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बेटियां क्यों सहमी हैं?

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जहां की बात कर आये घर की बात करेगा कौन | चीरहरण के समय युधिष्ठिर कब तक रहेगा मौन || द्रोपदी की चीखें सुन क्या कोई कन्हैया आयेगा  | मानव रूपी गिद्धों से एक नारी को आज बचाएगा || बेटी पैदा होने पर पिता का भय कब होगा गौण  | जहां की बात कर आये...  भीष्म सरीखे मुखिया की चुप्पी जब तक रहेगी | औरत अपनी पीड़ा किससे ही बिना डरे कहेगी || अबला समझकर कब तक जननी नोंची जायेगी | कोई निर्भया कब तक ही अपनी जान गवायेगी || हैवानों की हैवानियत को आज फिर रोकेगा कौन | जहां की बात कर आये... इंसानों के भेष में जानवर चहुँओर ही भरे पड़े हैं | लगा मुखौटा शराफत का सज्जन बनकर खड़े हैं || घर में भी महफूज नहीं हैं आज अगर बहू- बेटियां | गाँव मुहल्ले के भाई भी कसते हैं आज फब्तियाँ || रिश्तों के बुनियाद पर आज यकीं फिर करेगा कौन | जहां की बात कर आये...  बेटियां क्यों सहमी बैठें जिनसे घर में खुशियाँ हों | माँ के ममता की परछाईं और पापा की परियां हों || बन अर्धांगिनी जो सृजन सा हम पर उपकार करे | माँ बन इस धरा पर जीवन का 'दीप' संचार करे || बदलें अपनी सोच को आज तोड़ें हम भीष्म सा मौन | जहां की बात कर आये......

जीवन-चक्र को प्रभावित करता प्रदूषण

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पर्यावरण हमारे जीवन-चक्र के सुचारू रूप से संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है परन्तु जब वातावरण में दूषित पदार्थ मिल जाते हैं तो प्रदूषण नामक एक ऐसी समस्या का जन्म होता है जिससे समस्त जीवन-चक्र पर नकारात्मक असर पड़ता है | मानव की आधुनिकतावादी सोच ने पर्यावरण को सर्वाधिक रूप से प्रभावित किया है | प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन भले ही आर्थिक उन्नति को गति प्रदान कर रहा है परन्तु यह हमारे पर्यावरण को भी क्षति पहुंचा रहा है जिसकी भरपाई करना अत्यंत ही मुश्किल है | टिहरी में जबसे गंगा के प्रवाह को बांधा गया है, यह नदी अपने मूल स्वरुप को प्राप्त नहीं कर सकी है जिससे गंगा की गोद में पलने वाले जीव-जंतु हों या फिर गंगा की जलधारा से अपनी प्यास बुझाने वाले लोग, निरंतर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं | औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाला कचरा हो या फिर घरेलू अपशिष्ट मिला हुआ शहरी नालों का गंदा पानी, गंगा जल की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं जिससे हरिद्वार से आगे बढ़ते ही गंगा जल में हानिकारक बैक्टीरिया जीवनदायिनी गंगा को प्रदूषित कर रहा है | सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के माध्यम से गंगा ...

सशक्त राष्ट्र का आधार है नागरिकों में कर्तव्य बोध

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  किसी भी राष्ट्र के निर्माण में उस राष्ट्र के नागरिकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है | राष्ट्र नामक संस्था को संचालित करने के लिए नागरिकों में कर्तव्य बोध का भाव अति आवश्यक है क्योंकि यही वह कारक है जो नागरिकों को राष्ट्र के विकास प्रक्रिया से जोड़ता है | नागरिकों में कर्तव्य बोध का अभाव एक उदासीन समाज का निर्माण करता है जिसमें मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जाता है एवं एक राष्ट्र की मान्यता खंडित होती है | सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने आस-पास की अन्य सामाजिक इकाईयों के प्रति संवेदनशील हो, एवं यह तभी संभव है जबकि उसे अपने कर्तव्य का बोध होगा | प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में सेवा-बोध, कर्तव्य-बोध, एवं राष्ट्र-बोध के भाव को विशेष महत्त्व दिया जाता रहा है जिससे इस समाज में रहने वाला प्रत्येक मनुष्य न सिर्फ मानव समाज के प्रति संवेदनशील दिखलाई देता है अपितु वह अन्य जीव-जन्तुओं एवं पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशील होता है | मनुष्य के अन्दर संवेदनशीलता का गुण ही नागरिक कर्तव्य का आधार है जिसके बिना वह न तो किसी अन्य का दुःख-दर्द समझ सकता है और न ही ए...

