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सितंबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आज़ादी के दीवानें

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  आज़ादी के दीवानों को सलाम लिख रहा हूँ | उनकी वीरता पर आज कलाम लिख रहा हूँ || ब्रिटिश हुकूमत की जिन्होंने दीवारें हिला दी | ज़ालिम अंग्रेजों को हिन्द की ताकत दिखा दी || मंगल पाण्डेय ने किया आजादी का शंखनाद | अठ्ठारह सौ संतावन को दुनिया करती है याद || जन-जन को जगा फिर सो गया जो बहादुर | आज उसकी तरफ से मैं पैगाम लिख रहा हूँ || आज़ादी के दीवानों को............ बैरकपुर की धरती उसे आज भी करती है याद | बलिया से आया था मंगल बनकर एक सैलाब || घबड़ाया नहीं वह न ही उसने पीठ ही दिखाया | गोरे सिपाहियों से आकर सामने ही टकराया || कुंवर, अमर संग हो लिए जल्द धरती बिहार से | डर गयी हुकूमत रानी लक्ष्मीबाई की तलवार से || किस्से बलिदानियों के सभी के नाम लिख रहा हूँ | आज़ादी के दीवानों को.............. माँ भारती की खातिर जिन्होंने ओढ़ लिये कफ़न | ऐसे वीर सपूतों को अर्पित करते हैं श्रद्धा सुमन || लिख गये लहू से जो आज़ादी का प्रथम अध्याय | करते हैं नमन उनको आज करते हैं सब अर्पण || ऋणी रहेंगे हम ऊम्र भर   तात्या और नाना के | जिनकी वीरता का आज गुणगान लिख रहा हूँ || ...

मात्र भौगोलिक संरचना नहीं हैं नदियाँ

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  नदियाँ पृथ्वी पर जीवन के संचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, मनुष्य सहित अनेक जीव जन्तु को जल प्रदान करने वाली जल संसाधन की स्रोत नदियाँ अनेकों जीव-जन्तुओं का घर भी हैं | भारत के सभी प्राचीन शहर किसी न किसी नदी किनारे ही अपने स्वरुप को प्राप्त किये हैं अर्थात इन शहरों के निर्माण एवं विकास में कोई न कोई नदी सहगामी रही है | हमारे देश में कई ऐसी नदियाँ हैं जिनका पौराणिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व भी है | ये नदियाँ हमारी परम्पराओं की संवाहक हैं तो सभ्यता की साक्षी भी | हमारे अनेक रीति-रिवाजों में ये अहम् स्थान रखती हैं, तो वहीं धार्मिक अनुष्ठान भी इनके बिना अधूरे माने जाते हैं | ऐसे में हमारी उदासीनता एवं नदियों के प्रति हमारा आचरण, इस जीवनदायिनी जल-संसाधन के प्रति गंभीरता के अभाव को दर्शाता है | प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज नदियों को माता-तुल्य मानते आये हैं, ऐसे में हमें नदियों के प्रति अपने आचरण में बदलाव करने की आवश्यकता अत्यंत आवश्यक हो जाती है | हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का अंग रही नदियाँ आज हमारी उपभोक्तावादी एवं अदूरदर्शी सोच के कारण न सिर्फ प्रदूषण का दंश झेलने को मजबूर...

आखिर कब थमेगी ‘मुफ्त’ की सियासत ?

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  देश के दो प्रमुख राज्यों में चुनाव का माहौल है, और चुनावी दंगल में हिस्सा ले रहे राजनीतिक दल अधिक से अधिक संख्या में मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए दांव-पेंच अपना रहे हैं | पिछले कुछ चुनावों की भांति ही राजनीतिक दलों द्वारा इस बार भी ‘मुफ्त’ का दांव लगाकर सत्ता प्राप्त करने की जुगत देखी जा सकती है | चुनावी वादों के रूप में की गयी ‘मुफ्त’ घोषणाएं सरकारी नीतियों पर नकारात्मक असर डालने के साथ ही अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रही हैं | चुनाव पूर्व की गई ऐसी घोषणाएं मतदाताओं के मन में लालच पैदा करने के साथ स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी घातक है | चुनावी घोषणा पत्र अब ‘मुफ्त’ की सियासत का वह प्रमुख हथियार बन चुका है जो लोकतंत्र को छलनी कर रहा है, एवं चुनाव आयोग चाहकर भी इसे रोक नहीं पा रहा है | यहाँ तक कि देश के प्रधानमंत्री भी रेवड़ी संस्कृति के बढ़ते चलन पर चिंता जता चुके हैं और देश की उन्नति में इसे बाधक बता चुके हैं | ‘मुफ्त’ की सियासत कोई नई बात नहीं है, एवं पूर्व में भी राजनीतिक दलों द्वारा लोक-लुभावन वादे किये जाते रहे हैं | दिल्ली की राजनीति में पदार्पण के समय आम आदमी पार्टी न...

