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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या स्वछन्दता ?

                                        अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या स्वछन्दता ?                                                                         डॉ  सुनील कुमार मिश्र हमारा संविधान प्रत्येक भारतीय नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है साथ ही ८ युक्तियुक्त निर्बन्धन के माध्यम से इसकी स्वतंत्रता की परिधि भी सुनिश्चित करता है। १९ (१)(क) में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आम जन के साथ ही मीडियाकर्मियों को भी मिली हुई है और अमेरिका की तरह अलग से प्रेस को कोई अधिकार नहीं मिले हैं।  सामाजिक उत्तरदायित्व का सिद्धान्त भारतीय मीडिया को और भी जवाबदेह बनाता है परन्तु विगत कुछ वर्षों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं स्वच्छंदता के बीच की पतली रेखा धुंधली होती नजर आयी है। कुछ दिन पहले ए...

तेरे बिन

हर ख्वाब अधूरे लगते हैं , हर रात अधूरी लगती है। जिन साँसों में तुम बँसते हो, वो साँस अधूरी लगती है। हर दिन ग्रहण का होता है , हर रात अमावस होती है। तेरे यादों की गलियों में , मेरी आँखें जमकर रोती हैं। सावन पतझड़ लगता है , हर मौसम उखड़ा लगता है फूलों से ख़ुश्बू आती नहीं , हर उपवन उजड़ा लगता है 

ये वादा रहा

किया है जो वादा निभायेंगे दोस्तों, दरिया के पार एक दिन जायेंगे दोस्तों रोकेगा तूफां जो भी मेरी कश्ती को, हर उस तूफां से हम टकराएंगे दोस्तों  गिरना उठना तो जीवन का दस्तूर है, वक़्त कम है और जाना बहुत दूर है  तोड़ सकेगा न कोई मेरे हौसले को , एक दिन सभी को दिखलायेंगे दोस्तों  ये माना  मेरी मुश्किलें हैं बड़ी, हर मुश्किल से एक दिन पार पायेंगे दोस्तों  तुम करना उस दिन का इंतजार, खुशियों संग घर एक दिन आयेंगे दोस्तों 

काश ! बचपन फिर आ जाता

काश! बचपन फिर आ जाता, दुनिया का  दर्द मैं भूल पाता गिरता , उठता, न घबड़ाता , प्यार से हर कोइ गले लगाता माँ की लोरी नींद दिलाती, बहन प्यार से मुझे गोदी घुमाती बातों-2 में भाई से लड़कर, माँ के आँचल में मैं  छिप जाता हर सुबह पापा घुमने ले जाते, ढेरों मुझे वो तोहफ़े दिलाते दादी का दुलार और नानी का प्यार, मुझे फिर मिल पाता 

ऊँट किस करवट बैठेगा ?

देश में १६ वीं लोकसभा के लिए मतदान की तारीख जैसे -जैसे करीब आ रही है , हमारे माननीयों की धड़कनें बढ़ती जा रही है। पाँच साल तक जनता को बेवकूफ़ बनाने वाले नेता एक बार फिर उनका दरवाजा खटखटा रहे हैं। एक बार फिर वादों का पुलिन्दा लिए नेता जी जनता के सबसे बड़े हमदर्द कहलाने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं। जात - धर्म , क्षेत्रवाद जैसे कारक इस बार फिर से हावी हैं। आम आदमी पार्टी के उदय ने सारे सियासी समीकरण बिगाड़ दिए हैं। हालांकि अपने उदय के साथ ही इस पार्टी को अति महत्तवाकांक्षा का शिकार होना पड़ा है जिससे इसके मंसूबों पर पानी फिरता दिख रहा है। लोकतंत्र के सभी स्तम्भों को गाली देने वाली इस पार्टी को इतने कम दिनों में दीमक लग जायेंगे , इसकी कल्पना किसी ने नहीं कि थी। मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ प्रधानमंत्री बनने चले केजरीवाल साहब ने पड़ोसियों पर तो पैनी नज़र रखी परन्तु अपना घर ठीक रखना ही भूल गये। इस चुनाव में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी की स्थिति सबसे ज्यादा पतली है। दस साल तक सत्ता का सुख लेने वाले धुरंधर पहले से ही हार मान बैठे हैं। एक के बाद एक घोटाले कर पार्टी की किरकिरी कराने वाले नेता चुनाव लड़ने से...

