हम उम्मीद करते हैं
उम्मीद इन्सान को जीना सिखाती है, परेशानियों से
लड़ना सिखाती है । जब भी हम असफलताओं से लड़कर कमजोर हो जाते हैं, उम्मीद सफल होने का
विश्वास दिलाती है । परन्तु जब भी हम कुछ ज्यादा की उम्मीद कर लेते हैं, यह उम्मीद
हमारे सपने तोड़ जाती है । हम भारतीयों के लिए उम्मीद सबसे बड़ी चीज है जिसका
दामन हम कब्र में पैर होने के बावजूद भी
नहीं छोड़ना चाहते हैं । हम जितनी उम्मीद खुद से करते हैं उससे कई गुना ज्यादा
उम्मीद दूसरों से करते हैं । अध्यापक उम्मीद करता है कि छात्र इस बार पेपर अच्छा
करें तो छात्र उम्मीद करता है कि अध्यापक उसे अच्छे नम्बरों से पास कर दे । किसान उम्मीद करता है कि बारिश अच्छी हो जिससे
साहूकार का कर्ज चुका सके तो साहूकार उम्मीद करता है बारिश न हो जिससे उसका फायदा
हो । रोगी उम्मीद करता है कि वह जल्द से जल्द ठीक हो
जाय तो डॉक्टर उम्मीद करता है कि उसके यहाँ मरीजों की संख्या बढ़ती रहे । जनता उम्मीद करती है कि आने वाली सरकार अच्छी हो
तो नेता उम्मीद करते हैं उनका चुनाव खर्च की भरपाई जल्द से जल्द हो जाय और वो अपनी
आने वाली पीढ़ियों के लिए भी वो पैसा कमाकर रख ले । यह उम्मीद ही वो बला है जो हमें न तो चैन से जीने
देती है और न ही चैन से मरने देती है । लोग हर
तरफ से मायूस हो जाए तब भी उम्मीद का साथ नहीं छोड़ते हैं ।
अगर उम्मीद की बात की जाय तो भगवान
के बाद हम भारतीय सबसे ज्यादा सरकार से उम्मीद करते हैं । करें भी क्यों नहीं,
सरकारी नीतियाँ ही तो हमारे जीवन की दिशा और दशा निर्धारित करती हैं । अब आरक्षण को ही ले लीजिए, पढाई में आरक्षण,
नौकरी में आरक्षण और तो और पदोन्नति में भी आरक्षण । सामान्य वर्ग का व्यक्ति उम्मीद करता है कि
आरक्षण जल्द से जल्द समाप्त हो तो वहीं अन्य वर्ग का व्यक्ति आरक्षण व्यवस्था को
और सुदृढ़ करने की उम्मीद करता है । सरकार
के बाद हम सबसे ज्यादा उम्मीद न्यायपालिका से करते हैं । क्या अमीर और क्या गरीब, दोनों के लिए यह अंतिम
शरणस्थली है । ये अलग बात है कि
यहाँ गरीब की उम्मीद होती है कि न्याय प्रक्रिया तेज हो तो अमीर उम्मीद करता है कि
न्यायपालिका आराम से काम करे और उसे तारीख पर तारीख तब तक मिलती रहे जब तक गरीब
वादी की सांस थम न जाय । वैसे न्यायपालिका
अधिकांश मौकों पर अमीरों और नेताओं की उम्मीद पर जरुर खरा उतरने का प्रयास करती है
। शारदा और रोज वैली जैसे घोटाले पर न्याय मिलने
में भले सालों लग जाएँ पर कर्नाटका में माननीयों की उम्मीदों का ध्यान रखना
सुप्रीम कोर्ट का परम दायित्व प्रतीत होता है ।
बीजेपी सरकार से उम्मीद थी कि गंगा बिल्कुल साफ़ हो जाएँगी, विदेशों
में जमा काला धन वापस आ जायेगा जिसके पन्द्रह लाख मिलेंगे तो बिट्टू और गोलू को
अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे । हम
उम्मीद कर बैठे थे कि रोजगार के नए अवसरों की बारिश हो जाएगी । पेट्रोल और डीजल सस्ते हो जायेंगे जिससे सफ़र आसान
हो जायेगा । हम यह भी उम्मीद कर
बैठे थे कि देश से भ्रष्टाचार और गरीबी एकदम से मिट जायेंगी । हमने उम्मीद कर ली थी की पाकिस्तान शराफत के रंग
