जो फिट है वो हिट है



                                                      
कहते हैं कि जो फिट है वही हिट है । यह कहावत जिन्दगी के हर क्षेत्र में सौ फीसदी सच साबित होती है । बात चाहे परिवार की हो या समाज की या फिर बात कल या आज की हो, फिट व्यक्ति ही हर जगह हिट रहता है । आखिर डार्विन सर ने भी तो कहा था कि इस धरती पर वही व्यक्ति टिका रह सकता है जो इसके वातावरण के लिए फिट हो । समय बदला परन्तु डार्विन सर का यह सिद्धान्त नहीं बदला । सालों बीत जाने के बाद भी यह सिद्धान्त बहुतों के लिए आदर्श सिद्धान्त है । और बात अगर राजनीतिक पिच की हो तो फिटनेस की महत्ता और भी बढ़ जाती है । हाँ यहाँ फिटनेस की परिभाषा थोड़ी अलग है । यहाँ शारीरिक और मानसिक फिटनेस के बजाय राजनीतिक फिटनेस की जरुरत होती है । अब आप कहेंगे कि राजनीतिक फिटनेस किस बला का नाम है ? कुछ मित्रों को तो मेरे ज्ञान पर भी संदेह हो रहा होगा । अरे भाई ! लोकतंत्र है, आप मेरे राजनैतिक ज्ञान पर सन्देह करने के लिए स्वतन्त्र हैं ।
राजनैतिक फिटनेस का सर्टिफिकेट पाना बहुत आसान नहीं है । कुछ लोगों को यह आजीवन हासिल होता तो वहीं कुछ लोगों को यह विरासत में मिलता है । कुछ को यह सबकुछ खोकर मिलता है तो वहीं कुछ परिस्थितिजन्य  राजनैतिक समीकरण के दौरान इसे हासिल करने में सफल हो जाते हैं । अब अपने राहुल सर, उद्धव सर, अखिलेश सर और तेजस्वी सर को ही ले लीजिये, इन्हें राजनैतिक फिटनेस का सर्टिफिकेट विरासत में मिली हुई है । इनके पास यह ताउम्र रहेगा और तो और इनकी अगली पीढ़ी को भी यह सर्टिफिकेट विरासत में ही मिल जायेगा । बहन जी ने इस सर्टिफिकेट को पाने के लिए बहुत ही मेहनत किया तब जाकर इनकी प्रतिभा को कांशीराम जी ने पहचाना । मोदी जी को तो इस सर्टिफिकेट के लिए चाय तक बेचनी पड़ी । हाँ पासवान साहब जैसे कुछ लोगों को जरुर परिस्थितिजन्य फिटनेस हासिल हुआ है जिसे यह किसी भी परिस्थिति में सत्ताधारी दल में शामिल करने के लिए इस्तेमाल में लाते हैं । अपने बेनी भाई और अजीत साहब भी पासवान जी का अनुसरण करते हैं और अपने आपको हर एक राजनैतिक मौसम में फिट रखते हैं । कुछ ऐसे भी लोग हैं जो सिर्फ अनुकूल मौसम में ही अपने आपको फिट रखने की कोशिश रखते हैं और मौसम बदलते ही अपने वास्तविक रूप में आ जाते हैं ।
राजनैतिक फिटनेस के लिए उम्र का बन्धन नहीं होता है । उम्र बढ़ने के साथ ही आदमी का राजनैतिक कद भी बड़ा होने लगता है । दूर का बहुत ही स्पष्ट दिखलाई पड़ने लगता है । दिमाग बहुत तेज चलने लगता है और याददाश्त काफी बढ़ जाती है । भले ही सरकारी क्षेत्र की नौकरी में ६५ साल की उम्र के बाद लोग रिटायर हो जाते हैं पर राजनैतिक क्षेत्र में इस उम्र में लोग अपनी चपलता से युवाओं को भी पीछे छोड़ देते हैं । जिस व्यक्ति को सरकार नौकरी से रिटायर्मेंट के लिए बाध्य करती है क्योंकि वह ६५ की उम्र के बाद शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर मान लिया जाता है वही व्यक्ति राजनीतिक गलियारे में इस उम्र में भी शारीरिक और मानसिक रूप से सबसे ज्यादा