सिसकता मंजर
ख़ुश्क समंदर ने सींचा है
शज़र कोई |
रेत पर बना आया है जैसे
घर कोई ||
प्यार की कश्ती कोई डूबी
है आज |
इकरार ए मुहब्बत से गया
मुकर कोई ||
गुस्ताख़ हवाओं का सितम
देखिये |
तिनका-२ सा गया है बिखर
कोई ||
सहमा सा गुमसुम छुप रहा
कोने में |
ख़ुद की परछाई से जैसे है
डर कोई ||
बेइंतहां दर्द है उसकी
सिसकियों में |
दर्द ए दरिया में आया हो भंवर कोई ||
अश्कों से नहाकर ‘दीप’
लौटा है वो |
सिसकता दिखा है फिर मंजर
कोई ||
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