तकनीकी ने बदला शिक्षक की भूमिका
वर्तमान समय में
तकनीकी ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है, शिक्षा का क्षेत्र भी
इससे अछूता नहीं है | तकनीकी विस्तार ने शिक्षण पद्धति से लेकर, कक्षा के वातावरण
को प्रभावित करने के साथ ही शिक्षक की भूमिका को भी बदलने का कार्य किया है | आधुनिक
ज्ञान के अथाह समुद्र के रूप में ‘गूगल’ की चकाचौंध करने वाली दुनिया हो या फिर
‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ का मायाजाल, शिक्षक नामक संस्था को लगातार प्रभावित कर
रहे हैं | इंटरनेट और स्मार्टफोन की उपलब्धता ने विद्यार्थियों को पलक झपकते ही इच्छित
‘अंतर्वस्तु’ तक पहुँचने का विकल्प देकर शिक्षण के पुरातन मानकों को बदलने का
कार्य किया है | आधुनिक तकनीकी ने एक तरफ जहाँ ऑनलाइन शिक्षा का मार्ग प्रशस्त
किया है, वहीं देश-विदेश के किसी कोने में रहकर किसी संस्थान से शिक्षा ग्रहण करने
का अनगिनत विकल्प भी उपलब्ध कराया है | समय सापेक्ष हुए तकनीकी बदलाव ने शैक्षणिक संस्थानों
के लिए आधुनिक परिवेश को गढ़ने का कार्य किया है जिसमें शिक्षक की भूमिका बिल्कुल
अलग नज़र आती है | वैश्विक पटल पर तेजी से अपनी पहचान बना रहा भारत आज आर्थिक
क्षेत्र में निरन्तर नई ऊँचाई को छू रहा है परन्तु आधुनिकता की चकाचौंध नई पीढ़ी को
सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों से दूर कर रही है | ऐसे में शिष्य के बौद्धिक विकास के
साथ ही उसके चरित्र निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य भी शिक्षक को ही करना होगा
क्योंकि तकनीकी संसार मनुष्य को मशीनी ज्ञान से तो समृद्ध कर सकता है परन्तु शिष्य
को समाज के अनुरूप गढ़ने का कार्य केवल शिक्षक ही कर सकता है | वर्तमान तकनीकी ने
शिक्षक एवं शिष्य को मानसिक स्तर पर तो जोड़ा है परन्तु इसमें शिक्षक का कर्तव्यबोध
एवं शिष्य का भावबोध दोनों ही अलग रूप में नज़र आते हैं | ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा
नीति के जरिये शिक्षक एवं शिष्य दोनों को ही एक दिशा में आगे ले जाने का प्रयास
किया गया है जिससे शिक्षक शिष्य को वैश्विक आवश्यकताओं के योग्य बनाने के साथ ही
उसे भारतीय समाज के योग्य भी बना सके | नयी शिक्षा नीति में भी मूल्यपरक शिक्षा पर
बल दिया गया है जिसमें शिक्षक का कार्य विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास को मूर्तरूप
देना है | इसमें एक तरफ तो तकनीकी शिक्षा की अनिवार्यता रेखांकित की गई है वहीं
दूसरी तरफ नैतिक मूल्यों से जुड़ी शिक्षा देने की बात भी की गई है |
मानवीय मूल्य,
राष्ट्रबोध, एवं पर्यावरण से जुड़े पाठ्यक्रमों का उद्देश्य तभी सार्थक होगा जब एक
आदर्श शिक्षक विद्यार्थी के मस्तिष्क पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ सकेगा | प्राचीन
काल से लेकर अबतक शिक्षण व्यवस्था में अनेकानेक परिवर्तन देखने को मिले हैं,
परन्तु बदलते परिवेश में भी गुरु कभी भी अप्रासंगिक नहीं हुआ है | आज के तकनीकी
युग में शिक्षक का कार्य एवं दायित्व दोनों ही प्रभावित हुआ है, परन्तु इससे
शिक्षक की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है | शिक्षण-प्रशिक्षण के बदलते स्वरुप ने
शिक्षक के सामने चुनौती अवश्य प्रस्तुत किया है, परन्तु आदर्श शिक्षक तकनीकी बदलाव
को शिक्षण-पद्धति के साथ जोड़कर निरन्तर क्रियाशील दिखता है | एक आदर्श समाज की कल्पना तभी की जा सकती है जब भावी पीढ़ी
को विषय के सैद्धांतिक ज्ञान के साथ ही व्यावहारिक पक्ष को समझाया जाये, साथ ही
उन्हें राष्ट्रबोध का बीज अंकुरित किया जाये | बिना मूल्यों का ज्ञान मनुष्य को
मशीन बनाकर उससे कार्य संपादित तो करा लेगा परन्तु वह मनुष्य को एक ऐसी दुनिया का