फिट होता है । अगर मेरे बात पर सन्देह हो रहा हो तो आप देश के मंत्रिपद पर आसीन कुछ मंत्री महोदयों के बारे में पता कर लीजिये, वो नौकरी से जिस फिटनेस की वजह से रिटायर होने को बाध्य हुए वह वजह राजनैतिक फिटनेस के आड़े नहीं आयी । एक तरफ तो केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों को ६५ के उम्र के बाद शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर मानकर रिटायर कर देती है वहीं दूसरी तरफ राजनैतिक फिटनेस वाले उसी व्यक्ति को सरकार मंत्री बनाने से नहीं हिचकती ।
फिटनेस के मामले में राज्य सरकारें केंद्र सरकार से ज्यादा सख्त हैं और वो इस मामले में कोताही नहीं बरततीं हैं । यही कारण है कि राज्य सरकारें ६० या ६२ की उम्र में ही अपने कर्मचारियों को अनफिट मानकर रिटायर कर देती है । हमें तो केंद्र सरकार का एहसान मानना चाहिए । आखिर केंद्र सरकार राज्य सरकारों से रिटायर हुए लोगों को ३ से ५ साल तक मोहल्लत देने को तैयार है । ये अलग बात है कि कुछ मित्रों को सरकार के इस फैसले से झटका लगा होगा जिसमें कहा गया है कि सरकार आलसी कर्मचारियों को जल्द रिटायर्मेंट लेने को बाध्य कर सकती है । अब ये तो सही बात ही है जो सुस्त कर्मचारी है और फिट नहीं है उसे सरकार बैठाकर झेल तो नहीं सकती ? हाँ ! सुस्त और आलसी माननीयों की बात अलग है । उन्हें एक बार मंत्री बना दिया तो फिर वो कुछ भी न करें फिर भी जनता को उन्हें झेलना तो पड़ेगा ही । अगर सरकार के लिए मंत्री जी फिट हैं तो जनता के लिए वो फिट हैं या नहीं, सरकार को इससे कोई मतलब नहीं । अब आप गुस्सा न ही कीजिए तो बेहतर है क्योंकि राजनैतिक फिटनेस के लिए मंत्री जी ने जो मेहनत किया है उतनी मेहनत आप कभी नहीं कर सकते । और तो और आप अपने जीवन में लगभग ३० साल नौकरी करते हैं जबकि मंत्री महोदय को यह सौभाग्य शायद ही इतने सालों तक मिले । आप उनके दर्द को महसुस कीजिए जो उन्हें राजनैतिक फिटनेस हासिल करने के लिए सहना पड़ा है । सरकार को तो एक ऐसा नियम बना देना चाहिए कि एक बार जो मंत्री बन गया उसे ताउम्र मंत्री का दर्जा प्राप्त होता रहे क्योंकि सिर्फ पेंशन दे देना, आजीवन मुफ़्त यात्रा सेवा देना, उन्हें घर उपलब्ध कराना और सिर्फ कुछ कर्मचारियों को उनकी सेवा में लगा देना, बहुत बड़ी नाइंसाफ़ी है । भले ही वो एक दिन के लिए मंत्री या मुख्यमंत्री बने हों, माननीय आम आदमी तो हैं नहीं ।
वैसे तो सरकार फिटनेस को लेकर बहुत ही सख्त है वरना आडवाणी जी मार्गदर्शक मण्डल में नहीं बैठे होते । अब आप ही बताइये, आडवाणी जी राजनैतिक रूप से फिट हैं क्या ? बेचारे के पास राजनैतिक फिटनेस होती तो प्रधानमन्त्री ना सही राष्ट्रपति तो जरुर ही बन जाते । आखिर उनकी उम्र में देश ने कई महामहिम देखे हैं । खैर ! अब इस उम्र में वो रथ खींचकर तो अपनी फिटनेस साबित नहीं कर सकते और न ही वो अपनी पार्टी को वोट ही दिला सकते । इसीलिए उनसे राजनैतिक फिटनेस का प्रमाणपत्र छिन लिया गया है क्योंकि यहाँ जो फिट है वही हिट है । 
  


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