राष्ट्र जागरण एवं नव-निर्माण की आधार है शिक्षा

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  किसी भी समाज की दशा एवं दिशा, वहाँ की शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है | यह न सिर्फ वर्तमान समाज के स्वरुप का निर्धारण करती है अपितु समाज अथवा राष्ट्र के भविष्य को भी रेखांकित करने का कार्य करती है | प्राचीन भारत की समृद्धि में शिक्षा के महत्त्व के अनेकों उदाहरण मिलते हैं जिनमें गुरुकुल शिक्षा पद्धति के द्वारा प्रदत्त शिक्षा एवं जीवनोपयोगी कौशल की महत्ता देखने को मिलती है | प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में समग्र व्यक्तित्व के विकास पर बल दिया जाता था जिससे व्यक्ति के बौद्धिक विकास के साथ ही उसके कौशल में भी बृद्धि हो सके, एवं वह जीवन पथ पर आने वाली अनेकानेक चुनौतियों का सामना कर सके | गुरुकुलों में शिक्षा के साथ ही ज्ञान रुपी आचरण की शिक्षा भी दी जाती थी जिनमें नैतिक मूल्यों का समावेश होता था | यही कारण था कि गुरुकुल भारतीय शिक्षा व्यवस्था के ऐसे केंद्र के रूप में स्थापित थे जिन्हें व्यक्तित्व विकास का केंद्र माना जाता था | वास्तव में ज्ञानार्जन की प्रक्रिया सतत चलती रहती है, परन्तु यह प्रक्रिया बचपन में दी गयी शिक्षा के माध्यम से मनुष्य के अन्दर विकसित दृष्टिकोण पर निर्भर करती है ...

मैं उसे भुलाऊं कैसे?

 हँसाने का वादा किया था जिससे आज रुलाऊँ कैसे |  चल रही सांस जिसके एहसास से आज भुलाऊँ कैसे || ये माना बहुत दूर चला गया है मेरे दिल में रहने वाला | आती है बहुत याद उसकी पास अपने मैं बुलाऊँ कैसे || कुछ सौगात उसके मैंने रखे हैं अब तलक संभालकर | आती है खुश्बू जिससे उसकी उन्हें आज जलाऊँ कैसे || वक्त बेवक्त जिसे याद करके नम हो जाती हैं ये आँखें | ख्वाबों में उसके दीदार से नज़रें अपनी चुराउँ कैसे || ख़ुश है अपनी दुनिया में वो मिल जाती है कभी खबर | लौटकर उसकी दुनिया में आज मैं आग लगाऊं कैसे || खुश्क समंदर किनारे बना लिया है 'दीप' आशियाँ हमने | हरी भरी दुनिया में उसके मैं आज फिर से जाऊं कैसे ||

आज़ादी के दीवानें

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  आज़ादी के दीवानों को सलाम लिख रहा हूँ | उनकी वीरता पर आज कलाम लिख रहा हूँ || ब्रिटिश हुकूमत की जिन्होंने दीवारें हिला दी | ज़ालिम अंग्रेजों को हिन्द की ताकत दिखा दी || मंगल पाण्डेय ने किया आजादी का शंखनाद | अठ्ठारह सौ संतावन को दुनिया करती है याद || जन-जन को जगा फिर सो गया जो बहादुर | आज उसकी तरफ से मैं पैगाम लिख रहा हूँ || आज़ादी के दीवानों को............ बैरकपुर की धरती उसे आज भी करती है याद | बलिया से आया था मंगल बनकर एक सैलाब || घबड़ाया नहीं वह न ही उसने पीठ ही दिखाया | गोरे सिपाहियों से आकर सामने ही टकराया || कुंवर, अमर संग हो लिए जल्द धरती बिहार से | डर गयी हुकूमत रानी लक्ष्मीबाई की तलवार से || किस्से बलिदानियों के सभी के नाम लिख रहा हूँ | आज़ादी के दीवानों को.............. माँ भारती की खातिर जिन्होंने ओढ़ लिये कफ़न | ऐसे वीर सपूतों को अर्पित करते हैं श्रद्धा सुमन || लिख गये लहू से जो आज़ादी का प्रथम अध्याय | करते हैं नमन उनको आज करते हैं सब अर्पण || ऋणी रहेंगे हम ऊम्र भर   तात्या और नाना के | जिनकी वीरता का आज गुणगान लिख रहा हूँ || ...