में रंग चुका होगा और चीन हमारी तरफ आँख उठाकर नहीं देखेगा । हमारी उम्मीद यह भी थी कि सारे घोटालेबाज जेल के
अन्दर होंगे और घोटाले की सारी रकम देश के विकास में लगा दी जाएगी । उम्मीदों का कारवां यहीं नहीं थमा था, हमने
उम्मीद कर लिया था कि नई सरकार अपनी जादू की छड़ी से हमारी सारी मुसीबतें एकपल में
समाप्त कर देगी । हमारे कुछ मित्रों
ने तो यहाँ तक उम्मीद कर लिया था कि राजनीति से परिवारवाद, वोटबैंक से आरक्षण और
समाज से जातिवाद पल भर में समाप्त कर दिया जायेगा । कश्मीरी पण्डितों को घरवापसी की उम्मीद थी तो
हिन्दुओं को राममन्दिर की, युवाओं को रोजगार की तो महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान
की । नौकरीपेशा को सुरक्षित भविष्य की उम्मीद थी तो बुजुर्ग
को तनावमुक्त जीवन की । ये अलग बात है कि वर्तमान सरकार की सबसे बड़ी उम्मीद हमसे थी । बैंक
घोटाले की रकम वसूलनी हो; मिनिमम बैलेंस न रखने पर, सर्विस चार्ज के रूप में पैसे
वसूलो । सरकारी खजाने खाली हैं तो जनता के ज़ेब से उम्मीद । आस-पास गन्दगी है, आमजन
से उम्मीद । सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए पैसे चाहिए, पेट्रोल और डीजल से
उम्मीद ।
कांग्रेस सरकार ने हमे उम्मीद न छोड़ने का जो हौसला दिया उसे आज तक कोई
तोड़ नहीं पाया । एक के बाद एक सरकार
आती रही, हमारे अन्दर एक नई उम्मीद जगाती रही और फिर नई सरकार आने पर हमारी सभी
उम्मीदें पूरी होंगी इसका विश्वास दिलाती रही । इस उम्मीद में कि नई
सरकार आने पर वह हमारी उम्मीदों पर खरा उतरेगी, हम कांग्रेस की उम्मीदों पर सौ
फीसदी खरा उतरते रहे । कई दशक बीत जाने पर भी न हमारी उम्मीद ख़त्म हुई है और न ही
कांग्रेस पार्टी की उम्मीद । कांग्रेस पार्टी अपने युवराज के हाथों में सत्ता की
चाबी देने की उम्मीद पाले हुए है तो हम भारतीय एक बार फिर कुछ अच्छा होने के
उम्मीद में ।
पिछले सत्तर सालों से भारतीय हम उम्मीद ही तो करते आ रहे हैं । कोई उज्जवल भविष्य की
उम्मीद कर रहा तो कोई दो वक्त के रोटी की । कोई समाज और परिवार में बराबरी पाने की उम्मीद कर
रहा तो कोई इस उम्मीद में बैठा हुआ है कि आज नहीं तो कल उसके अच्छे दिन आयेंगे । आजादी के बाद हमने आजाद भारत की उम्मीद की । एक ऐसे भारत की उम्मीद
जहाँ प्रत्येक भारतीय को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का हक हो । रोटी, कपड़ा और मकान की
उम्मीद की । शिक्षा की उम्मीद की और फिर रोजगार की उम्मीद की । हम उम्मीद करते रहे
और निवर्तमान सत्ताधारी हमारी उम्मीदों का व्यापार । यह कभी न थमने वाला सिलसिला
बदस्तूर जारी है परन्तु आज भी हम उम्मीद करते हैं कि भारत एक बार फिर सोने की
चिड़िया बनेगा और हमारी उम्मीदों को पंख लगेंगे । हम उम्मीदों के सतरंगी घोड़े
दौड़ाते रहे और हमारे माननीय इस उम्मीद में थे की हमारी इन उम्मीदों की डोर उनके
हाथ में ही रहे । हम सिर्फ यह समझने
में विफल रहे कि नेताजी भी तो उम्मीद करके बैठे थे कि एक मौका मिलते ही वो पूरी
जिन्दगी के ऐशोआराम के संसाधन जुटा लेंगे । हमने सरकार से उम्मीद कर रखा था और सरकारी तंत्र
हमसे ।
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