कुर्सी का खेल

कुर्सी के खेल में बिछने लगी बिसात , हो रही है आज खूब वादों की बरसात कोई कहता सबको  नौकरी देंगे , कोई कहता धरती पर लाने को कायनात जात धर्म के नाम पर हो रहा ये खेल , झूठे वादों संग दिल्ली चली कुर्सी मेल झूठ पुलिन्दा संग दौड़े  केजरीवाल , पल में बदल मुखौटा बदलें अपनी चाल सोच रही जनता कैसे करें ऐतबार , मौसम सा  बदला जो अब तक सौ बार सत्ता में १० साल रही अपनी  काँग्रेस, खूब घोटाले हुए पिछड़ा अपना  देश पी एम की चुप्पी से जनता हुई नाराज़ , सोनिया सोचे राहुल को मिले ताज मोदी के नाम पर बी जे पी मांगे वोट , सभी सूरमा मैदान में चढ़ा रखा लंगोट

व्हीसल ब्लोवेर्स को मिली आवाज़ !

अर्से बाद सरकार ने  व्हीसल   ब्लोवेर्स  सम्बन्धी कानून को राज्यसभा से पास कराकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे लोगों को नई आवाज़ प्रदान किया है।  लोकसभा से हरी झंडी मिलने के बावजूद जिस तरह से हमारे माननीयों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी थी , ऐसे में इस कानून का अस्तित्व में आना काफी मुश्किल दिख रहा था।  दस वर्षों से सत्ता का सुख ले रही सरकार इस कानून  के प्रति शायद इस लिए भी उदासीन थी कि कहीं यह हथियार उसके लिए भस्मासुर का काम न कर दे और लोग इस हथियार को उसके खिलाफ ही इस्तेमाल न कर दें।  अच्छा होता कि सरकार पहले ही जाग जाती जिससे हम सत्येन्द्र दुबे एवं यशवंत सांवड़े जैसे  व्हीसल   ब्लोवेर्स को बचा पाते।  खैर देर से ही सही , सरकार अपनी कुम्भकर्णी नींद से जगी तो। पर देखना यह है कि यह कानून कितना कारगर होता है क्योंकि इस देश में नेताओं एवं माफियाओं के गठजोड़ से बने काले साम्राज्य एवं घोटालों कि जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि उन्हें जड़ से समाप्त करना मुंगेरी लाल के सपने सरीखा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले कर्ण को यह कवच...

कौन कहता है....

कौन कहता है कि हम काम नहीं करते,  काम करते हैं पर अभिमान नहीं करते संसद में विरोधियों से भिड़ जाते हैं हम,  लात-घूंसा एक दूजे पर बरसाते हैं हम कपड़े उतारकर असेंबली में नाचते हैं नंगे,  वोट के लिये हम सब कराते हैं दंगे कुर्सी के लिये आजीवन आराम नहीं करते, कौन कहता है............................ दो चार रुपये कि रिश्वत लेते नहीं, रिश्तेदारों के अलावा किसी को कुछ देते नहीं कुनबा बढ़ाते हैं सत्ता की खातिर, ये दर्द किसी आम-जन को हम देते नहीं  कोयले कि कालिख़ से नहाते हैं हम, पशुओं का चारा भी खा जाते हैं हम  घोटाले कभी हम शरे-आम नहीं करते, कौन कहता है................................ वादे करके पल में मुकर जाते हैं हम, घड़ियाली आँसू हमेशा बहाते हैं हम  धरना प्रदर्शन है अस्त्र हमारा, रोड जाम कर कहीं भी बैठ जाते हैं हम  ट्रान्सफर कराते हैं, सस्पेण्ड कराते हैं ,भैंस ख़ोजने में पलटन लगाते हैं सत्ता के ज़हर को हम निलाम नहीं करते, कौन कहता है.........................