मात्र भौगोलिक संरचना नहीं हैं नदियाँ

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  नदियाँ पृथ्वी पर जीवन के संचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, मनुष्य सहित अनेक जीव जन्तु को जल प्रदान करने वाली जल संसाधन की स्रोत नदियाँ अनेकों जीव-जन्तुओं का घर भी हैं | भारत के सभी प्राचीन शहर किसी न किसी नदी किनारे ही अपने स्वरुप को प्राप्त किये हैं अर्थात इन शहरों के निर्माण एवं विकास में कोई न कोई नदी सहगामी रही है | हमारे देश में कई ऐसी नदियाँ हैं जिनका पौराणिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व भी है | ये नदियाँ हमारी परम्पराओं की संवाहक हैं तो सभ्यता की साक्षी भी | हमारे अनेक रीति-रिवाजों में ये अहम् स्थान रखती हैं, तो वहीं धार्मिक अनुष्ठान भी इनके बिना अधूरे माने जाते हैं | ऐसे में हमारी उदासीनता एवं नदियों के प्रति हमारा आचरण, इस जीवनदायिनी जल-संसाधन के प्रति गंभीरता के अभाव को दर्शाता है | प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज नदियों को माता-तुल्य मानते आये हैं, ऐसे में हमें नदियों के प्रति अपने आचरण में बदलाव करने की आवश्यकता अत्यंत आवश्यक हो जाती है | हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का अंग रही नदियाँ आज हमारी उपभोक्तावादी एवं अदूरदर्शी सोच के कारण न सिर्फ प्रदूषण का दंश झेलने को मजबूर...

आखिर कब थमेगी ‘मुफ्त’ की सियासत ?

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  देश के दो प्रमुख राज्यों में चुनाव का माहौल है, और चुनावी दंगल में हिस्सा ले रहे राजनीतिक दल अधिक से अधिक संख्या में मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए दांव-पेंच अपना रहे हैं | पिछले कुछ चुनावों की भांति ही राजनीतिक दलों द्वारा इस बार भी ‘मुफ्त’ का दांव लगाकर सत्ता प्राप्त करने की जुगत देखी जा सकती है | चुनावी वादों के रूप में की गयी ‘मुफ्त’ घोषणाएं सरकारी नीतियों पर नकारात्मक असर डालने के साथ ही अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रही हैं | चुनाव पूर्व की गई ऐसी घोषणाएं मतदाताओं के मन में लालच पैदा करने के साथ स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी घातक है | चुनावी घोषणा पत्र अब ‘मुफ्त’ की सियासत का वह प्रमुख हथियार बन चुका है जो लोकतंत्र को छलनी कर रहा है, एवं चुनाव आयोग चाहकर भी इसे रोक नहीं पा रहा है | यहाँ तक कि देश के प्रधानमंत्री भी रेवड़ी संस्कृति के बढ़ते चलन पर चिंता जता चुके हैं और देश की उन्नति में इसे बाधक बता चुके हैं | ‘मुफ्त’ की सियासत कोई नई बात नहीं है, एवं पूर्व में भी राजनीतिक दलों द्वारा लोक-लुभावन वादे किये जाते रहे हैं | दिल्ली की राजनीति में पदार्पण के समय आम आदमी पार्टी न...

कितना सही है न्याय का बुलडोजर मॉडल ?

