जनसंख्या की रफ़्तार घटे तो बात बने

 


भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से 7 वां स्थान रखने वाला भारत आज दुनिया का सर्वाधिक जनसँख्या वाला देश बन चुका है | विश्व का हर छठां व्यक्ति भारतीय है जो हमें गर्वान्वित करने का अवसर देता है क्योंकि मानव संसाधन के रूप में हमारे पास एक ऐसी पूंजी है जो हमें विश्व के अन्य विकासशील देशों से अलग करती है विशेष रूप से सर्वाधिक युवा प्रतिनिधित्व एक सुखद एवं समृद्ध भविष्य का संकेत देता है | पड़ोसी देश चीन की तुलना में हमारे पास अधिक युवा शक्ति है जो विकसित भारत के रथ को गति प्रदान कर सकती है | हालाँकि वर्तमान समय में कौशल एवं तकनीकि दृष्टि से उपलब्ध भारतीय मानव संसाधन वैश्विक बाजार में उपलब्ध अवसरों को अपने पक्ष में कर पायेगा, संदेह पैदा करता है | इसके पीछे तेजी से बढ़ती जनसंख्या एवं उपलब्ध संसाधनों के बीच लगातार बढ़ रही असमानता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है | रोजगार सृजन के सभी प्रयास जनसंख्या बृद्धि के समक्ष अत्यंत कम पड़ रहे हैं जिससे उपलब्ध मानव संसाधन की सक्रीय सहभागिता सुनिश्चित करना कठिन होता जा रहा है | सरकार जब तक 1 करोड़ रोजगार सृजित करती है, जनसंख्या 10 करोड़ अथवा उससे अधिक बढ़ जाती है, और यह क्रम विगत कुछ दशकों से जारी है | यही नहीं, निजी क्षेत्रों में उपलब्ध अवसरों के लिए हम कुशल मानव संसाधन तैयार करने की दृष्टि से भी इसीलिए पीछे रह जा रहे हैं क्योंकि जब तक हम शिक्षण एवं प्रशिक्षण की योजना तैयार कर उसे लागू करने की स्थिति में होते हैं तब तक जनसंख्या में काफी बृद्धि हो चुकी होती है | ऐसे में जनसंख्या बृद्धि की रफ़्तार को कम करने की आवश्यकता न सिर्फ देश हित में है अपितु इससे देश में उपलब्ध संसाधनों का संयोजन एवं उपयोग भी तार्किक ढंग से किया जा सकेगा | किसी भी देश के विकास में उस देश की जनसंख्या की सक्रीय सहभागिता महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह न सिर्फ विकास की दिशा एवं दशा तय करती है अपितु उपलब्ध संसाधनों के राष्ट्रहित में उपयोग को भी रेखांकित करती है |

जनसंख्या वह महत्वपूर्ण कारक है जो मानव संसाधन के रूप में देश को बल प्रदान करता है परन्तु यह संसाधन जब देश के अन्य संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पैदा करने लगे तो सरकार एवं समाज को देशहित में कुछ ठोस कदम बढ़ाने की आवश्यकता जान पड़ती है | सरकार द्वारा लाया गया जनसंख्या नियंत्रण विधेयक हो अथवा सामाजिक संरचना की महत्वपूर्ण इकाईयां, जनसंख्या बृद्धि की परिधि निर्धारित करने में सहायक सिद्ध हो सकती हैं | सरकार भले ही जातीय एवं धार्मिक कारणों से जनसंख्या नियंत्रण के ठोस कदम से हिचक रही है परन्तु तेजी से बढ़ रही जनसंख्या एक ऐसे संकट की तरफ इशारा कर रही है जो सरकार को हिचकिचाहट छोड़ देश हित में बढ़ाये गये जनसंख्या नियंत्रण रुपी एक महत्वपूर्ण कदम की मांग करती है | पूर्व में इंदिरा गांधी सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण का जो तरीका अपनाया था, निश्चित रूप से उसमें कई खामियां थी | धार्मिक चश्में एवं सरकार के हठ ने नसबंदी जैसे कठोर कदम को असफल कर दिया एवं सरकार का तानाशाही फैसला देश का भला नहीं कर सका | वर्तमान सरकार आगामी समय में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाती है तो उसे थोपने की जगह कुछ ऐसे प्रावधान करने होंगे जिससे भारतीय जनमानस स्व-प्रेरणा से सरकार का साथ दे, साथ ही कुछ ऐसे प्रावधान भी लाने होंगे जिससे कुछ कानूनी बाध्यताएं पैदा की जा सकें जिससे समाज का कोई वर्ग मनमाने तरीके से जनसंख्या न बढ़ा सके | निश्चित रूप से सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ा कानून बनाना आसान नहीं है क्योंकि इसे धार्मिक एवं जातीय रंग देकर विपक्ष सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर सकता है | भारत सरकार इस मुद्दे की गम्भीरता को देखते हुए सर्वदलीय बैठक बुलाकर चर्चा कर कोई निर्णय ले सकती है जिससे जनसंख्या विस्फोट की सम्भवना को समय रहते ही समाप्त किया जा सके | तमाम राजनैतिक दलों को अपने राजनैतिक चश्में उतारकर देश हित में साथ आना भी महत्वपूर्ण होगा |

