कार्य कराया जाये | 1964 में गठित कोठारी आयोग ने भी अपनी संस्तुतियों में अनुकूल एवं पर्याप्त सेवा शर्तों से जुड़े बिन्दुओं को प्रमुखता से शामिल किया था | मैकाले पद्धति द्वारा भारतीय शिक्षा पद्धति में रोपित अनेकानेक दोषों को समाप्त करने की दिशा में विगत 75 वर्ष से कार्य किये जा रहे हैं जिससे हम मात्र साक्षरता दर बढ़ाने की ओर न देखें अपितु शिक्षा की गुणवत्ता का भी ध्यान रखा जा सके | देश में उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों की संख्या निरन्तर बढ़ी है | स्वतंत्रता के समय देश में जहाँ मात्र 20 विश्वविद्यालय एवं 500 महाविद्यालय थे वहीं आज यह संख्या बढ़कर क्रमशः 42,343 तथा 1043 की संख्या को पार कर गई है | उच्चतर शिक्षा में दाखिले भी निरन्तर बढ़ रहे हैं, जो कि एक सुखद संकेत है परन्तु आज भी छात्र शिक्षक अनुपात में हम पीछे नज़र आते हैं जिससे उपलब्ध शिक्षक पर अतिरिक्त भार पड़ना लाजिमी है | इससे शैक्षणिक गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है | उच्चतर शिक्षा विभाग देश में उच्चतर शिक्षा तथा अनुसंधान के विश्वस्तरीय अवसरों को लाने में लगा है जिससे छात्र अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मिल रहे अवसरों से न चूके | केंद्र सरकार ने वर्ष 2023-24 के लिए शिक्षा मंत्रालय के लिए पूर्व में आवंटित बजट में बृद्धि कर एक सकारात्मक संकेत दिया है, यह भारतीय शिक्षा के प्रगतिशील बजट कहा जा सकता है | हालाँकि शिक्षा पर खर्च के मामले में अभी भी भारत दुनिया में काफी पीछे है जो विश्व में सर्वाधिक मानव संसाधन रखने वाले देश में ज्ञान एवं कौशल आधारित शिक्षा के दायरे को सीमित करता है |
आज एक तरफ तो हम शैक्षणिक सुधारों की बात कर रहे हैं तो वहीं शिक्षा व्यवस्था के रीढ़ के रूप में कार्यरत शिक्षकों पर अध्यापन के साथ-साथ अनेकानेक कार्यों का बोझ बढ़ाते जा रहे हैं | चुनाव, जनगणना, जागरूकता-कार्यक्रम सम्बंधित आयोजनों में भी शिक्षकों से अनिवार्य सहभागिता की अपेक्षा की जाती है जिससे पठन-पाठन प्रक्रिया प्रभावित होती है | परीक्षा एवं मूल्यांकन कार्य शैक्षणिक उत्तरदायित्व का अनिवार्य हिस्सा होता है जबकि मेंटर, मेंटी कार्य हो, राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद से सम्बन्धित कार्य हो, सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों में सहभागिता हो या फिर अन्य विभागीय उत्तरदायित्व, वर्तमान शैक्षिक परिवेश अध्यापक से निर्धारित कार्यभार से अधिक समय की माँग करता है | विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित नियम के अनुसार शिक्षक को प्रतिवर्ष 30 कार्य सप्ताह के लिए प्रति सप्ताह कम से कम 40 घंटे का कार्यभार सुनिश्चित किया गया है, हालाँकि इस कार्यभार में अध्यापन कार्य की अलग रूप-रेखा स्पष्ट होती है | देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक अध्यापक के लिए प्रति सप्ताह 16 कक्षाएं निर्धारित हैं तो वहीं सह-आचार्य प्रति सप्ताह 14 कक्षाएं लेता है | इसके अतिरिक्त अन्य विभागीय कार्य एवं शैक्षणिक कार्य में सहभागिता भी वर्तमान शैक्षणिक प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है |