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  विगत कुछ वर्षों में आपराधिक कृत्य के जबाब में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बुलडोजर को एक हथियार के रूप में उपयोग किया है जिसे समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा समर्थन भी मिला है | अपराधियों द्वारा अपराध के रास्ते किये गये अवैध निर्माण के ऊपर जब बुलडोजर चलता है तो निश्चित रूप से यह उनके उस हौसले को तोड़ने का प्रयास होता है जो उन्हें अपराध जगत के गॉडफादर   अथवा राजनीतिक संरक्षक से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मिला होता है | पीड़ित परिवार इस प्रक्रिया में संतोष की अनुभूति करता है, एवं पुलिस प्रशासन में उसकी आस्था बनी रहती है | न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति एवं खर्चीला होने के कारण आज न्यायपालिका पर से लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है | हाल ही में देश की सर्वोच्च नागरिक राष्ट्रपति महोदया ने भी न्याय की इस धीमी प्रक्रिया पर असंतोष व्यक्त किया था, एवं राजस्थान के एक आपराधिक मामले में लगभग तीन दशक बाद निर्णय आने को दुखद बताया था | त्वरित न्याय के बुलडोजर मॉडल को उत्तर प्रदेश में कई अवसर पर देखा गया है जिसे अन्य प्रदेशों में भी कुछेक अवसर पर अमल में लाया गया है | अपने कार्यकाल में योग...

दुनिया में उनका न होना

दिल को मेरे आज भी,  इतना यकीं है | मेरी दुनिया में अब भी, रहते वो कहीं हैं || छूकर पलकों को, हो जाता है एहसास | चेहरा बस उनका, नज़र आता ही नहीं है || थाम लेते थे हाथ, जब लड़खड़ाते थे हम | निराशा के भाव को, कर जाते थे वो कम || बेइंतहा दर्द में कल, चेहरे पर सिकन न थी | दिल है उदास आज, मेरे आँखों में नमी है || ज्वार-भांटा समंदर सा, जब आये तूफ़ान | हो गये थे खड़े वो, बनकर राह में चट्टान || हजारों की भीड़ 'दीप', अकेला कर देती है | हुई जबसे दुनिया में मेरे,  उनकी कमी है ||

मूल्यपरक शिक्षा का आधारस्तम्भ है शिक्षक

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भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक रही है | शिक्षक अपने छात्र के लिए न सिर्फ पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाता आया है अपितु समय के साथ अच्छे शिक्षक की आवश्यकता और भी महत्वपूर्ण होती गयी है | अतीत में कई ऐसे शिक्षक हुए हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा से न सिर्फ विद्यार्थी के ज्ञान को समृद्ध किया अपितु उनके चरित्र को इस प्रकार से गढ़ने का कार्य किया जिससे भारतीय जीवन दर्शन को एक नई राह मिली | गुरु-शिष्य की प्राचीन परम्परा रही हो या फिर आधुनिक शिक्षा पद्धति, एक अच्छा शिक्षक अपने ज्ञान से शिष्य को सामाजिक जीवन के अनुकूल बनाता है जिससे वह अपने जीवन में आने वाली अनेकानेक चुनौतियों का सामना आसानी से कर सके | विद्यार्थी के चरित्र एवं व्यक्तित्व पर शिक्षक की अमिट छाप होती है जिससे उसके आनुभविक मूल्य निर्धारित होते हैं | सामाजिक जीवन में शिक्षा प्राण तत्व की भांति ही है, जो हमारे व्यावहारिक जीवन के संचालन में महती भूमिका निभाती है | शिक्षा ज्ञानार्जन के साथ ही जीवन पद्धति के निर्धारण में भी अहम भूमिका निभाती है, एवं यह किसी भी देश, काल एवं परिस्थिति में प्रासं...