रोटी, कपड़ा, एवं मकान जैसी बुनियादी आवश्यकता हो, शिक्षा की गुणवत्ता हो, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता हो, या फिर बढ़ते अपराध को नियंत्रित करने के लिए पुलिस-प्रशासन की व्यवस्था; बढ़ती जनसंख्या ने सभी पर नकारात्मक असर डाला है | उपलब्ध सभी संसाधन जनसंख्या बृद्धि के कारण कम ही प्रतीत होते हैं, भले ही उनमें लगातार बृद्धि के प्रयास हो रहे हों | प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता पर भी जनसंख्या की रफ़्तार ने नकारात्मक असर डाला है | पेयजल की उपलब्धता से लेकर, स्वच्छ हवा जैसी अत्यंत आवश्यक चीज हमसे धीरे-धीरे दूर हो रही है तो वहीं आवास की बढ़ती आवश्यकता ने वन क्षेत्र को संकुचित करने का कार्य किया है, साथ ही लकड़ी की आवश्यकता ने पेड़ों की संख्या पर असर डाला है | 145 करोड़ लोगों को भोजन उपलब्ध कराना भी आसान नहीं है, भोजन की आवश्यकता सुनिश्चित करने के लिए अन्न-पैदावार बढ़ाने के जो तरीके अपनाये जा रहे हैं उससे स्वस्थ मानव संसाधन तैयार करने की प्रक्रिया बाधित दिखती है | पशुधन की घटती संख्या एवं जनसंख्या में बृद्धि से उपलब्धता तथा आपूर्ति के बीच का दायरा बढ़ने से एक तरफ दुग्ध उत्पादों की बढ़ती मांग तो दूसरी तरफ इस आवश्यकता में अवसर तलाश रहे मिलावटखोर दोनों ही सही नहीं है | जनसंख्या बढ़ने से बिजली की आवश्यकता भी बढ़ी है जिसकी वजह से नदियों एवं जल-संरचनाओं पर असर पड़ा है | बिजली की आवश्यकता की पूर्ति के लिए नदियों के मुक्त प्रवाह को रोकना अनेक जगहों पर पेयजल उपलब्धता की राह में रोड़े पैदा कर रहा है | निरंतर बढ़ती जनसंख्या के कारण घरेलू कचरों की मात्रा में भी बृद्धि देखी जा सकती है जिसका बोझ उठाने वाली नदियां अपने मूल स्वरुप को खोती जा रही हैं, और वह दिन दूर नहीं जब अमृत जल को धारण करने वाली नदियां औद्योगिक कचरों के विष के साथ ही मानव मल-मूत्र को ढोने वाली इकाईयां बन जायेंगी |

आगामी दो दशक भारत की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं | एक तरफ तो भारत की नज़र आर्थिक दृष्टि से विश्व में तीसरा स्थान प्राप्त करने पर है तो वहीं विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के सभी महत्वपूर्ण सूचक के आगे निकलना है | विकास जो कि एक बहु-आयामी प्रक्रिया है, तभी संभव है जब इस प्रक्रिया में समाज की समग्र इकाईयों की सहभागिता सुनिश्चित की जा सके | इसके लिए हमें उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का तार्किक प्रयोग करने के साथ ही इसपर निर्भर मानव संसाधन की संख्या निर्धारित करनी होगी क्योंकि उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन एवं मानव की संख्या के बीच बढ़ता असंतुलन देश की सेहत पर बुरा असर डाल सकता है | उपलब्ध मानव संसाधन के लिए बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति, वैश्विक बाजार के लिए उन्हें तैयार करने के लिए आवश्यक प्रक्रिया एवं संसाधन, एवं देश के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक सशक्तिकरण में समग्र जनसंख्या की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए जनसंख्या को नियंत्रित करना आज आवश्यक जान पड़ता है | बढ़ती जनसंख्या भारत के विकास गति को धीमा करे उससे पहले ही जनसंख्या बृद्धि की गति को धीमा करने का प्रयास करना सरकार एवं समाज दोनों की नैतिक जिम्मेदारी है |

 

 


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