अनेक उच्च शिक्षण संस्थान शिक्षकों की कमी से भी जूझ रहे हैं जबकि विगत कुछ वर्षों में अनुपातिक छात्र संख्या बढ़ी है, ऐसे में उपलब्ध शिक्षकों पर कार्यभार का अतिरिक्त बोझ देखने को मिलता है | दिल्ली विश्वविद्यालय एवं इलाहबाद विश्वविद्यालय में वर्षों से रिक्त पड़े पदों पर भर्ती होने से कार्यरत शिक्षकों ने राहत की सांस ली है जबकि देश में कई ऐसे महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय हैं जहाँ कम संख्या में अध्यापक होने की वजह से अध्यापन एवं शोध कार्य प्रभावित हो रहा है | एक तरफ सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक सुधार हेतु निरन्तर प्रयास किया जा रहा है एवं अध्यापकों को नवाचार एवं शोध कार्यों से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ शैक्षणिक कार्यों के अतिरिक्त प्रशासनिक एवं अन्य कार्यों के बढ़ते बोझ से शिक्षक स्वयं के लिए अध्यन एवं शोध कार्य के लिए आवश्यक समय में कटौती करने के लिए बाध्य होता है जिससे अंततः शैक्षणिक गुणवत्ता पर असर पड़ता है | उच्च शिक्षा मात्र विषय-केन्द्रित जानकारी देना नहीं है, अपितु गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नूतन ज्ञान, नवाचार, अनुसंधान की आधारशिला है | उच्च शिक्षा से जुड़े सभी शिक्षकों को अध्यापन से पहले विषय को चिंतन, मंथन, एवं अध्यन की त्रिआयामी प्रक्रिया से गुजारना होता है तब जाकर वह विषय के साथ न्याय कर पाता है | आज के तकनीकी युग में अधिसंख्य छात्र विषय केन्द्रित तथ्यों से परिचित होता है, ऐसे में शिक्षक का कार्य और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है | शिक्षक तथ्य प्रस्तुत करने वाला कोई उपकरण नहीं है, वह विषय के समग्र पक्षों का सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक पक्ष प्रस्तुत कर विद्यार्थी के अंतःकरण को दिशा देने वाला माध्यम है | ऐसे में आदर्श समाज निर्माण में शिक्षकों की भूमिका और भी बढ़ जाती है | गाँधी जी भी शिक्षा को मनुष्य के सर्वांगीण विकास का सशक्त माध्यम मानते थे | शिक्षा व्यक्ति के ज्ञान एवं कौशल में बृद्धि के साथ ही उसके दृष्टिकोण में भी बदलाव करती है, शिक्षा द्वारा ही चरित्र निर्माण किया जा सकता है, यह समाज को दिशा देने का कार्य करती है | शिक्षा व्यक्ति के बौद्धिक विकास के साथ ही उसके व्यावहार एवं आचरण का निर्धारण करती है जिससे उसके व्यक्तित्व का समग्र विकास होता है | यह देश के विकास के लिए अनिवार्य घटक है |
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तर्कसंगत क्रियान्यवन में भी शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है, ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु वर्तमान शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करना होगा जिससे शिक्षक शिक्षण कार्य को बोझ के रूप में न ले अपितु वह कर्तव्यबोध के साथ अपने उत्तरदायित्व का पालन कर सके | शिक्षण कार्य कोई पेशा नहीं है, यह निर्धारित कार्य अवधि एवं शारीरिक श्रम से मुक्त एक मानसिक कार्य है जो एक सतत प्रक्रिया से जुड़ा कार्य है | ऐसे में शिक्षकों के लिए 5 घंटे अध्यापन की अनिवार्यता सम्बन्धित आदेश भले ही मात्रात्मक शिक्षण के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा परन्तु यह शैक्षणिक गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर भी डालेगा | आज देश में एक दूरदर्शी शैक्षणिक वातावरण की आवश्यकता है जिससे शैक्षणिक संस्थान उपलब्ध मानव पूंजी को ज्ञान, कौशल, तकनीकी एवं मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान कर सके, निश्चित तौर पर इस कार्य में हमारे शिक्षकों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका नजर आती है | अतः आवश्यक है कि सरकार शिक्षकों को मात्र कार्य सम्पादित करने वाला साधन न समझकर उन्हें समाज निर्माण करने वाला प्रभावी एवं अनिवार्य माध्यम समझे |
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