कितना सही है न्याय का बुलडोजर मॉडल ?

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  विगत कुछ वर्षों में आपराधिक कृत्य के जबाब में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बुलडोजर को एक हथियार के रूप में उपयोग किया है जिसे समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा समर्थन भी मिला है | अपराधियों द्वारा अपराध के रास्ते किये गये अवैध निर्माण के ऊपर जब बुलडोजर चलता है तो निश्चित रूप से यह उनके उस हौसले को तोड़ने का प्रयास होता है जो उन्हें अपराध जगत के गॉडफादर   अथवा राजनीतिक संरक्षक से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मिला होता है | पीड़ित परिवार इस प्रक्रिया में संतोष की अनुभूति करता है, एवं पुलिस प्रशासन में उसकी आस्था बनी रहती है | न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति एवं खर्चीला होने के कारण आज न्यायपालिका पर से लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है | हाल ही में देश की सर्वोच्च नागरिक राष्ट्रपति महोदया ने भी न्याय की इस धीमी प्रक्रिया पर असंतोष व्यक्त किया था, एवं राजस्थान के एक आपराधिक मामले में लगभग तीन दशक बाद निर्णय आने को दुखद बताया था | त्वरित न्याय के बुलडोजर मॉडल को उत्तर प्रदेश में कई अवसर पर देखा गया है जिसे अन्य प्रदेशों में भी कुछेक अवसर पर अमल में लाया गया है | अपने कार्यकाल में योग...

दुनिया में उनका न होना

दिल को मेरे आज भी,  इतना यकीं है | मेरी दुनिया में अब भी, रहते वो कहीं हैं || छूकर पलकों को, हो जाता है एहसास | चेहरा बस उनका, नज़र आता ही नहीं है || थाम लेते थे हाथ, जब लड़खड़ाते थे हम | निराशा के भाव को, कर जाते थे वो कम || बेइंतहा दर्द में कल, चेहरे पर सिकन न थी | दिल है उदास आज, मेरे आँखों में नमी है || ज्वार-भांटा समंदर सा, जब आये तूफ़ान | हो गये थे खड़े वो, बनकर राह में चट्टान || हजारों की भीड़ 'दीप', अकेला कर देती है | हुई जबसे दुनिया में मेरे,  उनकी कमी है ||

मूल्यपरक शिक्षा का आधारस्तम्भ है शिक्षक

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भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक रही है | शिक्षक अपने छात्र के लिए न सिर्फ पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाता आया है अपितु समय के साथ अच्छे शिक्षक की आवश्यकता और भी महत्वपूर्ण होती गयी है | अतीत में कई ऐसे शिक्षक हुए हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा से न सिर्फ विद्यार्थी के ज्ञान को समृद्ध किया अपितु उनके चरित्र को इस प्रकार से गढ़ने का कार्य किया जिससे भारतीय जीवन दर्शन को एक नई राह मिली | गुरु-शिष्य की प्राचीन परम्परा रही हो या फिर आधुनिक शिक्षा पद्धति, एक अच्छा शिक्षक अपने ज्ञान से शिष्य को सामाजिक जीवन के अनुकूल बनाता है जिससे वह अपने जीवन में आने वाली अनेकानेक चुनौतियों का सामना आसानी से कर सके | विद्यार्थी के चरित्र एवं व्यक्तित्व पर शिक्षक की अमिट छाप होती है जिससे उसके आनुभविक मूल्य निर्धारित होते हैं | सामाजिक जीवन में शिक्षा प्राण तत्व की भांति ही है, जो हमारे व्यावहारिक जीवन के संचालन में महती भूमिका निभाती है | शिक्षा ज्ञानार्जन के साथ ही जीवन पद्धति के निर्धारण में भी अहम भूमिका निभाती है, एवं यह किसी भी देश, काल एवं परिस्थिति में प्रासं...