सृजन करने को प्रेरित करेगा जो भावबोध से मुक्त होगा, निश्चित तौर पर इससे शिक्षा
के उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती |
सदियों से भारतीय
शिक्षण प्रणाली के केंद्र में शिष्य का व्यक्तित्व विकास रहा है न कि उसे बाज़ार
आधारित समाज में धनोपार्जन करने वाले किसी तंत्र के रूप में विकसित करना | गुरुकुल
जैसी आदर्श शिक्षण व्यवस्था की स्वीकार्यता एवं गुरु की महत्ता शिष्य के चरित्र
निर्माण के साथ ही उसे आदर्श मनुष्य के रूप में गढ़ने का प्रयास करती है | भारतीय
शिक्षा पद्धति साक्षरता के बजाय शिक्षित करने पर बल देती है जिसमें शिक्षक की
भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है | महान शिक्षाविद डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी
का मत था कि ‘शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि
शिष्य को चुनौतियों के लिए तैयार करे’ | निश्चित तौर पर शिक्षक ही, शिष्य के
मस्तिष्क में राष्ट्रबोध एवं कर्तव्यबोध का भाव अंकुरित कर सकता है, न कि ‘डाटा’
को सबकुछ मानने वाली तकनीकी | गुरुकुल परम्परा शिष्य के सर्वांगीण विकास पर
केन्द्रित थी जिसमें न सिर्फ शिष्य को शैक्षणिक ज्ञान प्राप्त होता था अपितु उसे
जीवनमार्ग में आने वाली प्रत्येक चुनौतियों से लड़ने योग्य भी बनाने का प्रयास होता
था जबकि मैकाले पद्धति ने शिष्य के शैक्षणिक विकास पर तो ध्यान दिया परन्तु शिष्य
में मानवीय मूल्य एवं संवेदना का बीजारोपण करने में असफल रही | इस प्रकार से
भारतीय गुरु-शिष्य परम्परा में गुरु के कर्तव्यबोध एवं शिष्य के भावबोध दोनों में
ही गिरावट आती रही |
शिक्षा अनवरत
चलने वाली प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया में मनुष्य जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है
| यह प्रक्रिया विद्यार्थी के साथ ही शिक्षक द्वारा निरन्तर ज्ञानार्जन को
रेखांकित करती है जिसे आज के तकनीकी दुनिया ने अत्यन्त आसान बना दिया है | आज शिक्षक के लिए तकनीकी ज्ञान आवश्यक है, क्योंकि वह
तकनीकी के माध्यम से अपने कार्य को आसान बनाने के साथ ही प्रभावी ढंग से अपने
ज्ञानपुन्ज को विद्यार्थियों तक पहुंचा सकता है | निश्चित तौर पर आज तकनीकी कौशल
के साथ अच्छी अंतर्वस्तु वाला शिक्षक, मात्र अच्छी अंतर्वस्तु वाले शिक्षक से
प्रभावी है | समय सापेक्ष हो रहे तकनीकी बदलाव के साथ ही शिक्षक की कार्य-पद्धति
भी बदली है | आज शिक्षक से अपेक्षा की जाती है कि वह विद्यार्थी के लिए न सिर्फ हमेशा
उपलब्ध रहे अपितु उसके प्रश्न का उत्तर भी दे | निश्चित तौर पर तकनीकी ने यह सम्भव
कर दिया है, आज शिक्षक एवं शिष्य दोनों को कक्षा में उपस्थित रहने की बाध्यता नहीं
है | घर बैठे-बैठे दोनों ही अपने कार्य को संपादित कर सकते हैं | ‘गूगल मीट’ ‘एम
एस टीम’ एवं ‘ज़ूम’ जैसे ‘वर्चुअल प्लेटफार्म’ ने परम्परागत कक्षाओं का स्वरुप बदला
है | ‘स्मार्ट क्लासरूम’ की अवधारणा ने भी शिक्षक का कार्य आसान बनाया है, एवं
शिक्षक इसका सार्थक प्रयोग कर रहे हैं | दृश्य एवं श्रव्य माध्यमों का उपयोग विषय
की ग्राह्यता को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है | प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा
में तकनीकी का प्रयोग, शिक्षण की प्रक्रिया को आसान बनाने के साथ ही प्रभावी बना
रही है | तमाम बदलाव के बावजूद शिक्षक की प्रासंगिकता है, और भविष्य में भी बनी
रहेगी | तकनीकी, शिक्षक की प्रासंगिकता को पूरी तरह से समाप्त कर देगी, ऐसी
सम्भावना न के बराबर है | हाँ, इतना अवश्य है कि तकनीकी का ज्ञान रखने वाला
शिक्षक, तकनीकी का ज्ञान न रखने वाले शिक्षक की प्रासंगिकता को कम कर देगा |
Bahut sahi
जवाब देंहटाएंSuperb
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