तलाश

किसी को धूप किसी को छाँव की तलाश है | शहर को भी आज किसी गाँव की तलाश है || कोई थक गया है ज़िन्दगी में भाग-भाग कर | कोई है जिसे एक अदद पाँव की तलाश है || किसी को नींद नहीं है मखमली बिस्तर पर | कोई है जो सो जाता   जमीं पर ही थककर || कोई नींद की तलाश में भटक रहा है आज | किसी खुली नज़र को सपनों की तलाश है || जी रहा है कोई सपनों की दुनिया बसाकर | कोई है जिसके सपने बिखरे गये हैं टूटकर || कोई है जो तन्हाई में जी रहा ज़िन्दगी ‘दीप’ | किसी को भीड़ में भी कारवां की तलाश है ||

विकसित भारत के लक्ष्य के समक्ष जनसंख्या बृद्धि की चुनौती

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2047 तक भारत ने विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है, एवं उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर अग्रसर भी है | विश्व की पाँच आर्थिक शक्तियों में ५ वां स्थान प्राप्त करके भारत ने इस ओर कदम बढ़ा भी दिया है और आगामी कुछ वर्षों में तीसरे स्थान पर पहुँच जाने की उम्मीद भी जताई जा रही है | विकास के कई सूचकांक भारत के पक्ष में दिखलाई देते हैं जिसमें राजनैतिक सशक्तिकरण एवं रक्षा क्षेत्र में उन्नति को देखा जा सकता है | वैश्विक मंच पर भारत को मिल रही सफलताएं एवं उत्तरदायित्व से यह स्पष्ट होता है कि जल्द ही हमारा देश विश्व के अग्रिम पंक्ति में खड़ा होगा | हालाँकि भारत के समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिनमें सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती हुई जनसंख्या के रूप में दिखलाई देती है | किसी भी देश के विकास में वहाँ निवास करने वाली जनसंख्या की सक्रीय सहभागिता महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह न सिर्फ विकास की दिशा एवं दशा तय करती है अपितु उपलब्ध संसाधनों के राष्ट्रहित में उपयोग को भी रेखांकित करती है | उपलब्ध मानव संसाधन के कौशल का तार्किक प्रयोग करके देश को न सिर्फ आर्थिक उन्नति के पथ पर अग्रसर किया जा स...

हाल-ए-वफ़ा

  लवों पे रखते थे हँसी के फूल कभी | न जाने अब क्यूँ मुस्कुराते भी नहीं || बस्तियां थी रौशन जिनके दीदार से | आँगन में चराग वो जलाते भी नहीं || गैरों के दर्द पर मरहम लगाने वाले | दर्द अपना किसी को दिखाते भी नहीं || बावफ़ा निकले वो वफ़ा की राह में | बेवफ़ा के प्यार को भूलाते भी नहीं || जी रहे हैं अश्कों के दरिया किनारे | अश्कों से भीगे नज़र आते भी नहीं || भूली-बिसरी यादें समेटे हुए ‘दीप’ | हाल-ए-वफ़ा अपनी बताते भी नहीं ||  

भविष्य के लिए संकट पैदा करती पर्यावरण की अनदेखी

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  विगत कुछ वर्षों में पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा वैश्विक विमर्श के साथ ही स्थानीय चर्चा के केंद्र में भी रहा है | विश्व के अधिसंख्य देश आज पर्यावरण में हो रहे बदलावों से चिंतित हैं तो वहीं इस क्षेत्र में कार्य करने वाली एजेंसियों के लिए नित नई चुनौतियां पैदा हो रही हैं | पर्यावरण में हो रहा प्रतिकूल बदलाव न सिर्फ मानव अस्तित्व के लिए खतरा है अपितु पृथ्वी पर जीवन के लिए भी खतरनाक है | मानव की उपभोक्तावादी सोच का गम्भीर परिणाम सभी जीव-जन्तुओं को भुगतना पड़ रहा है, एवं अनेक जीव-जंतु लुप्तप्राय हो चुके हैं | आधुनिक समाज ने जिस प्रकार से प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया है उससे यह खतरा निरंतर गम्भीर होता जा रहा है | एक तरफ वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने के कारण पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ मौसम-चक्र भी व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है | तेजी से बढ़ती जनसंख्या, वर्तमान पीढ़ी की पर्यावरण के प्रति उदासीनता, सरकारी नीतियों की अगम्भीरता, एवं पर्यावरण कानूनों का अप्रभावी एवं अपर्याप्त होना; प्रकृति को पूज्या के रूप में मानने वाले भारत को भी प्रकृति से दूर करता ज...